कोई भी जीव जब तक जीवित रहता है बिना कर्म किये नहीं रह सकता। अनेकानेक कर्मों में से कुछ ऐसे कर्म होते हैं जो प्रतिदिन किये जाते है। वो सभी कर्म जो प्रतिदिन किये जाते हैं नित्यकर्म कहलाते हैं। तथापि इस व्याख्या में वो कर्म ही आते हैं जो भौतिक शरीर व संसार से संबद्ध होते हैं। सनातन में भौतिक जीवन के अतिरिक्त और अधिक भी एक दूसरा जीवन जिया जाता है और उसका नाम है आध्यात्मिक जीवन।
नित्यकर्म मानव जीवन के दोषों को मार्जित करने और उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसे कर्म, जो शास्त्रोक्त विधि के अनुसार प्रतिदिन किये जाते हैं, नित्यकर्म कहलाते हैं। ये न केवल सामान्य नित्यकर्म होते हैं, बल्कि मनुष्यत्व के सार्थकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। नित्यकर्म क्या-क्या है, नित्यकर्म के लाभ क्या-क्या हैं की चर्चा करते हुये नित्यकर्म के संबंध में अन्य विशेष महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।
भारत के अतिरिक्त अन्य सभी भूमि भोगभूमि की श्रेणी में आते हैं किन्तु भारत कर्मभूमि की श्रेणी में आते है, भारत साधना भूमि कहलाता है, भारत मुक्तिभूमि कहलाता है। भारत में अनेकानेक तीर्थ हैं, सर्वत्र मंदिर-ही-मंदिर हैं। भारतीय लोगों के देवताओं की संख्या भी 33 कोटि बताई गयी है और इसमें उन कुतर्कियों के कुतर्क से कोई अंतर नहीं पड़ता जो कोटि का अर्थ प्रकार बताते हैं।
कर्मभूमि/साधनाभूमि भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने कर्मों के द्वारा मुक्ति प्राप्त कर सकता है जो अन्य भूमियों में संभव ही नहीं है। देवता भी भारत की भूमि पर मनुष्य जन्म पाने की लालसा रखते हैं, देवताओं की भी इच्छा होती है कि उनका अगला जन्म भारत में ही हो और मनुष्य योनि ही प्राप्त हो जिससे की वो कर्म/साधना के माध्यम से आत्मकल्याण कर सकें, मोक्ष पा सकें।
कर्म के प्रकार
जब कर्म की चर्चा की जाती है तो कर्म के तीन प्रकार होते हैं और कर्म की चर्चा का तात्पर्य आत्मकल्याण परक कर्म से अर्थात आध्यात्मिक कर्मों से होता है, न की जीवनचर्या, आजीविका, भोग, विलास आदि-इत्यादि, तो कर्म के प्रकार की भी चर्चा होती है। क्योंकि कुछ कर्म हैं जो प्रतिदिन करने होते हैं, कुछ कर्म विशेष निमित्त/अवसरों पर किये जाते हैं तो कुछ कर्म विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिये किये जाते हैं। इस कारण कर्म के तीन प्रकार हो जाते हैं :
- नित्यकर्म
- नैमित्तिक कर्म
- काम्य कर्म
नित्यकर्म – nitya karm puja
इस आलेख में नित्यकर्म से संबधित विषय को लिया गया है। नित्यकर्म का तात्पर्य हो जाता है कि नित्य आत्मकल्याण का प्रयास करना। नित्यकर्म में एक अन्य विषय भी है वो यह है कि जीवनयापन में प्रतिदिन हिंसा होती है और उस हिंसा का नित्य मार्जन करना भी अनिवार्य है। यदि नित्यकर्म न किया जाय तो उस हिंसा के दोष की निवृत्ति नहीं होती है।