पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र – navgrah mandal pujan

पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan

अधिदेवता-आवाहन-पूजन

अब, उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में दायीं ओर अधिदेवताओं का आवाहन करेंगे । स्कन्दपुराण में इनका स्थान इस प्रकार निर्दिष्ट है, अधिदेवता – शिवः शिवा गुहो विष्णुर्ब्रह्मेन्द्रयमकालकाः । चित्रगुप्तोऽथ भान्वादेर्दक्षिणे चाधिदेवता ॥ इन सबके लिए सिर्फ हरिद्रारंजित चावल का प्रयोग करना चाहिए। आवाहन और प्रतिष्ठा नवग्रहक्रम से ही करना है –

१.शिव (सूर्य के दायें भाग में)- ओं एह्येहि विश्वेश्वरनस्त्रिशूलकपालखट्वाङ्गधरेण सार्धम् । लोकेश यक्षेश्वर यज्ञसिद्ध्यै गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ॥ ओं भूर्भुवःस्वः ईश्वराय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

२.उमा (चन्द्रमा के दायें भाग में) – ओं हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम् । लम्बोदरस्य जननीमुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः उमायै नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

३.स्कन्द (मंगल के दायें भाग में) – ओं रुद्रतेजः समुत्पन्नं देवसेनाग्रगं विभुम् । षण्मुखं कृत्तिकासूनुं स्कन्दमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः स्कन्दाय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

४.विष्णु (बुध के दायें भाग में) – ओं देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम् । चतुर्भुजं रमानाथं विष्णुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

५.ब्रह्मा (बृहस्पति के दायें भाग में) – ओं कृष्णाजिनाम्बरधरं पद्मसंस्थं चतुर्मुखम् । वेदाधारं निरालम्बं विधिमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ॥

६. इन्द्र (शुक्र के दायें भाग में) – ओं देवराजं गजारुढं शुनासीरं शतक्रतुम् । वज्रहस्तं महाबाहुमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

७. यम (शनि के दायें भाग में) – ओं धर्मराजं महावीर्यं दक्षिणादिक्पतिं प्रभुम् । रक्तेक्षणं महाबाहुं यममावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः यमाय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

९. चित्रगुप्त (केतु के दायें भाग में) – ओं धर्मराजसभासंस्थं कृताकृत विवेकिनम् । आवाहये चित्रगुप्तं लेखनीपत्रहस्तकम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः चित्रगुप्ताय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

इस प्रकार अधिदेवताओं के आवाहन के पश्चात् अब, उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में बांयी ओर प्रत्यधिदेवताओं का आवाहन करेंगे । थोड़ा थोड़ा छोड़ते जायेंगे कथित स्थानों पर ।

इस सम्बन्ध में शान्तिमयूष में निर्देश है – अधिदेवा दक्षिणतो वामे प्रत्यधिदेवताः । स्थापनीया प्रयत्नेन व्याहृतीभिः पृथकपृथक ।

 प्रत्यधिदेवताः – अग्निरापः क्षितिर्विष्णुरिन्द्रश्चैन्द्री प्रजापतिः । सर्पो ब्रह्मा च निर्दिष्टा प्रत्यधिदेवा यथाक्रम् ॥

अन्यत्रश्च – अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणी पितामहाः। पन्नगाः कः क्रमाद् वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः ॥

अर्थात सूर्यादि नवग्रहों के वाम भाग में क्रमशः अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति, सर्प और ब्रह्मा की स्थापना करे । ये प्रत्यधिदेवता कहे गये हैं ।

ध्यातव्य : कुछ नामों की पुनरावृत्ति हो रही है – जैसे विष्णु अधिदेवता सूची में आ चुके हैं, साथ ही प्रत्यधिदेवता सूची में भी हैं । ध्यातव्य है कि बुध के अधिदेवता-प्रत्यधिदवता दोनों विष्णु ही हैं, अतः दो बार इनका आवाहन पूजन होगा । ठीक वैसे ही जैसे एक ही व्यक्ति दो पदभार सम्भाल रहा हो । इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए । एक ही देवता का दो स्थानों पर यानी दो बार आवाहन-पूजन किया जायेगा । आगे अन्य स्थानों पर भी इस प्रकार की स्थिति मिलेगी । जैसे-प्रारम्भ में गणेशाम्बिका पूजन कर चुके है, पुनः पंचलोकपाल में भी गणेश है, दिक्पाल में इन्द्र, ब्रह्मा, यम, अग्नि आदि की आवृत्ति हुयी है ।

प्रत्यधिदेवता-आवाहन-पूजन –

१. अग्नि(सूर्य के बायें) – ओं रक्तमाल्याम्बर धरं रक्तपद्मासनस्थितम् । वरदाभयदं देवमग्निमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः अग्नये नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

२.अप् (जल) – (चन्द्रमा के बायें) – ओं आदिदेवसमुद्भूतजगच्छुद्धिकराः शुभाः। ओषध्याप्यायनकरा अप आवाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः अद्भ्यो नमः, इहागच्छत, इह तिष्ठत ॥

३.पृथ्वी (मंगल के बायें) – ओं शुक्लवर्णां विशालाक्षीं कूर्मपृष्ठोपरिस्थिताम् । सर्वशस्याश्रयां देवीं धरामावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः पृथिव्यै नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ॥

४.विष्णु (बुध के बायें) – ओं शङ्खचक्रगदापद्महस्तं गरुडवाहनम् । किरीटकुण्डलधरं विष्णुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ॥

५.इन्द्र (बृहस्पति के बायें) – ओं ऐरावतगजारुढ़ं सहस्राक्षं शचीपतिम् । वज्रहस्तं सुराधीशमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

७.प्रजापति (शनि के बायें) – ओं आवाहयाम्यहं देव देवेशं च प्रजापतिम् । अनेकव्रतकर्तारं सर्वेषां च पितामहम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः प्रजापतये नमः, प्रजापतिमावाहयामि,स्थापयामि ॥

८.सर्प (राहु के बायें) – ओं अनन्ताद्यान् महाकायान् नानामणिविराजितान् । आवाहयाम्यहमं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः सर्पेभ्यो नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

९.ब्रह्मा (केतु के बायें) – ओं हंसपृष्ठसमारुढ़ं देवतागण पूजितम् । आवाहयाम्यहं देवं ब्रह्माणं कमलासनम् ॥ ओं भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥

अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताओं का एकतन्त्र पूजनः – नवग्रह वेदी के दायें अधिदेवता और बायें भाग में प्रत्यधिदेवताओं का समन्त्र आवाहन सम्पन्न हो जाने के पश्चात् अब दोनों के एकत्र नाम मन्त्रों से यथोपलब्ध पूजन करें- ओं ईश्वराग्नेयादि अधिदेवप्रत्यधिदेवेभ्यो नमः – इस नाम मन्त्र से क्रमशः पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, चन्दन, रोली, अबीर, पुष्प, पुष्पमाल्यादि, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि मुखशुद्धि, द्रव्य दक्षिणा समर्पित करके, पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करे ॥ (इति अधिदेवता-प्रत्यधिदेवतापूजनम्)

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