सूतके “वर्तमाने”
सूतके “वर्तमाने” च तत्रोत्पन्ने सदा बुधैः । देवीपूजा प्रकर्तव्या पशुयज्ञविधानतः ॥
सूतके “वर्तमाने” च तत्रोत्पन्ने सदा यहां दो प्रकार के अशौच की चर्चा है तत्रोत्पन्ने अर्थात नवरात्र आरंभ होने के उपरांत अशौच होने पर है और इसकी सर्वत्र चर्चा हो है ही कि कर्म आरंभ होने के उपरांत अशौच मान्य नहीं होता। किन्तु सूतके “वर्तमाने” का तात्पर्य है नवरात्र आरम्भ होने से पूर्व यदि सूतक वर्तमान हो तो भी नवरात्र करे और पशुयज्ञ के विधान से करे। पशुयज्ञ विधान की व्याख्या तो नहीं की जा सकती किन्तु सूतक वर्त्तमान होने पर अमान्य कैसे होगा इसको अन्य प्रमाण के माध्यम से अवश्य समझा जा सकता है।
वास्तव में इसका संबंध विशेष विधि से नवरात्र करने वालों के लिये है जो प्रतिमा निर्माण करके नवरात्र महोत्सव करते हैं। विशेष विधि से प्रतिमा निर्माण कर नवरात्र करने वालों का कर्मारंभ नवरात्र में नहीं अपितु 6 – 7 दिन पूर्व ही हो जाता है और इसे समझने के लिये आगे प्रमाण दिया गया है :
कृत्यतत्त्वार्णव व लिंग पुराण का प्रमाण निर्णयसिंधु आदि ग्रंथों में भी उद्धृत किया गया है :
कन्यायांकृष्णपक्षे तु पूजयित्वार्द्रभेपि वा । नवम्यां बोधयेद्देवीं महाविभवविस्तरैः ॥
शुक्लपक्षे चतुर्थ्यां तु देवी केशविमोक्षणम् । प्रातरेवतु पंचम्यां स्नापयेत्सुशुभैर्जलैः ॥
षष्ठ्यांसायमकुर्वीत बिल्ववृक्षेधिवासनम् । सप्तम्यांपत्रिका पूजा अष्टम्यांचाप्युपोषणम् ॥
पूजा च जागरश्चैव नवम्यां विधिवद्बलिः । विसर्जनं दशम्यां तु क्रीडा-कौतुक मंगलैः ॥
कन्यायांकृष्णपक्षे तुपूजयित्वार्द्रभेपि वा । नवम्यां बोधयेद्देवीं महाविभवविस्तरैः ॥ -यह प्रतिमा निर्माण कर विशेष विधि से पूजा करने वालों का नियम है। नवरात्र व्रत भले ही आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ हो किन्तु कर्म का आरंभ बोधन से ही हो जाता है जिसके लिये कृष्ण पक्ष में आर्द्रा नक्षत्र युक्त नवमी अथवा आर्द्रा नक्षत्र का अभाव होने पर भी नवमी को ही बोधन करे। बोधन का तात्पर्य प्रतिमा निर्माण करना लिया जा सकता है।
अब इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कर्मारंभ आश्विन कृष्ण नवमी को ही हो जाता और कर्मारम्भ होने के कारण तत्पश्चात जो अशौच होगा वो नवरात्रा आरंभ होने पर भी अमान्य होगा। और नवरात्र में अशौच होने पर भी नवरात्र करने संबंधी जो वचन सूतके “वर्तमाने” च तत्रोत्पन्ने सदा प्राप्त होता है वह इस प्रकार विशेष विधि से नवरात्र करने वालों के प्रति ही है, इस विधि से रहित सामान्य नवरात्र करने वालों के लिये अशौच में भी आरंभ करने की सिद्धि नहीं होती।
अशौच का तात्पर्य मरणाशौच ही ग्रहण करना चाहिये जो कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है, जननाशौच नहीं।






