सामान्यतः आचमन तीन आचमन के मंत्रों का सर्वत्र विधान और मंत्र देखा जाता है और सभी जानते हैं। किन्तु यदि दो बार ही आचमन करना हो तो ? देवता भेद, कर्मभेद आदि के आधार पर आचमन के मंत्रों में कोई परिवर्तन भी होता है क्या अथवा जब भी आचमन करना हो उन्हीं मंत्रों से करना चाहिये ? इस आलेख में आचमन के मंत्रों का वर्णन किया गया है।
आचमन मंत्र – Achaman Mantra
जब पूजा पाठ आदि के आरंभ में शुद्धिकरण हेतु आचमन किया जाता है तो सर्वत्र तीन बार किया जाता है, एवं अंगुष्ठमूल से ओष्ठ पोंछकर हाथ धोया जाता है। आचमन से सर्वाधिक प्रचलित मंत्र इस प्रकार हैं :
- ॐ केशवाय नमः॥
- ॐ माधवाय नमः॥
- ॐ नारायणाय नमः॥
मार्जन (२ बार) : ॐ हृषिकेशाय नमः॥२॥

प्राकारान्तर
- ॐ केशवाय नमः स्वाहा ॥
- ॐ नारायणाय नमः स्वाहा ॥
- ॐ माधवाय नमः स्वाहा ॥
मार्जन (२ बार) : ॐ गोविन्दाय नमः॥२॥
जिस प्रकार पुरुषसूक्त से सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा की जाती उसी प्रकार विष्णु भगवान के इन नामों का स्मरण करते हुये सभी कर्मों में आचमन किया जा सकता है। तथापि आचमन के अन्य मंत्र भी प्राप्त होते हैं :
आचमन के अन्य मंत्र
- ॐ ऋग्वेदाय स्वाहा ॥
- ॐ यजुर्वेदाय स्वाहा ॥
- ॐ सामदाय स्वाहा ॥
करप्रक्षालन – ॐ अथर्ववेदाय नमः ॥
देवताओं के बीज लगाकर आचमन मंत्र
आचमन मंत्र में एक प्रकार वो भी है जिसमें देवता के अनुसार बीज का प्रयोग किया जाता है। इसका एक स्वरूप देवी पूजा से संबंधित है जो कि श्री दुर्गासप्तशती में सभी देख सकते हैं :
- ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
- ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
- ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
करप्रक्षालन – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
इसमें देवी पूजा-पाठ के लिये देवी के बीजों (ऐं ह्रीं क्लीं) का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार शिवपूजा करनी हो तो शिव के बीजों का प्रयोग किया जाता है। शिव पूजा में इस मंत्र का स्वरूप इस प्रकार हो जाता है :
- ॐ ह्राँ आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
- ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
- ॐ ह्रूँ शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
करप्रक्षालन – ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रूँ सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
आशा है आचमन मंत्र से संबंधित यह आलेख आपके लिये उपयोगी सिद्ध होगा। इसके साथ ही आचमन के विषय में अनेकानेक महत्वपूर्ण तथ्य भी हैं जो एक कर्मकांडी ही नहीं सभी आस्थावानों को जानना आवश्यक है। आचमन से संबंधित विस्तृत विश्लेषण वाला आलेख पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें।
उपरोक्त मंत्रों के अतिरिक्त अन्य कालों में जब आचमन करने का निर्देश होता है तो उसका तात्पर्य दो बार बिना मंत्र के आचमन करना।
सारांश : आचमन करने के लिये सामान्यतः विष्णु भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण करते हुये विशेष विधि से हाथ में माषमात्र जल लेकर पीया जाता है। किन्तु आचमन का तात्पर्य जल पीना नहीं होता है अपितु जिह्वा, शरीर की विशेष शुद्धि करना होता है। आचमन हेतु अन्य प्रकार के भी मंत्र होते हैं और यहां चार प्रकार के मंत्रों का प्रयोग बताया गया है।
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