कलश स्थापना विधि और मंत्र (kalash pujan) तो सभी पूजा पद्धति में मिलती है किन्तु जब हमें पौराणिक मंत्रों की आवश्यकता होती है और ढूंढते हैं तो नहीं मिलती, हम यहां पौराणिक कलश स्थापना व पूजन मंत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें यह समझना भी आवश्यक है कि पौराणिक विधि की आवश्यकता कब होती है ? जिसका वेदोक्त विधि में अनधिकार हो उसके लिये पौराणिक विधान होता है। अनुपनीतों का वेदमंत्र में अधिकार नहीं होता इसलिये उनके लिये पौराणिक मंत्रों की आवश्यकता होती है।
पौराणिक कलश स्थापना विधि और मंत्र – kalash pujan
सर्व प्रथम कलश में रोली-सिन्दुर आदि से स्वास्तिक बनाकर, कलश कंठ में लाल कपड़ा या मौली बांध कर पूजा स्थान की बांयी ओर (स्वयं से बांयी ओर) वेदी अथवा अबीर-गुलाल-हल्दिचूर्ण-कुंकुम-आटा आदि से अष्टदल कमल अथवा धान्यपुञ्ज बनायें। पवित्रीकरण–आसनशुद्धि , दिग्बंधन , पौराणिक स्वस्तिवाचन , गणेशाम्बिका पूजन–संकल्प-ब्राह्मण वरण करने के बाद कलश स्थापन किया जाता है।

कलश स्थापन
कलश स्थापना से पूर्व वेदी या कुंकुम आदि से भूमि पर अष्टदल बनाकर उसपर धान्यपुञ्ज या चावल पुञ्ज बना ले।
भूमि का स्पर्श करें : ओं विश्वाधारासि धरिणी शेषनागो परिस्थिता। उद्धृतासि वराहेन कृष्णेन शतबाहुना ॥
चतुर्भुजे शुक्लवर्णे दिव्याभरणभूषिते। चतुर्दिङ्नागपृष्ठस्थे भूमे त्वां संस्पृशाम्यऽहं ॥
सामान्यतः भूमि स्पर्श मंत्र पूर्वक ही आगे की क्रिया की जाती है तथापि कलश स्थापन से पूर्व भूमि पूजन करने का भी विधान मिलता है। (यदि पृथ्वी पूजन करना हो तो इस मन्त्र से आवाहन करके फिर पूजन करे : आगच्छ सर्वकल्याणि वसुधेऽत्र स्थिरा भव । आयाहि वरदे धात्रि यज्ञेऽस्मिन् शुभदायिनि ॥)
तत्पश्चात गोबर से भूमि को लीपे, किन्तु सामान्यतः पूर्व ही लीपा जाता है। अष्टदल के मध्य में सप्तधान्य या धान-गेंहूँ-चावल जो भी शुद्ध उपलब्ध हो उसका पुंज बना दें :
धान्यपुंज – ओं सर्वदेवमयं धान्यं सर्वोत्त्पत्तिकरं महत्। प्राणिनां जीवनोपायं स्थापयाभीष्टसिद्धये॥
धान्यपुंज पर सुवासित कलश स्थापित करे :
ओं आजिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्तु चेन्दवः । सहस्रधाराः पयस्वत्वस्त्वां विशन्तु तिष्ठ च ॥
कलश में गंगाजल या गंगाजल मिश्रित सामान्य जल दें :- ओं वरुणस्य सुखं स्थानं चोत्तंभनं जलं त्वयि । ऋतं च सदनं त्वं वै जलमाधत्स्व पावनम् ॥
वस्त्रावेष्टन : ओं सूत्रं कार्पाससंभूतं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । येन बद्धं जगत्सर्वं वेष्टनं कलशस्य च ॥
सर्वौषधि प्रक्षेप :- ओं देवेभ्यः पूर्वतो जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । शतं तनुश्च या बभ्रू जीवनं जीवनाय च ॥ सर्वौषधि शुद्ध हो तो दे अन्यथा अशुद्ध का प्रयोग न करे या विकल्प हरिद्रा का ग्रहण करे।
सप्तमृदा प्रक्षेप : ओं गजाश्वरथ्यावल्मीकसंगमह्रद गोकुलात्। मृदमानीय कुम्भेऽस्मिन् प्रक्षिपामि च चत्वरात्॥
(अश्वस्थानाद गजस्थानाद वल्मिकात्संगमात्हृदात् । राजग्द्वाराच्च गोगोष्ठान मृदमानीय निक्षिपेत्) सप्तमृत्तिका शुद्ध हो तो दे अन्यथा अशुद्ध का प्रयोग न करे या विकल्प गंगा की मिट्टी अथवा गोशाला की मिट्टी का ग्रहण करे।
दूर्वाप्रक्षेप : ओं काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषः परि । एवं नो दूर्वे प्रतनोः सहस्रेण शतेन च ॥
पुष्प – ओं विविधपुष्पसञ्जातं देवानां प्रीतिवर्द्धनम् । क्षिप्रं यत्कार्यसम्भूतं कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ॥
पञ्चरत्न प्रक्षेप : ओं स्वर्णं रौप्यं हीरकं च माणिक्यं मौक्तिकं तथा । परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यानि चाक्रमीत् ॥
पूगीफल प्रक्षेप : ओं फलिनी पुष्पिणीं स्यादफलाऽपुष्पापि ते युजेः । पूगि त्वं च घटे तिष्ठ फलदा भव देहिनः ॥
हिरण्य : ओं अग्नेरपत्यं देवेन विधृतं शिरसा पुरा । हिरण्यं हरिणानीतं कलशे प्रददामि तत् ॥
पञ्चपल्लव : ओं नमः कलशे मुखेऽश्वत्थस्य च वटस्य च । चूतस्योदुम्बरस्याऽपि प्लक्षस्यापि नवानि वै ॥ पत्राणि स्थापयाम्यत्र सस्यवद्राष्ट्रकं तव ॥
पवित्री : ओं पवित्रं पवित्राख्यं पुनातु सूर्यरश्मिवत् । पवित्रपते कलशेऽर्पयाम्यत्र पवित्रकम् ॥ ओं नमस्ते पवित्राय कुशजन्याय वेधसे । घटे त्वां च निक्षिपामि पवित्रं कुरु वारि तत् ॥
पूर्णपात्र (कलश पर पूर्णपात्र दें) : ओं पिधानं सर्ववस्तूनां सर्वकार्यार्थसाधनं । संपूर्णः कलशो येन पात्रं तत्कलशोपरि ॥
नारियल : श्रीश्चलक्ष्मीः रमाराधा ब्रह्मविद्यासतीरतिः । सुगुणा मञ्जुला हंसा ललिता कम्भरा सती ॥
सन्तोषा माणिकी दुर्गाऽमृताऽम्बा शारदा इमाः । श्रीफले संवसन्त्वत्र सम्पज्जुष्यो भवन्तु नः ॥
आवाहन
अक्षत पुष्प लेकर कलश में वरुण का आवाहन करें :-
ओं मनोजुतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिः क्रतुम् ।
इमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु च ।
विश्वेदेवा इह घटे मादयन्तामों प्रतिष्ठ ॥
ओं भगवन्वरुणागच्छ त्वमस्मिन कलशे प्रभो ।
कुर्वेऽत्रैव प्रतिष्ठाम् ते जलानां शुद्धिहेतवे ॥
ओं सांग सपरिवार सायुध सशक्तिक वरुण
इहागच्छ अस्मिन्कलशे सुप्रतिष्ठितो भव ।
ओं अपांपतये वरुणाय नम: ॥
कलशस्थितदेवानां नदीनाम् तीर्थानाम् च आवाहनम् :- (अक्षत पुष्प लेकर कलश में अन्य देवताओं का भी आवाहन करें) – अगले मन्त्रों का उच्चारण कर अक्षत छोड़ते जायें :
कलाकला हि देवानां दानवानां कलाकला:। संगृह्य निर्मितो यस्मात् क्लशस्तेन कथ्यते॥
कलशस्यमुखे विष्णु: कण्ठेरुद्रः समाश्रित:। मूलेत्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्येमातृगणा: स्मृता:॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा च मेदिनी। अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्णवेणा च गंगा चैव महानदी । तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्य: सर्वास्तथापरा:। पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि तानि वै॥
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा: । आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका: ॥
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण: । अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता: ॥
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति पुष्टिकरी तथा । आयान्तु मम शान्त्यर्थम् दुरितक्षयकारकाः ॥
षोडशोपचारै: पूजनम् कुर्यात् :- मिथिला में ओं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: के स्थान पर “ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः” का प्रयोग होता है। और गणेशाम्बिका पूजन को भी इसी में समाहित माना जाता है। वैदिक ऋचाओं से पूजन विधि अन्यत्र दी गयी है, यहाँ केवल नाममंत्र दिया जा रहा है। यदि वैदिक ऋचाओं का भी उपयोग करना हो तो कर सकते हैं।
कलश पूजन मंत्र
ध्यान (अक्षत-पुष्प लेकर अंजलिबद्ध होकर ध्यान करें) : इदं ध्यान पुष्पं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥ (ध्यान के लिये फ़ूल कलश पर छोडें)
- आसन (अक्षत-पुष्प कलश के नीचे दें) :- आसनार्थे पुष्पाक्षतं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- पाद्य (जल) : पादयो: पाद्यं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- अर्ध्य (अर्घपात्र में जल-अक्षत-पुष्प-दूर्वा-सुपारी-फल-द्रव्य आदि दे) : हस्तयोरर्घ्यं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- स्नानीय जल : स्नानीयं जलं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- आचमन (स्नानांग) : स्नानांते आचमनीयं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- पंचामृत स्नान (पंचामृत से स्नान करवायें,पंचामृत के लिये दूध,दही,घी,शहद,शक्कर का प्रयोग करें) : इदं पंचामृतस्नानं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- गन्धोदक स्नान (पानी में चन्दन को घिस कर पानी में मिलाकर या गुलाबजल से स्नान करवायें) : इदं गन्धोदकस्नानं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- शुद्धोदक स्नान (जल) : गन्धोदक स्नानान्ते शुद्धोदकं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- आचमन (जल) : इदं आचमनीयं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- वस्त्र : इदं वस्त्रं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- आचमन (जल) : वस्त्रान्ते आचमनीयं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- उपवस्त्र : इदं उपवस्त्रं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- आचमन (जल) : उपवस्त्रान्ते आचमनीयं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- चन्दन : इदं चन्दनं अनुलेपनं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- अक्षत : इदमक्षतं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- पुष्पमाला : इदं पुष्पमाल्यं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- दूर्वा : एतान्दुर्वाङ्कुरान् ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- बेलपत्र : इदं बिल्वपत्रं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- नानापरिमल द्रव्य : एतानि नानापरिमल द्रव्यानि ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- सुगन्धित द्रव्य (इत्र) : इदं सुगन्धित द्रव्यं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- धूप : एष धूपः ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- दीप (दीपक दिखाकर हाथ धो लें) : एष दीपः ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥ हस्तप्रक्षालन
- नैवैद्य : इदं नैवेद्यं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशायनमः॥
- आचमनादि (आचमनीय जल एवं पानीय तथा मुख और हस्तप्रक्षालन के लिये जल चढायें) : इदं आचमनीयं जलं – मध्ये पानीयं – उत्तरापोऽशने – मुखप्रक्षालनार्थे – हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- करोद्वर्तन (करोद्वर्तन के लिये गन्ध समर्पित करें) : इदं करोद्वर्तनं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- ताम्बूल (सुपारी इलायची लौंग सहित पान का ताम्बूल समर्पित करें) : इदं ताम्बूलंसपूगीफलादि ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- दक्षिणा : कृताया: पूजाया: साद्गुण्यार्थे द्रव्य दक्षिणां ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- आरती (आरती करें) : आरार्तिकं ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
- प्रदक्षिणा (प्रदक्षिणा करें) : प्रदक्षिणां ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
प्रार्थना
हाथ में पुष्प लेकर इस प्रकार से प्रार्थना करें-
देवदानव संवादे मथ्यमाने महोदधौ । उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयं॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः। त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठताः॥
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति। आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफ़लप्रदाः। त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव॥
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा॥
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते॥
ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः॥
नमस्कार : प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् ओं वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नम:॥
निष्कर्ष : यहां कलश स्थापन और पूजन की विस्तृत जानकरी व मंत्र उपलब्ध कराया गया है जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। सवप्रथम कलश स्थापना की जाती है तत्पश्चात आवाहन किया जाता है और फिर पूजा की जाती है। कलश में सभी देवताओं का पूजन किया जा सकता है, इस कारण यदि अन्य देवताओं के भी प्रतिमा आदि न हों तो कलश पर ही आवाहन करके पूजा करनी चाहिये। कलश स्थापन और पूजन के विषय में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अशुद्ध सामग्रियों का प्रयोग कदापि न करें, अशुद्ध सामग्रियों का प्रयोग करके हम देवताओं को प्रसन्न नहीं कर सकते।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।









