हम सभी जानते हैं कि नित्य पंचदेवता की पूजा हमारे लिये आवश्यक होता है और पंचदेवोपासना में सभीवर्णों, स्त्रियों का भी अधिकार होता है अर्थात सभी पंचदेवता की उपासना का अधिकार रखते हैं। पंचदेवता की पूजा में हमें उनके मंत्रों का विशेष रूप से ज्ञान होना आवश्यक है और पूजा भले ही नाम मंत्र से भी कर लें किन्तु ध्यान के मंत्र तो ज्ञात होने ही चाहिये। यहां पंचदेवता के ध्यान मंत्र दिये गये हैं जो कि संस्कृत में हैं।
पंच देवता ध्यान मंत्र – panch devta dhyan mantra
आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवं।
पञ्चदैवत्वमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ॥
पंचदेवता में कौन-कौन देवता आते हैं – यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न हो जाता है कि पंचदेवता में कौन-कौन देवता आते हैं ? इसके सम्बन्ध में जो प्रमाण है उसके अनुसार सूर्य, गणेश, देवी, शिव और भगवान विष्णु ये पांचों आते हैं। क्षेत्र और इष्ट भेद से इनके भिन्न-भिन्न पंचायतन होते हैं। पंचायतन का नाम उनके मुख्य देवता पर निर्भर होता है जो मध्य भाग में रहते हैं। इसके साथ ही यदि इसी में अग्नि को भी समाहित कर लें तो षड्देवता हो जाते हैं।
गणेशं च दिनेशं च वह्नि विष्णुं शिवं शिवां । संपूज्य देवषट्कं च सोऽधिकारी च पूजने ॥ – देवीभागवत, ब्रह्मवैवर्त्त
गणपति से आरंभ करके पंचदेव ध्यान मंत्र
यहां गणपति से आरंभ करते हुये पंचदेवताओं के ध्यानमंत्र दिये गये हैं। पूजा में स्व-स्व पंचायतन के अनुसार प्रयोग करें।
श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धाै रत्नदीपैः सुरनरतिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।
दाेर्भिः पाशाङ्कुशाब्जाभयवरदधतं चन्द्रमाैलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रावतंसं।
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नं ॥
पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं।
विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं ॥
विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
ध्येयः सदा सवितृमण्डल मध्यवर्ती
नारायणः सरसिजासन सन्निविष्टः।
केयूरवान्मकरकुण्डलवान्किरीटी
हारी हिरण्मयवपर्धृतशंखचक्रः॥
यहीं पर जब हम मिथिला में पूजा करें तो वहां षड्देवता हो जाते हैं और इसमें एक अन्य देवता जो जुड़ते हैं वो अग्नि होते हैं। यदि षड्देवता का ध्यान-पूजन करना हो तो अग्नि के ध्यान मंत्र को भी समाहित किया जायेगा। आगे अग्नि का ध्यानमंत्र भी दिया गया है :
न रूपं न दानं न परोक्षमस्ति यस्याऽऽत्मभूतं च पदार्थजातम् ।
अश्नन्ति हव्यानि च येन देवाः स्वाहापतिं यज्ञभुजं नमस्ये ॥
पंचदेव गायत्री मंत्र – panchdev gayatri mantra
- ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
- ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
- ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
- ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
अग्नि गायत्री मंत्र – agni gayatri
ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।