हम स्वस्तिवाचन (Swastiwachan) मंत्र अथवा भद्रसूक्त अथवा वेदोक्त स्वस्तिवाचन आदि से परिचित हैं, पाठ भी करते हैं। किन्तु जब यजमान अनुपनीत हो अथवा स्खलित ब्राह्मण हो तो वेद मंत्र का प्रयोग नहीं कर सकते और तब हमें पौराणिक स्वस्तिवाचन की आवश्यकता होती है। यहां पौराणिक स्वस्तिवाचन मंत्र दिया गया है जो उपरोक्त स्थिति में उपयोगी सिद्ध होगा।
स्वस्तिवाचन मंत्र पौराणिक – Swastiwachan
पूजा-अनुष्ठानकिसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पवित्रीकरणादि के पश्चात प्रथमतः स्वस्तिवाचन किया जाता है। भद्रसूक्त का पाठ करना स्वस्तिवाचन कहलाता है । भद्रसूक्त उन मंत्रों का समूह है जिसमें हम कल्याणकामना करते हैं । जब हमें पौराणिक स्वस्तिवाचन की आवश्यकता होती है तो सरलता से उपलब्ध नहीं होती और हम विकल्पाभाववश भद्रसूक्त का ही पाठ कर देते हैं।
किन्तु जहां भद्रसूक्त का पाठ निषिद्ध है वहां पौराणिक स्वस्तिवाचन ही करना चाहिये और यहां पौराणिक स्वस्तिवाचन दिया गया है इस कारण यह विशेष महत्वपूर्ण है।हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर इष्ट का ध्यान करते हुए स्वस्तिवाचन करना चाहिए :-
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बकेगौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् ।
येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः॥
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपतेर्तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥
विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् ।
सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्वकामार्थ सिद्धये ॥
करोतु स्वस्ति ते ब्रह्मा स्वस्ति वापि द्विजातयः ।
सरीसृपाश्च ये श्रेष्ठास्तेभ्यस्ते स्वस्ति सर्वदा ॥
ययातिर्नहुषश्चैव धुंधुमारी भगीरथः ।
तुभ्यं राजर्षयः सर्वे स्वस्ति कुर्वंतु नित्यशः ॥
स्वस्ति तेस्तु द्विपादेभ्यश्चतुष्पादेभ्य एव च ।
स्वस्त्यस्त्वपादकेभ्यश्च सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा ॥
स्वाहा स्वाधा शची चैव स्वस्ति कुर्वंतु ते सदा ।
लक्ष्मीररुंधती चैव कुरुतां स्वस्ति तेऽनघ ॥
असितो देवलश्चैव विश्वामित्रस्तथांगिराः ।
स्वस्ति तेऽद्य प्रयच्छंतु कार्तिकेयश्च षण्मुखः ॥
विवस्वान्भगवान् स्वस्ति करोतु तव सर्वदा ।
दिग्गजाश्चैव चत्वारः क्षितिश्च गगनं ग्रहाः ॥
अधस्ताद्धरणीं योऽसौ नागो धारयते सदा ।
शेषः स पन्नगश्रेष्ठः स्वस्ति तुभ्यं प्रयच्छतु ॥
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः॥ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः॥ उमा महेश्वराभ्यां नमः॥ वाणीहिरण्य-गर्भाभ्यां नमः॥ शचीपुरन्दराभ्यां नमः॥ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः॥ इष्टदेवताभ्यो नमः॥ कुलदेवताभ्यो नमः॥ ग्रामदेवताभ्यो नमः॥ वास्तुदेवताभ्यो नमः॥ स्थानदेवताभ्यो नमः॥ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः॥ सर्वाभ्यो देवीभ्यो नमः॥ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः॥
॥ ओं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥ सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ॥
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