पौराणिक पुण्याहवाचन विधि – punyahavachanam sanskrit

पौराणिक पुण्याहवाचन विधि - punyahavachanam sanskrit

प्रत्येक विशेष पूजा-अनुष्ठान, मंगलकार्य आदि में पुण्याहवाचन का विशेष विधान किया गया है। ब्राह्मणों को ईश्वर का मुख बताया गया है और ब्राह्मण के वचन का विशेष महत्व होता है। ब्राह्मण के वचन के ही व्रत-पूजा आदि की पूर्णता भी होती है। इसी क्रम में कल्याण कामना हेतु ब्राह्मणों से कल्याणकारी वचन प्राप्त करना पुण्याहवाचन कहलाता है। विशेष अवसरों के अतिरिक्त किसी प्रकार के अपशकुन आदि की स्थिति में भी पुण्याहवाचन कराया जा सकता है। इस आलेख में सम्पूर्ण पुण्याहवाचन विधि बताई गयी है।

पुण्याहवाचन के लिये भी पौराणिक पुण्याहवाचन की आवश्यकता होती है और वर्त्तमान युग में तो किसी भी कर्म के लिये अधिकतर पौराणिक विधि की ही आवश्यकता होती है क्योंकि सभी वर्णों में स्खलन हो रहा है।

पुण्याहवाचन से पूर्व कलश स्थापन तक की सभी विधियां संपन्न की जाती है। पवित्रीकरणआसनशुद्धि , दिग्बंधन , पौराणिक स्वस्तिवाचन , गणेशाम्बिका पूजनसंकल्प-ब्राह्मण वरण करने के बाद कलश स्थापन किया जाता है। पुण्याहवाचन से पूर्व कलश स्थापन तक की सभी विधियां संपन्न की जाती है। कलश स्थापन होने के पश्चात् ही पुण्याहवाचन किया जाता है। हम आगे पुण्याहवाचन के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा करते हुये पौराणिक पुण्याहवाचन विधि को समझेंगे।

कलश स्थापना विधि और मंत्र - kalash sthapana
पौराणिक कलश स्थापन विधि

जब किसी भी धार्मिक कृत्य के लिये दिन शुभफलदायक हो, कल्याणकारी इत्यादि उद्घोषणा ब्राह्मण करते हैं तो उसे पुण्याहवाचन कहा जाता है। प्रत्येक शुभ कार्यों में पूजा-अनुष्ठानों में पुण्याहवाचन की विधि कही गयी है।

  • श्राद्ध में पुण्याहवाचन नहीं किया जाता है।
  • सत्यनारायण पूजा, मंदिर में रुद्राभिषेक आदि के लिये भी पुण्याहवाचन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अन्य सभी पूजा-अनुष्ठानों, शान्तिकर्म, संस्कार आदि में पुण्याहवाचन करना चाहिए।
  • पुण्याहवाचन स्वतंत्र रूप से भी किया जा सकता है।

पुण्याहवाचन का महत्व :

पुण्याहवाचन में ब्राह्मणों द्वारा प्राप्त आशीर्वाद विशेष महत्वपूर्ण होता है और इस कारण पुण्याहवाचन का महत्व भी विशेष होता है। पुण्याहवाचन में ब्राह्मण कल्याण, दीर्घायु, समृद्धि, श्री आदि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं और ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेने की यह शास्त्रीय विधि है। पुण्याहवाचन से अनेकों प्रकार के अनिष्टों का निवारण होता है। यहाँ सम्पूर्ण पुण्याहवाचन विधि दी जा रही है जो आपके लिये उपयोगी हो सकती है।

पुण्याहवाचन मंत्र

पुण्याहवाचन मंत्र का तात्पर्य भी मंत्रों का समूह ही है। पुण्याहवाचन मंत्र का तात्पर्य को एक मन्त्र नहीं है।

सपत्नीक यजमान पूर्वाभिमुख बैठे और युग्म ब्राह्मण (न्यूनतम २) उत्तराभिमुख बैठें। सर्वप्रथम दूर्वाक्षत आदि वस्तुओं से भूमिपूजन कर ले । कलशस्थापन-पूजन के बाद कलश के निकट में ही एक अन्य धातुकलश जलयुक्त स्थापित करके उसमें भी अन्य मंगल द्रव्य देकर उसकी पूजा कर ले।

कलश के दोनों ओर कुशदूर्वा का आसन देकर एक-एक कटोरी रखे, जिसमें पुण्याहवाचन करते समय जल गिराना होगा।

पुण्याहवाचन विधि और मंत्र - Punyahwachan
पुण्याहवाचन विधि

ब्राह्मण पूजन

स्खलित ब्राह्मणों को पुण्याहवाचन से पूर्व सर्वप्रथम ब्राह्मण पूजन करना चाहिये जिसकी संक्षिप्त विधि इस प्रकार है :

ह्रीं आपः शिवा आपः सन्तु ॥ ह्रीं गन्धाः सुगन्धाः पान्तु ॥ ह्रीं अक्षताः अस्त्वक्षतमरिष्टं च ॥ ह्रीं सुमनसः सौमनस्यमस्तु ॥ ह्रीं दक्षिणाः स्वस्ति दक्षिणाः पान्तु ॥ सन्तु पञ्चोपचाराः ॥ शान्तिरस्तु ॥

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