दिग्बंधन विधि या दिग्-रक्षण

रक्षा विधान - दिग्बंधन मंत्र

बांये हाथ में पिली सरसों, तिल, दूर्वा आदि लेकर दांये हाथ से ढंककर रक्षोघ्नसूक्त का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात दशों दिशाओं में छिड़काव करना चाहिए। कर्म भंग न हो और असुरादिकों को भाग न मिले इसलिए रक्षाविधान एक विशेष प्रक्रिया है और सजगतापूर्वक इस क्रिया को वैदिक विधि से सम्पादित करने की आवश्यकता होती है।

रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण

पौराणिक मंत्र : 

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतोदिशं । सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥
यदत्र संस्थितं भूतं स्थान माश्रित्य सर्वत: । स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गच्छतु ॥
भूत प्रेत पिशाचाधा अपक्रामन्तु राक्षसा: । स्थानादस्माद् व्रजन्त्वन्यत्स्वीकरोमि भुवंत्विमाम् ॥
भूतानि राक्षसा वापि येऽत्र तिष्ठन्ति केचन । ते सर्वेऽप्यप गच्छन्तु पूजा कर्म कोम्यहम् ॥

तत्पश्चात दशों दिशाओं में क्रमशः छिड़के :

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता । दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्‌गधारिणी ॥
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी। उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ॥
उर्ध्वं ब्रह्माणि में रक्षेद्‌धस्ताद् वैष्णवी तथा । एवं दश दिशो रखेच्चामुण्डा शव वाहना ॥ 

रक्षाबंधन : अगले मंत्र से आचार्य यजमान को रक्षाबंधन करें – 

रक्षाबंधन मंत्र : ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

यजमान को दाहिने हाथ में और यजमान पत्नी को बांयें हाथ में बांधें।

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