पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र – navgrah mandal pujan

पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan पौराणिक नवग्रह मंडल पूजा विधि और मंत्र - navgrah mandal pujan

पञ्चलोकपाल आवाहन-पूजन

क्रमशः निर्दिष्ट कोष्ठकों में पुष्पाक्षत छोड़ते हुये आवाहन करे :

१.गणेश (केतुखंडमें) – ओं लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजं । आवाहयाम्यहमं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः गणपते ! इहागच्छ,इह तिष्ठ, गणपतये नमः ॥

२.दुर्गा (केतुखंडमें) – ओं पत्तने नगरे ग्रामे विपिने पर्वते गृहे । नानाजातिकुलेशानीं दुर्गामावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः दुर्गे ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, दुर्गायै नमः ॥

३.वायु (गुरुखंडमें) – ओं आवाहयाम्यहं वायुं भूतानां देहधारिणाम् । सर्वाधारं महावेगं मृगवाहनमीश्वरम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः वायो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ओं भूर्भुवः स्वः वायवे नमः॥

४.आकाश (गुरुखंडमें) – ओं अनाकारं शब्दगुणं द्यावाभूम्यन्तरस्थितम् । आवाहयाम्यहं देवमाकाशं सर्वगं शुभम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः आकाश ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ओं भूर्भुवः स्वः आकाशाय नमः॥

५.अश्विनी (गुरुखंडमें) – ओं देवतानां च भैषज्ये सुकुमारौ भिषग्वरौ। आवाहयाम्यहं देवावश्विनौ पुष्टिवर्द्धनौ ॥ ओं भूर्भुवः स्वः अश्विनौ ! इहागच्छतं, इह तिष्ठतं, ओं भूर्भुवः स्वः अश्विभ्याम् नमः ॥

तदन्तर, ॐ गणेशादिपञ्चलोकपालेभ्यो नमः —इस नाम मन्त्रोच्चारण पूर्वक यथोपचार पूजन करे, जैसा कि अन्य देवों का करते आए हैं ।

दशदिक्पाल आवाहन-पूजन

क्रमशः निर्दिष्ट कोष्ठकों में पुष्पाक्षत छोड़ते हुये आवाहन करे :

१. इन्द्र (पूर्व,पीतवर्ण) – ओं इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ॥ ओं इन्द्र, इहागच्छ, इह तिष्ठ। ओं भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः॥

२. अग्नि (अग्निकोण,रक्तवर्ण) – ओं त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकम् । षण्नेत्रं च चतुः श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः अग्ने इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः॥

३. यम (दक्षिण,कृष्णवर्ण) – ओं महामहिषमारुढं दण्डहस्तं महाबलम् । यज्ञसंरक्षनार्थाय यममावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः यम इहागच्छ, इह तिष्ठ। ओं भूर्भुवः स्वः यमाय नमः॥

४. निर्ऋति (नैर्ऋत्यकोण,नीलवर्ण) – ओं निर्ऋत्यां खड्गहस्तं च नरारुढ़ं वरप्रदम् । आवाहयामि यज्ञस्य रक्षार्थं नीलविग्रहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः निरृत इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः निर्ऋतये नमः॥

५. वरुण (पश्चिम,कृष्णवर्ण) – ओं शुद्धस्फटिकसंकाशं जलेशं यादसां पतिम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः॥ 

६. वायु (वायुकोण,धूम्रवर्ण) – ओं अनाकारं महौजस्कं व्योमगं वेगवद् गतिम् । प्राणिनां प्राणदातारं वायुमावाहयाम्यहम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः वायु इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः वायवे नमः॥

७. कुबेर (उत्तर,पीतवर्ण) – ओं आवाहयामि देवेशं धनदं यक्षपूजितम् । महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम् ॥ ओं भूर्भुवः स्वः कुबेर इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः कुबेराय नमः ॥

८. ईशान (ईशान,श्वेतवर्ण) – ओं सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम् । आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम् ॥ ओं ईशान, इहागच्छ, इह तिष्ठ । ओं भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः॥

९. ब्रह्मा (ईशान-पूर्व के बीच में,पीतवर्ण) – ओं पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम् । आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञसंसिद्धिहेतवे ॥ ओं भूर्भुवः स्वः ब्रह्मण इहागच्छ इह तिष्ठ। ओं भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमः ॥

ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः – इस नाम मन्त्र का उच्चारण करते हुए, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंचामृत, शुद्धोदक स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, गन्धादि, पुष्पादि, धूप-दीप, नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि मुखशुद्धि, द्रव्य दक्षिणा प्रदान करे ।

पुनः अक्षतपुष्पादि लेकर हाथ जोड़ कर पूजित देवताओं की प्रार्थना करे –

एकतंत्र पूजा विधि : जब समयाभाव हो तो पृथक-पृथक पूजा न करके संक्षेप में तंत्र से पूजा की जाती है –

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः॥
  • धूप : एष धूपः ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • पुष्पाञ्जलि : एष पुष्पाञ्जलिः ओं साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सीन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥

निष्कर्ष : किसी भी शान्तिक-पौष्टिकादि कर्म में नवग्रह मख अनिवार्य होता है, यदि हवन कर रहे हैं तब भी नवग्रह पूजन की अनिवार्यता देखने को मिलती है। जब हम नवग्रह मंडल पूजन की बात कर रहे हैं तो यहां एक तथ्य यह भी आता है कि जिनका वेदाधिकार नहीं है उनके लिये पूजा की क्या विधि-मंत्र हैं और उत्तर मिलता है पौराणिक पूजन-मंत्रों से करे। इस कारण यहां नवग्रह मंडल पूजन के पौराणिक मंत्रों का वर्णन किया गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *