मासिक व्रत : कार्तिक माह 2024 के सभी व्रत-पर्व

कार्तिक माह 2024 के सभी व्रत-पर्व

कार्तिक मास अत्यंत ही पुण्यप्रद मास कहा गया है और अन्य व्रत-पर्वों की चर्चा तो अलग है कार्तिक मास भी स्वयं में ही व्रत होता है। आस्थावान जन कार्तिक मास में कल्पवास करते हैं, संपूर्ण मास ही धर्म-कृत्यों में व्यतीत करते हैं जिसके लिये ग्रामीणों के पास ही समय हो सकता है, नगरवासियों के पास इतना समय कहां से आ सकता है की वो पूरे माह धर्म-कृत्यों में ही लीन रहें।

इसके साथ ही और भी अनेकों विशेष व्रत-पर्व होते हैं यथा : आकाश दीप दान, धनतेरस, यमचतुर्दशी, दीपावली, पितृविसर्जन, काली पूजन, अन्नकूट, भ्रातृद्वितीया, छठ व्रत, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी आदि। इस आलेख में सम्पूर्ण कार्तिक मास के व्रत-पर्वों की जानकारी दी गयी है।

जैसा कि यह स्पष्ट हो चुका है कार्तिक मास पूर्णरूपेण व्रत-पर्वादि धार्मिक कृत्यों के लिये ही है और कार्तिक मास स्वयं में भी एक व्रत ही है। इसलिये सर्वप्रथम कार्तिक मास के संबंध में ही जानेंगे तत्पश्चात कार्तिक मास के अन्य व्रत-पर्वों के बारे में। व्रत-पर्वों के बारे में विस्तृत चर्चा कर्मकांड विधि पर पूर्व ही की जा चुकी है अतः विस्तृत जानकारी हेतु उन आलेखों के लिंक दिये जायेंगे जिसे पढ़कर किसी व्रत-पर्व की और विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकेगी।

व्रत-पर्वों की चर्चा करने से पूर्व एक और महत्वपूर्ण विषय है कि व्रत-पर्व का निर्णय दृक पंचागों के द्वारा होना चाहिये न कि चन्द्रसत्यापनरहित अदृश्य पंचांगों के द्वारा। यद्यपि अदृश्य पंचांगों में कुतर्क करते हुये यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है कि तिथि अदृश्य है और व्रत तिथि के आधार पर किया जाता है इसलिये अदृश्य पंचांगों द्वारा ही निर्णय करना उचित है। किन्तु यह भ्रमित करते हुये स्वयं के व्यवसाय (पंचांग प्रकाशन) को सुरक्षित रखने का प्रयास।

क्योंकि यह नियम तो तभी समाप्त हो जाता है जब ब्रह्मसिद्धांत से गणना नहीं की जाती है क्योंकि यदि अदृश्य में फलदायकत्व है तो जो सर्वाधिक अदृश्य हो उसमें सर्वाधिक फल होगा, फिर सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से गणना क्यों करें।

कार्तिक मास (कार्तिक महात्म्य)

जैसा कि यह स्पष्ट हो चुका है कार्तिक मास पूर्णरूपेण व्रत-पर्वादि धार्मिक कृत्यों के लिये ही है और कार्तिक मास स्वयं में भी एक व्रत ही है। इसलिये सर्वप्रथम कार्तिक मास के संबंध में ही जानेंगे तत्पश्चात कार्तिक मास के अन्य व्रत-पर्वों के बारे में। व्रत-पर्वों के बारे में विस्तृत चर्चा कर्मकांड विधि पर पूर्व ही की जा चुकी है अतः विस्तृत जानकारी हेतु उन आलेखों के लिंक दिये जायेंगे जिसे पढ़कर किसी व्रत-पर्व की और विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकेगी।

कार्त्तिके सकलं मासं प्रातः स्नायी जितेन्द्रियः। जपन् हविष्यभुक् शान्तः सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ – संपूर्ण कार्तिक मास प्रातः स्नान, इन्द्रियों पर नियंत्रण, हविष्यान्न का भोजन करते हुये शान्तचित्त रहने वाला सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

कार्तिक मास 2024

कार्तिक मास 2024 शुक्रवार 18 अक्टूबर से आरंभ से आरंभ हो रही है और 15 नवंबर शुक्रवार तक है।

कार्तिक मास - कार्तिक महात्म्य, मासिक व्रत
कार्तिक मास – कार्तिक महात्म्य

गांवों के लोग उनमें भी विशेष रूप से गंगातीरवासी सदा कार्तिक मास करते हैं, जो नगरवासियों से लिये दुर्लभ है। भगवान की कृपा का यही फल होता है कि सत्कर्मों में प्रवृत्त होने का विचार, व्यवस्था और समय सभी उपलब्ध होते हैं। कार्तिक मास करने वाला प्रतिदिन प्रातः स्नान करके पूजा, जप, कथाश्रवण, आदि कार्यों को करके सायं काल में आकाशदीप का दान करते हैं। कार्तिक मास व्रत संबंधी अन्य विशेष विधि, कार्तिक माहात्म्य कथा आदि अन्य आलेख में दिये जायेंगे, यहां विशेष आवश्यक होने के कारण कार्तिक मास में स्नान करने का और आकाशदीप दान करने का मंत्र दिया जा रहा है :

  • प्रातः स्नानमन्त्र – कार्त्तिकेऽहं करिष्यामि प्रातः स्नानं जनार्दन। प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह ॥
  • आकाशदीप दान में : दामोदराद्य नभसि तुलायां लोलया सह। प्रदीपं ते प्रयच्छामि नमोऽनन्ताय वेधसे॥

धन्वन्तरि जयंती – धनतेरस

धन्वंतरि जयंती की बात करें तो 2024 में 29 अक्टूबर, मंगलवार को प्रदोषव्यापिनी त्रयोदशी है अतः इसी दिन धनतेरस है। धन्वंतरि जयंती को ही धनतेरस भी कहा जाता है। समुद्रमंथन से धन्वन्तरि प्राकट्य हुआ था और धन्वन्तरि स्वयं नारायण के ही अंश कहे गये हैं – नारायणांशो भगवान् स्वयं धन्वन्तरिर्महान्। पुरा समुद्रमथने समुत्तस्थौ महोदधेः॥ शास्त्रों में अकालमृत्यु निवारण हेतु कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यमदीप दान करने की विधि बताई गई है। लगभग इसी दिन धन्वन्तरि जयंती या धनतेरस भी होता है; लेकिन ये अनिवार्य नहीं है, कई बार पहले दिन धनतेरस और दूसरे दिन यमदीप दान होता है। अकाल मृत्यु निवारण के उपाय यमदीप दान पढ़ें

निर्णयामृत, स्कंद पुराण से – कार्तिकस्यासितेपक्षे त्रयोदश्यांनिशामुखे ॥ यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ॥ कार्तिक कृष्ण (असित) पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष काल में घर के बाहर यमदीप दान करना चाहिए, यह अपमृत्यु निवारक होता है।

लघु दीपावली : दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को लघुदीपावली मनाई जाती है। 2024 में 31 अक्टूबर, गुरुवार को लघु दीपावली है। अदृश्य पंचांगों में जो चन्द्रमा द्वारा सत्यापित नहीं है अंतर पाया जा रहा है।

दीपावली

2024 में 31 अक्टूबर गुरुवार को चतुर्दशी 15:52 बजे तक है तत्पश्चात अमावास्या अगले दिन शुक्रवार 1 नवम्बर 2024 को 18:16 बजे तक है। स्पष्टतः दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावास्या मिलेगी जहां तक सूर्यास्त 18:16 से पूर्व होता हो । स्पष्टतः नियमानुसार दूसरे दिन दीपावली होनी चाहिए, यदि मुख्य नियम का कोई अन्य बाधक नियम न हो अथवा अपवाद व्रतों वाला कोई अन्य विशेष नियम न हो तो। ऐसी स्थिति में दीपावली हेतु दो और विशेष नियम हैं जो मुख्य नियम का बाधक है। दीपावली पर अदृश्य पंचांगों द्वारा दिया जो बताया गया है वह ग्राह्य नहीं है।

यहां पर एक विशेष नियम तिथितत्व में वर्णित है कि यदि दोनों दिन अमावास्या प्रदोष व्यापिनी हो तो भी अगले दिन रात में अर्थात् सूर्यास्त के पश्चात् न्यूनतम 1 दण्ड अमावास्या हो तो ही पहले दिन का त्याग और अगले दिन को ग्रहण करना जाना चाहिए ।

अर्थात् यदि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात् एक दण्ड से कम अमावास्या रहे तो पहले दिन करना चाहिए। इस विशेष नियम से जहां सूर्यास्त (18:16-00:24) = 17:52 से पहले होगा वहां 1 नवम्बर 2024 को और जहां सूर्यास्त 17:52 बजे के बाद होगा वहां 31 अक्टूबर 2024 को दीपावली होनी चाहिए। ये दीपावली कब है 2024 के संदर्भ में है ।

दीपावली के दिन पितृकर्म भी होता है, कार्तिक अमावस्या को ही पितर पृथ्वीलोक से प्रस्थान करते हैं। पितृगण भूलोक पर आते कब हैं इसकी चर्चा पितृपक्ष संबंधी आलेख में की गयी है। इसी प्रकार पितृगण प्रस्थान कब करते हैं और पितरों का विसर्जन कब व कैसे किया जाता है इसकी चर्चा उल्का भ्रमण वाले आलेख में की गयी है। दोनों आलेख यहां दिये गये हैं, पढ़ने के लिये तत्तत् छवियों पर क्लिक करें। – पितृपक्ष श्राद्ध तर्पण

उल्काभ्रमण विधि

दीपावली को लक्ष्मी पूजा तो होता ही है। लक्ष्मी का वास, दरिद्रा का निष्कासन अलग क्रिया है लेकिन व्यवहार में यह भी देखा जाता है कि उल्का भ्रमण करने से पूर्व जब द्वार पर उल्का जलाया जाता है तो उसे तीन बार देहली के भीतर-बाहर भी किया जाता है और उसी समय “लक्ष्मी घर दरिद्रा बाहर” बोलते हुए लक्ष्मी वास और दरिद्रा निष्कासन समझ लिया जाता है।

पितृपक्ष में यमलोक से पितृगण पृथ्वी पर अन्न-जलादि की आकांक्षा से आते हैं; और पितरों के आने से ही महालय सिद्ध होता है। पितृपक्ष में तर्पण-श्राद्ध आदि के द्वारा पितरों को अन्न-जलादि प्रदान किया जाता है।

यदि पितर गण यमलोक से आते हैं तो वापस भी जाना ही चाहिए। कार्तिक अमावास्या को पितर वापस यमलोक जाते हैं।यममार्ग अंधकारमय होता है इसलिए पितरों को मार्ग में प्रकाश की प्राप्ति कामना से उल्काभ्रमण किया जाता है और यही शास्त्रसम्मत है। पितरों को मार्गप्रदर्शन हेतु उल्काभ्रमण विधि और मंत्र का शास्त्रों में उल्लेख किया गया है।

तत्पश्चात लक्ष्मी से तो दीपावली संबध है ही और दरिद्रता के निवारण का भी विधान है ही। घर में लक्ष्मी कब आती है : घर में लक्ष्मी – कार्तिक माह, कृष्ण पक्ष, अमावास्या तिथि, आधी रात को आती है, शास्त्रों में यही लिखा है।

अर्द्धरात्रि को लक्ष्मी अपना निवास स्थान ढूंढने के लिये भ्रमण करती है। अतः घर को फूल-माला आदि से सजाकर; स्वयं अलंकृत होकर (सज-संवरकर) लक्ष्मी के स्वागत में दीपोत्सव करें। यानि दीपावली अर्द्धरात्रि को लक्ष्मी घर में आती है। विस्तृत चर्चा जिस आलेख में की गयी है वो आलेख यहां दिया जा रहा है यदि पढ़ना चाहें तो उन आलेखों को भी पढ़ सकते हैं : घर में लक्ष्मी कब आती है ?

लक्ष्मी माता की अकृपा होने पर देवता भी त्राहिमाम करने लगते हैं और पुराणों में कथा है कि सागर मंथन मुख्य रूप से लक्ष्मी के लिये ही किया गया था, अन्य रत्न व अमृत आदि तो अतिरिक्त वस्तुयें थीं। सभी मनुष्य चाहते हैं कि उनके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा हो लेकिन इसके लिये सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि माता लक्ष्मी की कृपा में बाधा क्या है। इस आलेख में यही बताया गया है कि घर में लक्ष्मी क्यों नहीं आती है ?

लक्ष्मी धन, संपत्ति और समृद्धि की प्रतीक है। जो लक्ष्मीहीन होता है वह बहुत ही दुखी होता है। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई का अंश है “नहि दरिद्र सम दुःख जग माही।” अर्थात संसार में दरिद्रता के सामान कोई और दूसरा दुःख नहीं होता है। इस आलेख में लक्ष्मी की अकृपा के कारणों की चर्चा की गयी है, साथ ही यदि लक्ष्मी की कृपा प्राप्त है तो वो निरंतर कैसे बनी रहेगी इसको भी समझाया गया है।

इसके पश्चात् दीपावली की रात्रि सामान्य रात्रि नहीं होती है। श्रीदुर्गा सप्तशती में ही तीन रात्रियों को विशेष रात्रि कहा गया है : कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि। दीपावली की रात्रि कालरात्रि कही जाती है। इस रात्रि निशीथ काल में भगवती की विशेष उपासना होती है और मुख्य रूप से काली-तारा आदि की प्रतिमा बनाकर अराधना की जाती है। मुख्य रूप से श्यामा पूजा अर्थात काली पूजा की जाती है। यद्यपि यह अनिवार्य नहीं है कि दीपावली और श्यामा पूजा एक दिन ही हो क्योंकि दीपावली के लिये प्रदोषव्यापिनी अमावास्या अनिवार्य है तो श्यामा पूजा के लिये निशीथ व्यापिनी। काली पूजा विधि, श्यामा पूजा कब है

छठ पूजा कब है 2024 में

  • 2024 में छठ व्रत 7 नवम्बर गुरुवार को है ।
  • बिहार में इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत में शुद्धता का चरमोत्कर्ष देखा जाता है। व्रत से एक दिन पूर्व एकभुक्त (खरना) होता है इस कारण –
  • 2024 में खरना 6 नवम्बर बुधवार के दिन होगा, और व्रत से दो दिन पूर्व नहाय-खाय होता है इस कारण :-
  • नहाय-खाय 5 नवम्बर मंगलवार को होगा।
  • छठ व्रत सूर्य भगवान का व्रत होता है ।
  • और अधिक विस्तृत जानकारी के लिये यहां दिये गये आलेख को पढ़ सकते हैं।
  • कृतनित्यकृत्या व्रती सायंकाल नदी/तालाब/गृहपोखर के तट पर आकर पुनर्स्नान करके तिलजलादि लेकर संकल्प करे ।
  • तत्पश्चात् भगवान सूर्यनारायण का आवाहन करके फलपक्वान्नादियुक्त डाला व ताम्रअर्घ्यपात्र (जल, लाल चंदन, लाल फूल, लाल अक्षतयुत) अर्घ्यमंत्रों को पढ़े ।
  • तत्पश्चात् खड़ा होकर अर्घ्य प्रदान करे । परिवारजन भी अर्घ्य दे ।
  • फिर अन्य सम्पादित सामग्रियों से पूजा करके प्रदक्षिणा करके नमस्कार मंत्र पढकर प्रणाम निवेदन करे ।
  • तत्पश्चात् डाला अर्पित करके कथा श्रवण करे ।
  • छठ पूजा विधि और मंत्र की अधिक जानकारी के लिये यहां दिये गए आलेख को पढ़ सकते हैं।

छठ पूजा मंत्र

अक्षय नवमी

अक्षय नवमी का सनातन में बहुत ही विशेष महत्व है। इस दिन स्नान, दान, पूजा आदि पुण्य कामना से किये जाते हैं। इस वर्ष 2024 में अक्षय नवमी 10 नवम्बर रविवार को है।

सूर्य ग्रहण में, कुरुक्षेत्र में, तुलादान में जितना पुण्य प्राप्त होता है शास्त्रों द्वारा अक्षय नवमी के दिन सविधि कूष्माण्ड दान में उतना ही पुण्य घोषित किया गया है। महापातक – उपपातक एवं अन्य पापों का भी इससे शमन होता है। पुत्र, पौत्र, श्री, सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि में यह पुण्य सहायक होता है और कूष्माण्ड में जितने बीज होते हैं उतने हजार वर्षों तक ब्रह्मलोक में निवास का भी फल बताया गया है।

देवोत्थान एकादशी

हरिवासर क्या है और कब है

आ-भा-का-सितपक्षस्य मैत्रश्रवणरेवती । सद्वादशी बुधवारेण हरेर्वासर उच्यते ॥

एक वचन तो इस प्रकार है “आ-भा-का-सितपक्षेषु मैत्रश्रवणरेवती । सङ्गमे नहि भोक्तव्यं द्वादश द्वादशीर्हरेत् ॥” अर्थात आषाढ़, भाद्र और कार्तिक मासों के शुक्ल पक्ष में यदि (क्रमशः) अनुराधा, श्रवण और रेवती नक्षत्र हो तो उस संगम में भोजन न करे। इसी प्रकार से भोजन (पारण) निषेध के और भी अनेकों प्रमाण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि हरिवासर न भी हो तो भी उपरोक्त नक्षत्र योग मात्र होने से भी पारण नक्षत्र समाप्ति होने पर ही करे। हरिवासर योग का वर्णन भी इसी प्रकार से थोड़ा परिवर्तन करके बुधवार का योग होना बताया गया है, अर्थात यदि बुधवार दिन भी तो वो हरिवासर योग होता है।

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