पौराणिक पुण्याहवाचन विधि – punyahavachanam sanskrit

पौराणिक पुण्याहवाचन विधि - punyahavachanam sanskrit

यजमान घुटने टेककर बैठ जाये फिर पुष्पाक्षत आदि लेकर हाथों को जोड़कर कमल की कोढ़ी के आकार का बनाकर सिर में सटाते हुए तीन बार प्रणाम करे। फिर आचार्य दाहिने हाथ से धातुकलश उठाकर यजमान के अञ्जलि में दे। फिर इन मंत्रों को यजमान पढ़े और ब्राह्मण प्रत्युत्तर वचन दे।

यजमान – ॐ दीर्घा नागा नद्यो गिरयस्त्रीणि विष्णुपदानि च। ॐ त्रीणि पदा विचक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन् । तेनायुष्यप्रमाणेन पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु , इति भवन्तो ब्रुवन्तु ॥ यजमान दीर्घायु होने का आशीर्वाद मांगे ।

ब्राह्मण – पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ॥ सभी ब्राह्मण ये आशीर्वाद दें । और यजमान कलश को सिर से लगाये, पत्नी के सिर से भी लगाये, यदि उपनयन, विवाहादि हो तो बच्चे के सिर से भी लगाकर कलश को यथास्थान रख दें ।

इस क्रिया तो तीन बार यथावत करें। अर्थात् २ बार और करें।

ब्राह्मण – समाहितमनसः स्मः ॥ प्रसीदन्तु भवन्तः प्रसन्नाः स्मः ॥

शान्तिरस्तु। पुष्टिरस्तु। तुष्टिरस्तु। वृद्धिरस्तु। अविघ्नमस्तु। आयुष्यमस्तु। आरोग्यमस्तु। शिवं कर्मास्तु।

  • यजमान – ब्राह्मं पुण्यमहद्यच्च सृष्ट्युत्पादनकारकम्। वेदवृक्षोद्भवं नित्यं तत्पुण्याहं ब्रुवन्तु नः॥ मह्यं सह कुटुम्बिने पुण्यं पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु॥
  • ब्राह्मण – पुण्यं पुण्याहम् ॥
  • यजमान – स्वस्तिर्याऽविनाशाख्या पुण्यकल्याणवृद्धिदा। विनायकप्रिया नित्यं तां च स्वस्तिं ब्रुवन्तु नः ॥ मह्यं सह कुटुम्बिने स्वस्त्यस्त्विति भवन्तो ब्रुवन्तु॥
  • ब्राह्मण – आयुष्मते स्वस्ति ॥
  • यजमान – सागरस्य तु या ऋद्धिर्महालक्ष्म्यादिभिः कृता। सम्पूर्णा सुप्रभावा च तामृद्धिं प्रब्रुवन्तु नः ॥ मह्यं सह कुटुम्बिने ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु॥
  • ब्राह्मण – कर्म ऋद्ध्यताम्॥
  • यजमान – समुद्रमथनाज्जाता जगदानन्दकारिका । हरिप्रिया च माङ्गल्या तां श्रियं च ब्रुवन्तु नः ॥ मह्यं सह कुटुम्बिने श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु॥
  • ब्राह्मण – अस्तु श्रीः ॥
  • यजमान – पृथिव्यामुद्धृतायां तु यत्कल्याणं पुरा कृतम्। ऋषिभिः सिद्धगन्धर्वैस्तत्कल्याणं ब्रुवन्तु नः ॥ मह्यं सह कुटुम्बिने कल्याणम् भवन्तो ब्रुवन्तु॥
  • ब्राह्मण – कल्याणम् ॥

जलधारा

शुक्रांगारकबुधबृहस्पतिशनैश्चरराहुकेतु सोम सहिता आदित्य पुरोगा सर्वे ग्रहाः प्रीयंताम्। कर्मांग देवताः प्रीयंताम्। शकुननिमित्तस्वप्नाः शिवा भवन्तु। आयुषोभिवृद्धिरस्तु। शिवं शिवमस्तु। सर्वग्रहसंस्थित्यमस्तु। सत्य एता आशिषः सन्तु। बहिर्देशे अरिष्टनिरसनमस्तु।

किञ्चित कलशजल ईशान भाग में दूर करे : यत्पापं तत्प्रतिहतमस्तु।

पुनः पूर्ववत अन्य अभिषेक कलश में कलश जलधारा दे : यच्छ्रेयस्तदस्तु। उत्तरे कर्मण्यविघ्नमस्तु।उत्तरोत्तरमहरहरभिवृद्धिरस्तु। उत्तरोत्तराः क्रियाश्शुभास्सम्पद्यताम्। तिथीकरण मुहूर्त नक्षत्र दिग्देवताः प्रीयंताम्।

तदनंतर उस अन्य पात्र में लेकर उसमें हिरण्य दे। तत्पश्चात् ब्राह्मण “सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु” से सपरिवार यजमान का अभिषेक करें। अभिषेक के समय पत्नी यजमान के बांये भाग में बैठे ।

सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः।
वासुदेवो जगन्नाथस्तथा सङ्कर्षणो विभुः
प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते।
आखण्डलोऽग्निर्भगवान् यमो वै निर्ऋतिस्तथा
वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथाशिवः।
ब्रह्मणा सहिताः शेषो दिक्पालास्त्वामवन्तु ते
कीर्त्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा पुष्टिः श्रद्धा क्रिया मतिः।
बुद्धिर्लज्जा वपुः शान्तिस्तुष्टिः कान्तिश्च मातरः

एतास्त्वामभिषिञ्चन्तु धर्म्मपत्न्यः समागताः।
आदित्यश्चन्द्रमा भौमोबुधजीवौ सिताऽर्कजाः
ग्रहास्त्वामभिषिञ्चन्तु राहुःकेतुश्च तर्पिताः।
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः
ऋषयोमुनयो गावो देवमातर एव च।
देवपत्न्यो द्रुमानागा दैत्याश्चाप्सरसाङ्गणाः
अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च।
औषधानि च रत्नानि कालस्यावयवाश्च ये
सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदानदाः।
एते त्वामभिषिञ्चन्तु सर्वकामार्थसिद्धये

सहस्राक्षं शतधारं ऋषिभिः पावनं कृतं।
तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते
भगं ते वरुणो राजा भगं सूर्यो बृहस्पतिः।
भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तऋषयो दधुः
यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यश्च मूर्द्धनि।
ललाटे कर्णयो रक्ष्णोरापो निघ्नंतु ते सदा
अमृताभिषेकोस्तु

उसी जल से गृह प्रोक्षण करे :

वास्तोष्पते भूमिशयान देव पाहि त्वमस्मान् सकलादरिष्टात्।
चतुष्पदां च द्विपदां शिवं नो भवत्वभीक्ष्णं तव सुप्रसादात्॥

दक्षिणा – तिल, जल, दक्षिणा लेकर पढे : अद्य कृतैतत् अस्मिन् पुण्याहवाचनकर्मणः साङ्गता सिद्ध्यर्थं तत्पूर्णफलप्राप्त्यर्थं च पुण्याहवाचकेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो इमां दक्षिणां विभज्य अहं दास्ये ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

कर सकते।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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