पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र – navgrah mandal pujan

पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan

सभी प्रकार के पूजा-हवनों में नवग्रह मंडल पूजा (navgrah mandal pujan) विशेष रूप से की जाती है। जब सामान्य पूजा कर रहे होते हैं अर्थात वेदियां नहीं बनाते हैं तब भी नाममंत्र से ही सही नवग्रह और दश दिक्पाल की पूजा करते ही हैं। लेकिन जब नवग्रह मंडल बनाकर पूजा की जाती है तो नवग्रह मंडल पर अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-पंचलोकपालादि का भी आवाहन-पूजन किया जाता है। नवग्रह वेदी यदि बनाना न आये तो अष्टदल बनाकर भी पूजा की जा सकती है। इस आलेख में नवग्रह मंडल देवताओं का आवाहन और पूजन का पौराणिक मंत्र दिया गया है।

पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र – navgrah mandal pujan

नवग्रह वेदी : चित्रानुसार नवग्रह वेदी बनाकर पूजा करें।

  • नवग्रह वेदी, हवन कुंड या वेदी के ईशानकोण में स्थापित की जाती है।
  • यदि अन्य बहुत सारी वेदी न भी बनाई गयी हो तो भी हवन के समय नवग्रह वेदी बनाई जाती है।
  • नवग्रह मंडल में सूर्यादि नवग्रह, अधि देवता, प्रत्यधि देवता, पंचलोक्पाल और दशदिक्पाल की पूजा की जाती है। नवग्रह मंत्र वैदिक (सम्पूर्ण मंडल) के साथ पूजा विधि नीचे दी गयी है।
  • नवग्रह पूजन में नवग्रहों की पताका का भी प्रयोग किया जाता है।
  • हवन के बाद नवग्रह मंडल के चारों ओर नवग्रह और दशदिक्पाल को सदीप दधि-माष-बलि भी देनी चाहिये।
नवग्रह मंडल चक्र
नवग्रह मंडल चक्र

नवग्रह पूजन विधि मंत्र सहित

१- सूर्य (मध्य में गोलाकार, लाल) का आवाहन (लाल अक्षत-पुष्प लेकर) – ओं जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूभुर्वः स्वः कलिंग देशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य । इहागच्छ इहतिष्ठ ओं सूर्याय नमः॥

२- चन्द्र (अग्निकोण में, अर्धचन्द्र, श्वेत) का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्पसे) – ओं दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् । ज्योत्सनापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं सोमाय नमः ॥

३- मंगल (दक्षिण में, त्रिकोण, लाल) का आवाहन (लाल फूल और अक्षत लेकर) – ओं धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं भौमाय नमः ॥

४- बुध (ईशानकोण में, हरा, धनुष) का आवाहन (पीले, हरे अक्षत-पुष्प लेकर) – ओं प्रियंगुकलिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं बुधाय नमः ॥

५- बृहस्पति (उत्तर में पीला, चतुरस्र) का आवाहन (पीले अक्षत-पुष्पसे) – ओं देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम् । वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्व सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं बृहस्पतये नमः ॥

६- शुक्र (पूर्व में श्वेत, पञ्चास्र या षडस्र) का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्प से) – ओं हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भुर्भूवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र । इहागच्छ, इहतिष्ठ ओं शुक्राय नमः॥

७- शनि (पश्चिम में, काला मनुष्य) का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प से) – ओं नीलांबुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं शनैश्चराय नमः ॥

८ – राहु (नैऋत्यकोण में, काला मकर) का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प से) – ओं अर्द्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं राहुमावाहयाम्यहम् । ओं भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ओं राहवे नमः ॥

९ – केतु (वायव्यकोण में, कृष्ण खड्‌ग) का आवाहन (धूमिल अक्षत-पुष्प लेकर) – ओं पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो । इहागच्छ, इहतिष्ठ, ओं केतवे नमः ॥

नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा

आवाहन और स्थापन के बाद हाथ में अक्षत लेकर अगले मन्त्र से नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा कर अक्षत छोड़े ।

प्राणप्रतिष्ठा – ओं सूर्यादि नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत॥

नवग्रह पूजन – अब आवाहन , स्थापन पश्चात नवग्रहों की पूजा करे : ओं सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः॥ इस नाम मन्त्र से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करे-

प्रार्थना

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