गणपत्यथर्वशीर्ष पुरश्चरण विधि – ganpati atharvashirsha purashcharan vidhi

गणपत्यथर्वशीर्ष पुरश्चरण विधि - ganpati atharvashirsha purashcharan vidhi

गणपत्यथर्वशीर्ष तो कर्मकांड की पुस्तकों में सरलता से उपलब्ध है और सबको मिल जाती है। किन्तु यदि इसके पुरश्चरण प्रयोग अर्थात पुरश्चरण विधि की बात करें तो ढूंढते ही रह जाते हैं। यह आलेख इसलिये विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां गणपत्यथर्वशीर्ष पुरश्चरण विधि (ganpati atharvashirsha purashcharan vidhi) दी गयी है।

यह आवश्यक है कि जो कुछ किसी अन्य से प्रत्यक्ष प्राप्त हो और यथावत प्रस्तुत किया जाय तो उसका श्रेय भी उन्हें दिया जाना चाहिये। हमें यह गणपत्यथर्वशीर्ष पुरश्चरण प्रयोग विद्या वारिधि आचार्य दीनदयाल मणि त्रिपाठी जी से प्राप्त है अतः इसका श्रेय उन्हीं को प्राप्त होता है। हमें जैसा प्राप्त हुआ वह यथावत प्रस्तुत किया जा रहा है, इस प्रयोग को संपन्न कराने में विद्वान कर्मकांडी ही सक्षम होंगे। यदि यथावत समझना कठिन हो तो वो इस प्रयोग को कराने की योग्यता नहीं रखता है यही सिद्ध होगा।

  • वाञ्छितफलप्राप्तिरहं तद्दशांशदूर्वाङ्कुरहवनं करिष्ये ।
  • वैश्रवणोपमप्राप्तिकामोऽहं तद्दशांशधानाद्रव्यहवनं करिष्ये ।
  • यशोत्तमबुद्धिप्राप्तिकामोऽहं आज्यपरिप्लुतसमिद्धवनं करिष्ये।

गणपत्यथर्वशीर्ष – ganpati atharvashirsha

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