शिववास विचार – Shivwas Vichar

शिववास विचार

शिववास विचार – Shivwas Vichar 

भगवान शिव की पूजा के अनेक प्रकार और विधियां हैं। शिवपूजा में लिंग पूजा ही प्रमुख है। लिंग पूजा में भी अनेकों प्रकार होते हैं जैसे नर्मदेश्वर शिव लिंग, पार्थिव लिंग, पारद लिंग आदि। शिवलिंग की पूजा करने में अभिषेक का भी विशेष महत्व होता है जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता है। उसी प्रकार भगवान शिव की पूजा में शिववास विचार का विशेष प्रकार बताया गया है जिसका मुख्य अभिप्राय शिव के आवाहन करने से संबंधित प्रतीत होता है। शिववास के संबंध में अनेकों प्रश्न उत्पन्न होते हैं : 

  • शिव पूजन के लिए शिववास कैसे निकाला जाता है ?
  • शिववास का फलाफल क्या होता है ?
  • कब और कहां शिववास का विचार नहीं होता है ?

सर्वप्रथम शिववास का विचार पार्थिव शिवपूजन के लिए किया जाता है। शिववास निकालने के लिए 

  १ – तिथि को द्विगुणित करें …

  २ – फिर उसमें ५ जोड़ें 

  ३ – फिर उसमें ७ से भाग दें 

तिथिं च द्विगुणी कृत्वा पुनः पञ्च समन्वितम । सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।

इस तरह से जो शेष निकले उस शेष से शिववास का इस प्रकार विचार किया जाना चाहिए : 

एकेन वासः कैलाशे द्वितीये गौरी सन्निधौ । तृतीये वृषभारुढ़ः सभायां च चतुष्टये । 

पंचमे भोजने चैव क्रीड़ायां च रसात्मके । श्मशाने सप्तशेषे च शिववासः उदीरितः ।।

  यदि शेष :-  १ बचे तो कैलाश में, २ शेष बचने पर गौरी सानिध्य में, ३  शेष में वृषभारुढ, ४  में सभामध्य,

५  में भोजन करते हुए, ६  शेष में क्रीड़ारत और ७  यानी शून्य शेष रहने पर शिव को श्मशान वासी जाने ।

  अब शेष के विचार से वास निकल जाने पर उनके फलाफल इस प्रकार होते हैं :-

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः । वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभा संतापकारिणी । 

भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च । श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत् ।।

  1. कैलाश वासी शिव – सुख प्राप्ति होती है ।
  2. गौरी-सानिध्य – सुख-सम्पदा की प्राप्ति होती है ।
  3. वृषारुढ़ – अभीष्ट की सिद्धि होती है ।
  4. सभासद – संताप होता है ।
  5. भोजन – पीड़ादायी है ।
  6. क्रीड़ारत – कष्टकारी है।  तथा 
  7. श्मशानवासी – मरण या मरण तुल्य कष्ट देता है ।

शिववास निकालना और उनके फलाफल को हम जान चुके हैं अब हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि कब और कहां शिववास का विचार करें ? कब और कहां विचार न करें ?

इसपर विचार करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि जब भगवान शिव के किसी भी स्वरूप का आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा करनी हो तो शिववास का विचार करना चाहिए।

जब कभी जहां कहीं भी हमें शिव का आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा नहीं करनी हो तो शिववास का विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। 

यदि शिवजी का कोई अनुष्ठान कर रहे हैं जैसे महामृत्युंजय जप, कई दिनों का पार्थिव शिवपूजन आदि तो प्रथम दिन शिववास का विचार करना चाहिए। 

अर्थात शिवानुष्ठान में भी प्रथम दिन के अतिरिक्त अन्य किसी दिन शिववास विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। 

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत
 यहाँ पर विशेष ये है कि जब बृहद संख्या में पार्थिव शिवपूजन करते हैं जो कई दिनों तक चलने वाला हो तो वहां भी केवल प्रथम दिन ही शिववास विचार करने की आवश्यकता होगी , आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा तो प्रतिदिन होगा लेकिन फिर भी प्रतिदिन शिववास विचार नहीं किया जायेगा।

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत

 

एक और महत्वपूर्ण बात शिववास विचार करते समय यह ध्यान रखा जाना विशेष आवश्यक है कि जिस समय आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे हैं उस समय की तिथि से विचार किया जायेगा , न की औदयिक तिथि का। 

हम जिस समय शिव का आवाहन करेंगे उस समय शिव जिस जगह होंगे अर्थात शिववास गणना से जिस-जिस  अवस्था में शिव आवाहन करेंगे उसी अवस्था के अनुसार फलाफल विचार किया जायेगा। 

महामृत्युंजय जाप सामग्री
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महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि
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