भगवान शिव की पूजा में शंख को बजाना, शंख से जल अर्पित करना निषेध माना जाता है और दोनों दो भिन्न विषय हैं, एवं सप्रमाण दोनों की पृथक चर्चा आवश्यक है। इसी प्रकार शंख बजाने को लेकर अन्य प्रश्न भी होते हैं यथा स्त्री को शंख बजाना चाहिये या नहीं, लक्ष्मी पूजा में शंख बजाना चाहिये या नहीं। इस आलेख का अधिकांश विषय शंख बजाने से संबंधित है और उसमें भी शिव पूजा के संबंध में, साथ ही शिव पूजा में शंख से जल अर्पित करना चाहिये अथवा नहीं यह चर्चा भी सप्रमाण की गयी है व अन्यान्य प्रश्नों के भी प्रामाणिक उत्तर देने का प्रयास किया गया है।
शिव पूजा में शंख बजाना चाहिए या नहीं – shiv puja me shankh bajana
पूजा में शंख का विशेष महत्व होता है और मुख्यतः शंख का दो प्रकार से उपयोग होता है एक जल आदि अर्पित करने में और बजाने में।
भगवान विष्णु की पूजा में तो शंख का अत्यधिक महत्व होता है और शंख में बिना भगवान विष्णु की पूजा को उचित नहीं माना जाता और इसका विचार गृहप्रवेश करने वाले वो लोग जिनके घरों में एक वर्ष शंख न बजाने की परम्परा है यदि सत्यानानारायण भगवान की पूजा करनी हो तो कैसे करेंगे यह प्रश्न देखने को मिलता है, क्योंकि सत्यनारायण भगवान की पूजा में शंख तो बजता ही है।
शिव पूजा में शंख बजाना चाहिए या नहीं
भगवान शिव की पूजा में शंख बजाना और शंख से अभिषेक विषय पर विद्वानों के वाह्टसप समूह ब्रह्मसूत्रं में व्यापक चर्चा हुयी कर अनेकों विद्वानों ने बहुशः प्रमाण प्रस्तुत किये जिसको यथावत रखने का प्रयास करते हुये अंत में निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास किया गया है और उन सभी विद्वानों के हम आभारी हैं जिनका संकलन यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
पंडित रामप्रवेश तिवारी जी का संकलन
शिवजीके मंदिरमें झल्लक (झालर/काँसेकी करताल/ झाँझ) नहीं बजाना चाहिए।तथा शंखसे अभिषेक भी नहीं करना चाहिए।
शिवागारे झल्लकञ्च सूर्य्यागारे च शङ्खकम्।
दुर्गागारे वंशवाद्यं मधुरीञ्च न वादयेत् ॥
(योगिनीतन्त्रे)
झल्लकं= कांस्यनिर्म्मितकरतालम्।
- शिवजी के मंदिर में झल्लक (झालर/काँसेकी करताल/ झाँझ) नहीं बजाना चाहिए।
- सूर्यदेव के मंदिर में शंख बजाना निषिद्ध है।
- भगवती दुर्गा के मंदिर में वंशी और मधुरी (यह मुंहसे फूंक कर बजाई जाती है,एक प्रकारका सुषिरवाद्य छिद्रवाला वाद्यविशेष) इसे नहीं बजाना चाहिए।
गीतवादित्रनिर्घोषं देवस्याग्रे च कारयेत्।
विरिञ्चेश्च गृहे ढक्कां घण्टां लक्ष्मीगृहे त्यजेत्॥
(मत्स्यपुराणे)
- गीतोंका गाना तथा वाद्योंको बजाना देवताओंके अर्चाविग्रहोंके सामने करना चाहिए, परंतु –
- ब्रह्माजी के मंदिर में ढाक (नगाड़ा) अथवा डमरु को नहीं बजाना चाहिए, और
- लक्ष्मीजी के मंदिर में- घंटा नहीं बजाना चाहिए।
यद्यपि घंटा को और सभी देवताओं के लिए अशक्त व्यक्ति के लिए सभी वाद्ययंत्रों का प्रतिनिधि माना गया है। घंटा सर्ववाद्यमयी है- घण्टा भवेदशक्तस्य सर्व्ववाद्यमयी यतः॥ (तिथ्यादितत्त्वम् )
शिव और सूर्य के लिए शंख का निषेध –
महाभिषेकं सर्वत्र शंखेनैव प्रकल्पयेत्।
सर्वत्रैव प्रशस्तोऽब्जः शिवसूर्यार्चनं विना॥
(तिथ्यादितत्त्वम् )
अर्थ– सभी देवताओंका अभिषेक शंखके जलसे ही होता है, परंतु सूर्य और शिवजीको छोड़कर।
शङ्खतोयञ्च देवानां सर्वप्रीतिदं परम्।
तीर्थतोयस्वरूपञ्च पवित्रं शम्भुना विना॥
भगवान शंकर को छोड़कर के अन्य सभी देवताओं के लिए शंख का जल तीर्थजल के समान पवित्र और प्रसन्नता देने वाला है।
शिवमंदिर में अन्य वाद्ययंत्र तो बजाना चाहिए –
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदंगकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
(श्रीशिवमानसपूजास्तोत्रम्)
अथ शङ्खमाहात्म्यम् – ब्रह्मोवाच
शृणु शङ्खस्य माहात्म्यं सर्व्वपापहरं शुभम्।
कपिला क्षीरमादाय शङ्खे कृत्वा जनार्द्दनम्॥
शङ्खशब्दो भवेद्यत्र तत्र लक्ष्मीश्च सुस्थिरा।
स स्नातः सर्व्वतीर्थेषु यः स्नातः शङ्खवारिणा॥
शङ्खे हरेरधिष्ठानं यतः शङ्खस्ततो हरिः।
जहां शंख का शब्द होता है ध्वनि होती है वहां लक्ष्मी स्थिर रूप से निवास करती हैं, और जिसने शंख के जल से स्नान कर लिया, मानो उसने सभी तीर्थों में ही स्नान कर लिया। शंख में भगवान श्रीहरि का नित्य निवास है, जहां शंख है वहां भगवान श्री हरि हैं।
कहाँ कहाँ घंटा बजाना अनिवार्य है –
स्नाने धूपे तथा दीपे नैवेद्ये भूषणे तथा।
घंटा नादं प्रकुर्वीत तथा नीराजनेऽपि च॥
(#कालिकापुराण)
देवताओं को स्नान कराते समय, धूप में , दीप में , नैवेद्य /भोग लगाते समय, आभूषण अर्पित करते समय तथा निराजन /आरती करते समय घंटा नाद अवश्य करना चाहिए।
देवपूजनमें घंटेको अपनी बायीं और स्थापित करना चाहिए और बाएं हाथसे ही घंटेको बजाना चाहिए, परंतु घंटा का पूजन दाएं हाथ से ही करना चाहिए-
उत्तोल्य दृष्टिपर्यन्तं घण्टां वामदिशि स्थिताम्।
वादयन्वामहस्तेन दक्षहस्तेन चार्चयेत्॥
(गौतमीये)
घंटावादन का उद्देश्य
देवताओं के आगमन के लिए तथा राक्षसों को दूर भगाने के लिए घंटा अवश्य बजाना चाहिए, और घंटे को बजाकर फिर उसका पूजन करना चाहिए-
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम्।।
घण्टानादं प्रकुर्वीत पश्चाद् घण्टां प्रपूजयेत्॥
(नित्यनैमित्तिककर्मसमुच्चय)
पंडित प्रभात शास्त्री का संकलन
शिवार्चन में शंख से अभिषेक ही वर्जित है या शंख जल का उपयोग ही नहीं होता, अर्थात् शिव पूजन में शंख मात्र वर्जित है???
शिव पूजा में सामन्यार्घ्य संस्थापन शङ्ख पात्र से ही
कलशेनाथ शंखेन वर्द्धन्या पाणिना तथा। सकुशेन सपुष्पेण स्नापयेन्मन्त्रपूर्वकम्॥
[शिवमहापुराण, वायवीयसंहिता-उत्तरखण्ड, अध्याय-२४, श्लोक- ४६]
कलश, शंख और वर्द्धनी से तथा कुश और पुष्प से युक्त हाथ के जल से मन्त्रोच्चारणपूर्वक भगवान् शिव को स्नान कराना चाहिए।
- विहाय शङ्करं सूर्यमर्घ्ये शङ्खः प्रशस्यते । … त्रिपुरार्णवे
- सर्वत्रैवप्रशस्तोब्जः शिवसूर्यार्चनंविना । … तिथितत्त्वे ब्राह्मे
- शङ्करार्कार्चने शङ्खमयेनैव प्रशस्यते । … बृहन्नारदीये सनत्कुमारोक्ति
- अस्थिभिश्शङ्खचूडस्य शङ्खजातिर्बभूव ह ।
- प्रशस्तं शङ्खतोयं च सर्वेषां शङ्करं विना ॥ … शैवे रुद्रसंहितायाम्
उपरोक्त प्रमाणों से शिवपूजा में शङ्खनिषेध का आचार मध्योत्तर प्रान्त में आग्रही पालन करते हुए दिखता है। प्रचलित आचारग्रंथो में भी कोशकारों ने अपने निर्णय में शिवार्चन में शङ्खनिषेध अधोरेखित किये है। मात्र, शास्त्रावलोकन के अनन्तर, पुराण-इतिहास ग्रंथो में शिवार्चन में शङ्ख की ग्राह्यता, उलटपक्षी उत्कर्षोल्हास दिखाई देता हैं, जो निम्न कुछेक उल्लेखों में द्रष्टव्य है।
अभिषेकार्थ – अर्घ्यार्थ
शङ्खपात्रं सुरम्यं च खड्गपात्रं यथा तथा । मृत्तिकानारिकेलादि पात्रं स्याच्छिवपूजने ॥ … सौरे
गम्भीरनिनदः शङ्खो हंसकुंदेन्दुसन्निभः। समुद्रकल्पसन्नादाः कल्पनीयाः प्रयत्नतः ॥ … शैवे वायवीयसंहितायाम्
पाद्यपात्रं तथानीयं अर्घ्याचमनपात्रकम् । शङ्खञ्च गवयशृङ्गं जलभाण्डादि वर्धनीम् ॥ … आग्नेये शिवपूजाप्रकरणे
ततः शङ्खोदकेनेशं अभिषिञ्चेच्च मूलतः । वासोऽभिवेष्टयित्वेशं गन्धर्लिप्येत लिङ्गकम् ॥ … शिवरहस्ये ईश्वराख्ये दशमांशे
प्रक्षाल्य धातुपात्राणि नवानि कलशं तथा । शङ्खं च दीपधूपौ च स पुष्पाम्बूनि साधयेत् ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
कलशं पूज्य शङ्खं च गन्धपुष्पाक्षतादिभिः । … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
सङ्कल्प्य देशकालादि पञ्चाक्षरजपादरः । पाद्यार्घ्याचमनादीनि शङ्खं कुम्भं च साम्बुयुक् ॥ … महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खैश्च दक्षिणावर्ते रत्नगर्भर्महेश्वरि । सव्यावतैर्यथायोग्यं शङ्खपात्रोपरि स्थितैः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
भूभूतशुद्धि कृत्वैव शङ्खं तत्र प्रसाधयेत् । न भूमिलग्नं पात्रस्थं पुष्पाम्बुपरिपूरितम् ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
क्षालितानि च पात्राणि स्थाप्यान्यग्रे शिवस्य तु । पुष्पाम्बुपूरितान्येव कुम्भं शङ्खं न्यसेच्छिवे ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शृङ्ग शङ्खानि खड्गानि पर्णपद्मपुटानि च । हेमरौप्यादि ताम्राणि कांस्यपित्तलकान्यपि ॥
प्रशस्तानि शिवार्चादौ क्षालितान्यथ कल्कतः । दर्भराच्छाद्य तभुवि स्थाप्य पात्राणि सर्वतः ॥
… शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
गोशृङ्गेणाथ शङ्खेन वर्धन्या वाऽभिषेचयेत् । धारां प्रकल्पयेल्लिडगे ह्यविच्छिन्नां गिरिन्द्रजे ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
ब्राह्मणैः सेचयेल्लिङ्गमविच्छिन्नाम्बुधारया । शङ्खःशृङ्गेस्तथाकुम्भर्वर्धन्या वा यथा सुखम् ॥ … महादेवाख्ये एकादशांशे
कुर्याच्छिवाभिषेकार्थ शोधितं गन्धवासितम् । ब्रह्मकूर्चोदकं ग्राह्यं शङ्खमध्याम्बु शङ्करि ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
एवं सर्वेषु पात्रेषु शङ्खे चापि विशेषतः । अभिषेचनिके कुम्भे दापयेच्छोधिते जलैः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खोदकेनाभिंषिच्य प्रविमृच्य च वाससा । … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खोदकं ततोत्कृष्टं सर्वपात्रजलैरपि । … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खानां च सहस्रकैरपि तथा धारा सहस्रीघटैः
कुम्भेश्छिद्रशताष्टकैर्वरगवां शृङ्गाग्रधारादिभिः ।
स्नाप्याम्बुप्रमवेः महेशजनिम श्रीरुद्रमन्त्रैशिवे
पुण्यं प्राप्य स मोदते गिरिसुते कैलासमौोलौ गणः ॥… महादेवाख्ये एकादशांशे
कलशेनाथ शङ्खेन वर्धन्या पाणिना तथा । … शैवे वायवीयसंहितायाम्
संच्छाद्य सितवस्त्रेण लिङ्गसंशोधितैर्जलैः । सुवर्णताम्ररजतपात्रस्थैः शङ्खसंस्थितैः ॥
यद्वा नूतनमुत्पात्रसंस्थितैः स्नापयेच्छिवम् ॥ … आदित्ये
सुवर्णकलशेनाथ तथा वै राजतेन च । शङ्खने मृन्मयेनाथ शोभितेन शुभने च ॥ … सौरे
शङ्खेन मृन्मयेनाथ शोधितेन शुभेन वा । … लैङ्गे
वादनार्थ
झर्झरैः शङ्खपटहैर्भेरीडिण्डिमगोमुखैः। ललितावसितोद्गीतैर्वृत्तवल्गितगर्जितैः ॥
पूजितो वै महादेवः प्रमथैः प्रमथेश्वरः ॥ … वासिष्ठलैङ्गे
गणेन्द्रवचनोद्भूत शङ्खकाहलनिःस्वनैः । मृदङ्गढक्काभेरीणामारावोद्धोषिताम्बरः ॥
छत्रचामरमायूरव्यजनाक्तकरैर्गणैः । पार्श्वतः सेवितः शम्भुराययौ मङ्कणान्तिकम् ॥
… शिवरहस्ये ईश्वराख्ये दशमांशे
विविधर्मुरजाढक्काशङ्खदुन्दभिवादनैः । एवं चतुर्षु यामेषु भूतायामर्च्य शङ्करम् ॥ … शिवरहस्ये ईश्वराख्ये दशमांशे
ततो नीराजनं दद्यात् वादित्राणां निदानतः । शङ्खकाहलनिघेषिर्भेरीभाङ्कारमद्दलैः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
आधारपात्रमध्यस्थं शङ्खं वै दक्षिणावृतम् । सव्यावर्तात्कोटियुणं शिवार्चनविधौ विदुः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
स्नानकाले प्रकुर्वीत तौर्यत्रिकरवं शिवे । भेरीमदलशङ्खानां काहलं वरदुन्दुभीन् ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
देयं शिवाय वादित्र निनदं शङ्खकाहलम् । दुन्दुभी वेणुवीणाल्यं स्त्रीणां नाट्यं ततःपरम् ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खकांस्यादि वादित्रं यः शिवाय निवेदयेत् । स विमानैर्महाभोगेर्वशवीणाप्सरोगणैः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
शङ्खकाहलिभेरीणां जयशब्दः सुपूरितैः । नीराज्य प्राज्यधूपैश्च दीपैः कर्पूरखण्डजैः ॥ … शिवरहस्ये महादेवाख्ये एकादशांशे
जहाँ मध्योत्तर प्रान्त शिवपूजा में शङ्खनिषेध के लिए आग्रही हैं, वही दक्षिण प्रांतीय आस्तिकजन अभिषेक, अर्घ्य तथा मधुरघोष हेतु परंपरा से तथा उपरिनिर्दिष्ट प्रमाणों से भी शिवार्चन में शङ्खसमावेश करते आए हैं।
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरी नादयते। नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते ॥
ॐ हर हर हर महादेव इति गंगाधर (शिव) नीराजनेऽपि द्रष्टव्यम्।
आरती में झल्लरी बजा सकते तद्भिन्न निषिद्ध – यह भाव है कालिकापुराणोक्त वचन का।🌹
विभिन्न शैवागमों में शंखोदक से शिवाभिषेकम् का उल्लेख उपलब्ध है , पौराणिक शिवार्चन में शंखजल वर्जित आगमोक्त के समस्त अभिषेकम, पात्रासादनादि क्रियाओं में शंखोदक विहित।।
पंडित उमाकांत शर्मा का आलेख
शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया था और उसमें बताया गया है कि शंख से भगवान शिव की पूजा नहीं कर सकते परंतु विचारणीय तथ्य यह भी तो है यदि आप वर्जित करना चाहते हैं तो उसी शंखचूड नामक शंख को करें, अन्य शंख को नहीं!
ऐसा क्यों?
क्योंकि यदि सभी शंखों को भगवान शिव की पूजा में वर्जित किया गया है तो शिव महापुराण के पार्वती खंड में शिव पार्वती के विवाह में शंख ध्वनि की गई और शंखचूड के वध के बाद भी शंख नामक जाति की उत्पत्ति हुई तो फिर शिवजी के विवाह में और शंखचूड के वध के बाद जो शंख उत्पन्न हुए, दोनो अलग-अलग हैं! अतः सभी शंख वर्जित नहीं है!
अथर्व वेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त शंखमणि में शंख को राक्षसों का विनाश करने वाला कहा गया है !
तो फिर राक्षसों के विनाशक और पवित्र शंख से रुद्राभिषेक करने में कैसी आपत्ति, यदि दीक्षित हैं तो।
श्री लिंग महापुराण में भी शंख से अभिषेक के लिए कहा गया है ..
ताम्रेण पद्म पत्रेण पालाशेन दलेन वा । शंखेन मृन्मयेनाथ शोधितेन शुभेन वा॥
(श्री लिंग महापुराण अध्याय २७/श्लोक३८)
हमें लगता है कि श्रीलिंग महापुराण में भी शंख के विषय में शैव दीक्षित व्यक्ति के लिए ही कहा गया है, क्योंकि वह मुख्यतः शैव पुराण ही है।
आज भी श्री विद्या के उपासक श्री यंत्र का अभिषेक शंख के द्वारा करते हैं! भगवान शिव के आगमोक्त पूजन में सामान्य अर्घ्य के लिए भी शंख का उपयोग ग्राह्य है।
- आगम निगम भारतीय संस्कृति का आधार हैं, दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं।
- निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है।
- दक्षिण भारत में आगम तंत्र को प्रमुख मानते हैं इसलिए वहां पर शंख से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है जैसे श्री विद्या के उपासक अपनी नित्य उपासना में शंख से अर्घ्य-अभिषेक इत्यादि करतें हैं।
- जो अधिकतर निगम को मानते हैं वे शंख से भगवान शिव का अभिषेक नहीं करते,शंख का मात्र पूजन में उपयोग करतें हैं !
अतः मनुष्य समुदाय उलझन में ना पड़े, संक्षिप्त में यह जान लीजिए कि भगवान शिव की पूजा प्रायः दो रूपों में होती है आगम और निगम, जो व्यक्ति आगमोक्त दीक्षित है वह आगमोक्त होकर पूजन करें, उसमें रुद्राभिषेक के लिए शंख ग्राह्य है !
जो निगमोक्त दीक्षित है वह निगमोक्त होकर भगवान शिव का पूजन करें उसमे मात्र शंख का उपयोग, शंखनाद व पूजन इत्यादि के लिए कहा है ! अर्थात जिस प्रकार शिव महापुराण में अपने-अपने अधिकार में (वेदोक्त/पौराणिक) भगवान शिव का पूजन बताया ठीक उसी प्रकार, प्रत्येक मनुष्य समुदाय अपने-अपने अधिकार की सीमा में पूजन करे।
ध्यान दीजिएगा कि शंख की कई प्रजातियां कही गई है जैसे गणेश शंख, पांचजन्य शंख, सूर्य शंख, लक्ष्मी शंख, विष्णु शंख इत्यादि !तो फिर जिस शंखचूड़ की हड्डियों से शंख जाति(शंखचूड शंख)की उत्पत्ति हुई उसे ही भगवान शिव की पूजा में वर्जित करना चाहिए अन्य शखों को नहीं।( यदि आप वर्जित करना चाहे तो)
जिस प्रकार सभी देवी देवताओं की गायत्री कही गई है ठीक उसी प्रकार सभी देवी देवताओं के अपने-अपने शंख होते हैं !
स्त्री को शंख बजाना चाहिए या नहीं
स्त्री और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए–
स्त्रीणाञ्च शङ्खध्वनिभिः शूद्राणाञ्च विशेषतः।
भीता रुष्टा याति लक्ष्मीः स्थलमन्यत्स्थलात्ततः॥
(ब्रह्मवैवर्त्ते_प्रकृतिखण्डे-18)
अर्थ – स्त्री और शूद्रों की शंख ध्वनि से डर करके लक्ष्मी जी रुष्ट होकर अन्यत्र चलीं जातीं हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।