संकल्प विधि – संकल्प मंत्र संस्कृत

संकल्प मंत्र
 
 

संकल्प मंत्र संस्कृत में 

  • संकल्प का अर्थ – संकल्प का अर्थ होता है किसी कार्य की उद्घोषणा करना। कोई काम जो कि करने वाले हैं उसकी उद्घोषणा करना जिसमें कार्य-अनुष्ठान, उद्देश्य, क्रियाविधि, काल (समय) आदि का स्पष्ट उल्लेख किया गया हो। संकल्प का अर्थ दृढ प्रतिज्ञा भी होता है जिसका तात्पर्य किसी भी स्थिति में उस कार्य को पूर्ण करना होता है। 
  • संकल्प का महत्व क्या है – किसी भी कार्य की सफलता के लिये भी संकल्प आवश्यक होता है। प्रोजेक्ट, रोडमैप, कार्यावधि, उद्देश्य आदि का निर्धारण संकल्प से ही होता है। धार्मिक कर्मों में पुण्य-फल प्राप्ति के लिये संकल्प करना अनिवार्य होता है, बिना संकल्प के किये गये धार्मिक अनुष्ठानों का पुण्य नहीं मिलता। निष्काम कर्म भी संकल्प करके ही किया जाता है केवल उसमें कामना का उल्लेख नहीं किया जाता है। 

Table of Contents

संकल्प कैसे लेते हैं ? 

  • शुद्धता – संकल्प के लिये पवित्र होना आवश्यक होता है। 
  • नित्यकर्म – संकल्प करने से पहले नित्यकर्म कर लेना चाहिये। 
  • पवित्री व त्रिकुशा – संकल्प करते समय पवित्री और त्रिकुशा धारण करना आवश्यक होता है। 
  • जल – संकल्प करने के लिये हाथ में जल होना अनिवार्य होता है। 
  • तिल – संकल्प करते समय तिल भी हाथ में रखना आवश्यक होता है। 
  • अन्य वस्तुएं – संकल्प के समय हाथ में रखने वाली अन्य आवश्यक वस्तुएं हैं – पान, सुपारी, अक्षत, पुष्प, चंदन, द्रव्य (रूपया) । 
  • विष्णु स्मरण – संकल्प करने से पूर्व भगवान विष्णु का स्मरण करना आवश्यक होता है। 

संकल्प करने के वाक्य या संकल्प मंत्र :-

 
  • भाषा – संकल्प करने की भाषा संस्कृत ही हो यह आवश्यक है। संकल्प वाक्य की रचना में संस्कृत अर्थात देववाणी का ही उपयोग किया जाना चाहिये। 
  • कालवर्णन – संकल्प वाक्य में सबसे पहले सृष्टि के आरम्भ से वर्त्तमान तक व्यतीत काल का उल्लेख करना अनिवार्य होता है। न्यूनतम मास-पक्ष और तिथि का उल्लेख होना ही चाहिये। 
  • परिचय – संकल्प वाक्य में संकल्प करने वाले का परिचय होना चाहिये, जैसे गोत्र और नाम का उच्चारण करना। 
  • उद्देश्य – संकल्प वाक्य में उद्देश्य का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये। किस कामना से कार्य कर रहे हैं या उस कार्य का क्या फल प्राप्त करना चाहते हैं यह उद्देश्य कहलाता है। 
  • कार्यावधि – जिस कार्य को करने जा रहे हैं उस कार्य की अवधि (कितने दिन/सप्ताह/मास) क्या होगी इसे स्पष्ट कर लेना चाहिये। 
  • कर्म – अंत में जो कार्य करने जा रहे हैं उस कार्य का उल्लेख करना चाहिये। 

लघु संकल्प मंत्र या अत्यंत संक्षिप्त संकल्प : 

“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) मासोतमे मासे ………. २ मासे …………   ३ पक्षे ………… ४ तिथौ …………५  वासरे …………  ६  गोत्रोत्पन्नः ………… ७  शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ममात्मनः  सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं,  श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं …………… ८  करिष्ये।”

सरल संकल्प मंत्र :

“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते …………   १ संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. २ मासे …………   ३ पक्षे ………… ४ तिथौ …………५  वासरे …………  ६  गोत्रोत्पन्नः ………… ७  शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये  ग्रहदोष, दैहिक, दैविक,  भौतिक – त्रिविध ताप निवार्णार्थं  सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं,  सकल आधि, व्याधि, दोष परिहार्थं सकल मनोरथ सिध्यर्थं …………… ८  करिष्ये।”
 
(१ संवत्सर का नाम, २ महीने का नाम, ३ पक्ष का नाम, ४ तिथि का नाम, ५ दिन का नाम, ६ अपने गोत्र का नाम, ७ ब्राह्मण शर्माऽहं, क्षत्रिय वर्माऽहं, वैश्य गुप्तोऽहं और शूद्र दासोऽहं कहें, ८ जो कर्म पूजा/जपादि करना हो उसका उच्चारण करे।)
 

दृढ़ संकल्प मंत्र – बड़ा संकल्प वाक्य : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: । श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य अमुकक्षेत्रे अमुकदेशे अमुकनाम्निनगरे (ग्रामे वा) श्रीगड़्गायाः ………… (उत्तरे/दक्षिणे)  दिग्भागे देवब्राह्मणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्यसमयतः   ……… संख्या -परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये  ………… नामसंवत्सरे, …………  अयने, …………  ऋतौ, …………  मासे, ………… पक्षे, …………  तिथौ, …………  वासरे, …………  नक्षत्रे, ………… योगे, ………… करणे, ………… राशिस्थिते चन्द्रे, ………… राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ………… देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ………… गोत्रोत्पन्नस्य …………  शर्मण: (वर्मण:, गुप्तस्य वा) सपरिवारस्य ममात्मन: श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त्पुण्यफलावाप्त्यर्थं ममऐश्वर्याभिवृद्धयर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिरकाल संरक्षणार्थं सकलमन: इप्सितकामनासंसिद्धयर्थं लोके व सभायां राजद्वारे वा सर्वत्र यशोविजयलाभादि प्राप्त्यर्थं समस्तभयव्याधिजरापीडामृत्यु परिहारद्वारा आयुरारोग्यैश्वर्याद्यभिवृद्धर्थं तथा च मम जन्मराशे: सकाशाद्ये केचिद्विरुद्धचतुर्थाष्टमद्वादशस्थानस्थिता: क्रूरग्रहा: तै: सूचितं सूचयिष्यमाणञ्च यत्सर्वारिष्टं तद्विनाशद्वारा सर्वदा तृतीयैकादशस्थानस्थितवच्छुभफलप्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रदिसन्ततेरविच्छिन्न वृद्धयर्थम्! आदित्यादिन्नवग्रहानूकूलता सिद्धर्थम इन्द्रादि -दशदिक्पालप्रसन्नतासिद्धर्थम् आधिदैविकाधि भौतिकाध्यात्मिका त्रिविधतापोपशमनार्थं धर्मार्थकाममोक्षफलावाप्त्यर्थं यथाज्ञानं यथा मिलितोपचारद्रव्यै: ………… देवस्य पूजनं करिष्ये। तदड़्गत्वेन गणपत्यादि देवानां पूजनञ्च करिष्ये।

 

हेमाद्रि संकल्प विधि       

 
 
 
 
 
 

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