कर्मकांड में शरीर शुद्धि की भांति ही आसन शुद्धि की भी आवश्यकता होती है। पवित्रीकरण व आचमन के उपरांत आसन शुद्धि ही किया जाता है। आसन शुद्धिकरण के बिना आगे का कर्म नहीं किया जा सकता अतः पवित्रीकरण के पश्चात् आसन शुद्धि ही कर्तव्य होता है। आसन शुद्धिकरण वैकल्पिक नहीं है अनिवार्य है। इस आलेख में आसन शुद्धि का मंत्र और विनियोग (asan shuddhi mantra) दिया गया है।
आसन शुद्धि मंत्र – asan shuddhi mantra
मंत्र प्रयोग पर किसी भी क्रिया के लिये कई प्रकार के मंत्र उपलब्ध किये जाते हैं। आसन शुद्धि का मुख्य मंत्र तो एक ही है किन्तु इसके प्रयोग अनेकों प्रकार से होते हैं। मुख्य रूप से आसन शुद्धि मंत्र द्वारा ही आसन शुद्धिकरण किया जाता है तत्पश्चात विनियोग पूर्वक किया जाता है एवं इसके अतिरिक्त और भी दो प्रकार से प्रयोग किया जाता है। आगे सभी मंत्र और विधि दी गयी है।
आसन शुद्धि का मुख्य मंत्र (प्रयोग – 1)
आसन शुद्धि मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
ऊपर दिया गया मंत्र आसन शुद्धिकरण का मुख्य मंत्र है और एकमात्र इस मंत्र को पढ़ते हुये आसन को जल से सिक्त करके ही आसन शुद्धिकरण किया जाता है। यदि सविनियोग करना हो तो प्रथम विनियोग करके भी इसी मंत्र से आसन शुद्धि की जाती है। एवं अन्य प्रकारों में भी इस मंत्र का प्रयोग होता ही है।

आसन शुद्धि मंत्र विनियोग (प्रयोग – 2)
पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसन पवित्रकरणे विनियोगः॥
इसी विनियोग में किञ्चित परिवर्तन करते हुये और भी अन्य दो प्रकार से प्रयोग किया जाता है :
- पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसनाभिमंत्रणे विनियोगः॥
- पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसनोपवेसने विनियोगः॥
विनियोग में प्रणव प्रयोग आवश्यक नहीं होता इसलिये यहां प्रणव का प्रयोग नहीं किया गया है, तथापि विभिन्न पद्धतियों में आसन शुद्धि मंत्र के विनियोग में प्रणव का प्रयोग किया गया है। विनियोग के पश्चात् आसन स्पर्श करके मुख्य मंत्र को पढ़कर आसन शुद्धि किया जाता है। अर्थात जल लेकर विनियोग मंत्र को पढ़कर जल भूमि पर गिरा दे, फिर आसन को स्पर्श करके “ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका” मंत्र पढ़े। स्पर्श के स्थान पर आसन को सिक्त भी किया जा सकता है।
आगे विशिष्ट आसन शुद्धि प्रयोग दिये गये हैं :
आसन शुद्धि प्रयोग – 3
आसन शुद्धि के विशेष प्रयोग में भूमि पूजन को जोड़ा जाता है, उपरोक्त आसन शुद्धि विनियोग और मंत्र से पूर्व पंचोपचार अथवा तंत्र से भूमि पूजन किया जाता है।
- सर्वप्रथम दोनों हाथों से भूमि का स्पर्श करते हुये “स्योना पृथिवी नो मंत्र” मंत्र पढ़े, भूमि प्रार्थना मंत्र नीचे दिया गया है।
- तत्पश्चात “ॐ लं पृथिव्यै नमः” अथवा “ॐ आधारशक्तये नमः” अथवा “ह्रीं भूम्यै नमः” मंत्र से पृथ्वी पूजन करे।
- फिर पूर्वोक्त विनियोग मंत्र से विनियोग करके “ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका …. “ मंत्र से आसन को सिक्त करे।
भूमि प्रार्थना मंत्र : ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म स प्रथाः॥
आसन शुद्धि प्रयोग – 4
- जल लेकर आसनस्थान को सिक्त करे : ॐ रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा॥
- दोनों हाथों को धरती पर रखे, बायें गट्टे के ऊपर दांये गट्टे को रखते हुये करतल से भूमि को स्पर्श करते हुये अगले मंत्र से अभिमंत्रित करे : ॐ पवित्र वज्रभूमे हूँ फट् स्वाहा॥
- गंध-पुष्पाक्षतादि से आसन भूमि का पूजन करे : ॐ ह्रीं आधारशक्ति कमलासनाय नमः॥
- रक्तचंदनादि द्रव्य से आसन के नीचे त्रिकोण बनाये, फिर अगले मंत्र से चारों ओर मंडल (गोलाकार) बनाये : ॐ आसुरेखे वज्ररेखे हूँ फट् स्वाहा॥
- फिर उसके मध्य में लिखे : “ॐ ह् सौं”
- गंध-पुष्पाक्षतादि से पुनः पूजा करे : ॐ ह्रीं आधारशक्ति कमलासनाय नमः॥
तत्पश्चात अगले मंत्रों से गंध-पुष्पाक्षतादि अर्पित करे :
- ॐ अनन्ताय नमः॥
- ॐ विमलासनाय नमः॥
- ॐ पद्मासनाय नमः॥
- ॐ ह् सौं महाप्रेतपद्मासनाय नमः॥
तत्पश्चात दोनों हाथों से पृथ्वी को स्पर्श कर प्रणाम करते हुये पढ़े : ॐ पृथ्वि त्त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां नित्यं पवित्रं कुरु चासनम् ॥
तत्पश्चात पूर्वादि क्रम से गंध-पुष्पाक्षतादि अर्पित करे :
ॐ वास्तुपुरुषाय नमः॥ ॐ ब्रह्मणे नमः॥ ॐ धर्माय नमः॥ ॐ ज्ञानाय नमः॥ ॐ वैराग्याय नमः॥ ॐ ऐश्वर्याय नमः॥
पुनः कोणों में पूजन करे :
ॐ अधर्माय नमः॥ ॐ अज्ञानाय नमः॥ ॐ वैराग्याय नमः॥ ॐ अनैश्वर्याय नमः॥ ॐ दिशायै नमः॥ ॐ विदिशायै नमः॥
तत्पश्चात पांच बार व्यापक विधान करे : ॐ रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा॥ ॐ ऐं हूँ फट् स्वाहा॥
तत्पश्चात भूमि-आकाश के विघ्ननिवारण का भाव करते हुये तीन बार वामपादघात करे : ॐ अस्त्राय फट् ॥
इस प्रकार ऊपर आसन शुद्धि के 4 प्रयोग दिये गये हैं। प्रथम प्रयोग “ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका …….. “ मंत्र से आसन को सिक्त करना है। द्वितीय प्रयोग विनियोग सहित मुख्य मंत्र से आसन सिक्त करना है। तृतीय प्रयोग में पृथ्वी पूजन करके सिक्त करना है और चतुर्थ प्रयोग और अधिक विस्तृत है।
सारांश : इसके अतिरिक्त भी और प्रयोग हैं, किन्तु सामान्य से लेकर कर्मकांड हेतु आसन शुद्धि के लिये उपरोक्त मंत्र और प्रयोग का ज्ञान होना आवश्यक है। इस आलेख में आसन शुद्धि के विभिन्न मंत्र प्रयोग दिये गये हैं जो कर्मकांड सीखने वालों के लिये विशेष उपयोगी हैं। आसन शुद्धि के मुख्य मंत्र “पृथ्वी त्वया” के साथ-साथ और भी अनेक प्रकार के मंत्रों को यहां समाहित किया गया है।
विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in
मंत्र प्रयोग (कर्मकांड कैसे सीखें) में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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