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नवग्रह मंडल पूजा |
किसी भी पूजा-अनुष्ठान-यज्ञ में नवग्रह मंडल अवश्य ही बनाया जाता है। नियमानुसार नवग्रह मंडल हवन कुंड के ईशानकोण में बनाया जाना चाहिये। इससे दो बातें स्पष्ट होती है :
- हवन कुंड या वेदी बनाने के बाद नवग्रह मंडल बनाना चाहिये।
- नवग्रह मंडल हवन कुंड या वेदी अथवा यदि भूमि पर भी हवन करना हो तो उसके ईशानकोण में होना आवश्यक होता है।
नवग्रह मंडल बनाने के लिये महत्वपूर्ण बातें :
- नवग्रह मंडल चौकोर पीढ़े या पट्टे पर बनाना चाहिये।
- नवग्रह मंडल के लिये भी वेदी का आकार न्यूनतम हस्त मात्र अवश्य हो।
- नवग्रह मंडल में ४-४ रेखायें करने पर कुल ९ कोष्ठक बनाये।
- नवग्रह मंडल में भी मेखला आवश्यक होता है।
- यदि नवग्रह मंडल न बनाया गया हो तो कलश पर भी पूजा की जा सकती है अथवा अष्टदल पर भी पूजा की जा सकती है।
नवग्रह मंडल पूजा
१- सूर्य (मध्य में गोलाकार, लाल) का आवाहन (लाल अक्षत-पुष्प लेकर) – ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥ ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूभुर्वः स्वः कलिंग देशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य । इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः॥
२- चन्द्र (अग्निकोण में, अर्धचन्द्र, श्वेत) का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्पसे) – ॐ इमं देवा असपत्न ᳪ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय । इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ᳪ राजा । ॐ दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् । ज्योत्सनापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः ।
३- मंगल (दक्षिण में, त्रिकोण, लाल) का आवाहन (लाल फूल और अक्षत लेकर) – ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपाᳪ रेताᳪ सि जिन्वति ॥ ॐ धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम ।इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः ।
४- बुध (ईशानकोण में, हरा, धनुष) का आवाहन (पीले, हरे अक्षत-पुष्प लेकर) – ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वभिष्टापूर्ते स ᳪ सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ॥ ॐ प्रियंगुकलिका भासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः ।
५- बृहस्पति (उत्तर में पीला, चतुरस्र) का आवाहन (पीले अक्षत-पुष्पसे) – ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥ ॐ देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम् । वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्व सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः ।
६- शुक्र (पूर्व में श्वेत, पञ्चास्र या षडस्र) का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्प से) – ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ᳪ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥ ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भुर्भूवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र । इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः।
७- शनि (पश्चिम में, काला मनुष्य) का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प से) – ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥ ॐ नीलांबुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः ।
८ – राहु (नैऋत्यकोण में, काला मकर) का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प से)- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः । सखा कया सचिष्ठया वृता ॥ ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं राहुमावाहयाम्यहम् । ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो । इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ राहवे नमः ।
९ – केतु (वायव्यकोण में, कृष्ण खड्ग) का आवाहन (धूमिल अक्षत-पुष्प लेकर) – ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥ ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो । इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ केतवे नमः ।
नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा –
आवाहन और स्थापन के बाद हाथ में अक्षत लेकर अगले मन्त्र से नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा कर अक्षत छोड़े ।
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टंयज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ ॥ अस्मिन् नवग्रह मण्डले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
नवग्रह पूजन – अब आवाहन , स्थापन पश्चात नवग्रहों का डी पी कर्मकांड भाग- २ अनुसार इनकी पूजा करे । आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः । इस नाम मन्त्र से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करे-
प्रार्थना – ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च । गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥ सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः । राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
अधिदेवता-आवाहन-पूजन
अब, उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में दायीं ओर अधिदेवताओं का आवाहन करेंगे । स्कन्धपुराण में इनका स्थान इस प्रकार निर्दिष्ट है, अधिदेवता – शिवः शिवा गुहो विष्णुर्ब्रह्मेन्द्रयमकालकाः । चित्रगुप्तोऽथ भान्वादेर्दक्षिणे चाधिदेवता ।। इन सबके लिए सिर्फ हरिद्रारंजित चावल का प्रयोग करना चाहिए। आवाहन और प्रतिष्ठा नवग्रहक्रम से ही करना है –
१.शिव (सूर्य के दायें भाग में)- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । ॐ एह्येहि विश्वेश्वरनस्त्रिशूलकपालखट्वाङ्गधरेण सार्धम् । लोकेश यक्षेश्वर यज्ञसिद्ध्यै गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ।। ॐ भूर्भुवःस्वः ईश्वराय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
२.उमा (चन्द्रमा के दायें भाग में) – ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रो पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाणसर्वलोकम्मऽइषाण। ॐ हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम् । लम्बोदरस्य जननीमुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः उमायै नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
३.स्कन्द (मंगल के दायें भाग में) – ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानः उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहूऽउपस्तुत्यं महिजातन्ते अर्वन् ।। ॐ रुद्रतेजः समुत्पन्नं देवसेनाग्रगं विभुम् । षण्मुखं कृत्तिकासूनुं स्कन्दमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः स्कन्दाय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
४.विष्णु (बुध के दायें भाग में)- ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्र्रुवोसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।। ॐ देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम् । चतुर्भुजं रमानाथं विष्णुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
५.ब्रह्मा (बृहस्पति के दायें भाग में)- ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसश्च विवः।। ॐ कृष्णाजिनाम्बरधरं पद्मसंस्थं चतुर्मुखम् । वेदाधारं निरालम्बं विधिमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
६. इन्द्र (शुक्र के दायें भाग में) – ॐ सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमम्पिब वृत्रहा शूर विद्वान् जहि शत्रूँरपमृधोनुदस्वाथाभयङ्कृणुहि विश्वतो नमः ।। ॐ देवराजं गजारुढं शुनासीरं शतक्रतुम् । वज्रहस्तं महाबाहुमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
७. यम (शनि के दायें भाग में)- ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मः पित्रे ।। ॐ धर्मराजं महावीर्यं दक्षिणादिक्पतिं प्रभुम् । रक्तेक्षणं महाबाहुं यममावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः यमाय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
८. काल (राहु के दायें भाग में)- ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाक्षित्याऽउन्नयामि समापोऽअद्भिरग्मतसमोषधी-भिरोषधीः ।। ॐ अनाकारमन्ताख्यं वर्तमानं दिने-दिने। कलाकाष्ठादिरुपेण कालमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः कालाय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
९. चित्रगुप्त (केतु के दायें भाग में)- ॐ चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय ।। ॐ धर्मराजसभासंस्थं कृताकृत विवेकिनम् । आवाहये चित्रगुप्तं लेखनीपत्रहस्तकम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः चित्रगुप्ताय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
इस प्रकार अधिदेवताओं के आवाहन के पश्चात् अब, उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में बांयी ओर प्रत्यधिदेवताओं का आवाहन करेंगे । थोड़ा थोड़ा छोड़ते जायेंगे कथित स्थानों पर । इस सम्बन्ध में शान्तिमयूष में निर्देश है – अधिदेवा दक्षिणतो वामे प्रत्यधिदेवताः । स्थापनीया प्रयत्नेन व्याहृतीभिः पृथकपृथक । प्रत्यधिदेवताः – अग्निरापः क्षितिर्विष्णुरिन्द्रश्चैन्द्री प्रजापतिः । सर्पो ब्रह्मा च निर्दिष्टा प्रत्यधिदेवा यथाक्रम् ।। अन्यत्रश्च – अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणी पितामहाः। पन्नगाः कः क्रमाद् वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः ।। अर्थात सूर्यादि नवग्रहों के वाम भाग में क्रमशः अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति, सर्प और ब्रह्मा की स्थापना करे । ये प्रत्यधिदेवता कहे गये हैं । (ध्यातव्य है कि कुछ नामों की पुनरावृत्ति हो रही है – जैसे विष्णु अधिदेवता सूची में आ चुके हैं, साथ ही प्रत्यधिदेवता सूची में भी हैं । ध्यातव्य है कि बुध के अधिदेवता-प्रत्यधिदवता दोनों विष्णु ही हैं, अतः दो बार इनका आवाहन पूजन होगा । ठीक वैसे ही जैसे एक ही व्यक्ति दो पदभार सम्भाल रहा हो । इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए । एक ही देवता का दो स्थानों पर यानी दो बार आवाहन-पूजन किया जायेगा । आगे अन्य स्थानों पर भी इस प्रकार की स्थिति मिलेगी । जैसे-प्रारम्भ में गणेशाम्बिका पूजन कर चुके है, पुनः पंचलोकपाल में भी गणेश है, दिक्पाल में इन्द्र, ब्रह्मा, यम, अग्नि आदि की आवृत्ति हुयी है ।)
प्रत्यधिदेवता-आवाहन-पूजन –
१. अग्नि(सूर्य के बायें)- ॐ अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुपब्रुवे देवाँ२ ऽआसादयादिह ।। ॐ रक्तमाल्याम्बर धरं रक्तपद्मासनस्थितम् । वरदाभयदं देवमग्निमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः अग्नये नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
२.अप् (जल) – (चन्द्रमा के बायें) – ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवस्तानऽऊर्जे दधातन महेरणाय चक्षसे यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः उशतीरिव मातरः। तस्माऽअरङ्गमामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ आपो जनयथा च नः।। ॐ आदिदेवसमुद्भूतजगच्छुद्धिकराः शुभाः। ओषध्याप्यायनकरा अप आवाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः अद्भ्यो नमः, इहागच्छत, इह तिष्ठत ।
३.पृथ्वी (मंगल के बायें)- ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म स प्रथाः।। ॐ शुक्लवर्णां विशालाक्षीं कूर्मपृष्ठोपरिस्थिताम् । सर्वशस्याश्रयां देवीं धरामावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः पृथिव्यै नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ।
४.विष्णु (बुध के बायें)- ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्र्रुवोसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा।। ॐ शङ्खचक्रगदापद्महस्तं गरुडवाहनम् । किरीटकुण्डलधरं विष्णुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ।
५.इन्द्र (बृहस्पति के बायें)- ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रᳪ हवे हवे सुहव ᳪ शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र ᳪ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।। ॐ ऐरावतगजारुढ़ं सहस्राक्षं शचीपतिम् । वज्रहस्तं सुराधीशमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
६.इन्द्राणी(शुक्र के बायें)- ॐ अदित्यैरास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीषः पूषासि धर्मायदीष्व।। ॐ प्रसन्नवदनां देवीं देवराजस्य वल्लभाम् । नानालङ्कारसंयुक्तां शचीमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्राण्यै नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ।
७.प्रजापति (शनि के बायें)- ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्न्यो विश्वारूपाणि परिता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽस्तु वय ᳪ स्याम पतयो रयीणाम् ।। ॐ आवाहयाम्यहं देव देवेशं च प्रजापतिम् । अनेकव्रतकर्तारं सर्वेषां च पितामहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः प्रजापतये नमः, प्रजापतिमावाहयामि,स्थापयामि ।
८.सर्प (राहु के बायें)- ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।। ॐ अनन्ताद्यान् महाकायान् नानामणिविराजितान् । आवाहयाम्यहमं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः सर्पेभ्यो नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
९.ब्रह्मा (केतु के बायें)- ॐ ब्रह्म यज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः सबुध्न्याऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः।। ॐ हंसपृष्ठसमारुढ़ं देवतागण पूजितम् । आवाहयाम्यहं देवं ब्रह्माणं कमलासनम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ ।
अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताओं का एकतन्त्र पूजनः – नवग्रह वेदी के दायें अधिदेवता और बायें भाग में प्रत्यधिदेवताओं का समन्त्र आवाहन सम्पन्न हो जाने के पश्चात् अब दोनों के एकत्र नाम मन्त्रों से यथोपलब्ध पूजन करें- ॐ ईश्वराग्नेयादि अधिदेवप्रत्यधिदेवेभ्यो नमः – इस नाम मन्त्र से क्रमशः पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, चन्दन, रोली, अबीर, पुष्प, पुष्पमाल्यादि, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि मुखशुद्धि, द्रव्य दक्षिणा समर्पित करके, पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करे ।। (इति अधिदेवता-प्रत्यधिदेवतापूजनम्)
पञ्चलोकपाल आवाहन-पूजनः- बायें हाथ में अक्षत लेकर, दायें हाथ से क्रमशः निर्दिष्ट कोष्टकों में छोड़ते जायेंगे –
१.गणेश (केतुखंडमें) – ॐ गणानान्त्वा गणपति ᳪ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति ᳪ हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिᳪ हवामहे व्वसो मम आहमजानि गर्भधमात्त्वमजासि गर्भधम् ।। ॐ लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजं । आवाहयाम्यहमं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः गणपते ! इहागच्छ,इह तिष्ठ, गणपतये नमः ।
२.दुर्गा (केतुखंडमें)- ॐ अम्बेऽम्बिकेऽम्बालिके न मानयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ।। ॐ पत्तने नगरे ग्रामे विपिने पर्वते गृहे । नानाजातिकुलेशानीं दुर्गामावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गे ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, दुर्गायै नमः ।
३.वायु (गुरुखंडमें) – ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर ᳪ सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो ऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः ।। ॐ आवाहयाम्यहं वायुं भूतानां देहधारिणाम् । सर्वाधारं महावेगं मृगवाहनमीश्वरम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः वायो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः।
४.आकाश (गुरुखंडमें)- ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसाम्व्वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा।। ॐ अनाकारं शब्दगुणं द्यावाभूम्यन्तरस्थितम् । आवाहयाम्यहं देवमाकाशं सर्वगं शुभम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः आकाश ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ भूर्भुवः स्वः आकाशाय नमः ।
५.अश्विनी (गुरुखंडमें)- ॐ यावांकशामधुमत्यश्विना सूनृतावती तया यज्ञम्मिमिक्षताम्।। ॐ देवतानां च भैषज्ये सुकुमारौ भिषग्वरौ । आवाहयाम्यहं देवावश्विनौ पुष्टिवर्द्धनौ ।। ॐ भूर्भुवः स्वः अश्विनौ ! इहागच्छतं, इह तिष्ठतं, ॐ भूर्भुवः स्वः अश्विभ्याम् नमः ।
तदन्तर, ॐ गणेशादिपञ्चलोकपालेभ्यो नमः —इस नाम मन्त्रोच्चारण पूर्वक यथोपचार पूजन करे, जैसा कि अन्य देवों का करते आए हैं ।
दशदिक्पाल आवाहन-पूजनः– बायें हाथ में पुष्पाक्षत लेकर, निर्दिष्ट स्थानों पर अक्षत छोड़ते जायें-
१. इन्द्र (पूर्व,पीतवर्ण)- ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रᳪ हवे हवे सुहव ᳪ शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र ᳪ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।। ॐ इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ।। ॐ इन्द्र, इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः।
२. अग्नि (अग्निकोण,रक्तवर्ण)- ॐ त्वन्नोऽअग्ने तव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य। त्राता तोकस्य तनये गवामस्य निमेष ᳪ रक्षमाणस्तवव्व्रते।। ॐ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकम् । षण्नेत्रं च चतुः श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः अग्ने इहागच्छ, इह तिष्ठ ।ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः।
३. यम (दक्षिण,कृष्णवर्ण)- ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मः पित्रे ।। ॐ महामहिषमारुढं दण्डहस्तं महाबलम् । यज्ञसंरक्षनार्थाय यममावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः यम इहागच्छ, इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः।
४. निर्ऋति (नैर्ऋत्यकोण,नीलवर्ण)- ॐ असुन्नवन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छसात ऽइत्यानमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु ।। ॐ निर्ऋत्यां खड्गहस्तं च नरारुढ़ं वरप्रदम् । आवाहयामि यज्ञस्य रक्षार्थं नीलविग्रहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः निरृत इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः निर्ऋतये नमः।
५. वरुण (पश्चिम,कृष्णवर्ण)- ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ᳪ समानऽआयुः प्रमोषीः ।। ॐ शुद्धस्फटिकसंकाशं जलेशं यादसां पतिम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः।
६. वायु (वायुकोण,धूम्रवर्ण)- ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर ᳪ सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो ऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः ।। ॐ अनाकारं महौजस्कं व्योमगं वेगवद् गतिम् । प्राणिनां प्राणदातारं वायुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः वायु इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः।
७. कुबेर (उत्तर,पीतवर्ण)- ॐ वय ᳪ सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि।। ॐ आवाहयामि देवेशं धनदं यक्षपूजितम् । महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेर इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेराय नमः ।
८. ईशान (ईशान,श्वेतवर्ण)- ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयं। पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।। ॐ सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम् । आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम् ।। ॐ इन्द्र, इहागच्छ, इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः।
९. ब्रह्मा (ईशान-पूर्व के बीच में,पीतवर्ण)- ॐ अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतो सजोषाः यः श ᳪ स तेस्तुवते धायि वज्रऽइन्द्र ज्येष्ठाऽअस्माँ२ऽअवन्तु देवाः।। ॐ पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम् । आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञसंसिद्धिहेतवे ।। ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मण इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमः ।
१०. अनन्त (नैर्ऋत्य-पश्चिम के मध्य,नीलवर्ण,मतान्तर से पीत वर्ण)- ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरानिवेशनी यच्छा नः सर्मसप्रथाः।। ॐ अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरुपिणम् । जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्त इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्ताय नमः।
ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः – इस नाम मन्त्र का उच्चारण करते हुए, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंचामृत, शुद्धोदक स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, गन्धादि, पुष्पादि, धूप-दीप, नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि मुखशुद्धि, द्रव्य दक्षिणा प्रदान करे । एवं पुनः अक्षतपुष्पादि लेकर हाथ जोड़ कर पूजित देवताओं की प्रार्थना करे – विरञ्चिनारायणशङ्करेभ्यः शचीपतिस्कन्दविनायकेभ्यः । लक्ष्मीभवानी कुलदेवताभ्यो नमोऽस्तु दिक्पालनवग्रहेभ्यः ।। आदित्यसोमौ बुधभार्गवौ च शनिश्चरो वा गुरुलोहिताङ्गौ । प्रीणन्तु सर्वे ग्रहराहुकेतुभिः सर्वे सुराः शान्तिकरा भवन्तु ।।