जानिये सही पार्थिव शिवलिंग पूजन विधि और मंत्र – parthiv shivling puja vidhi

जानिये सही पार्थिव शिवलिंग पूजन विधि और मंत्र - parthiv shivling puja vidhi

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये अनेकों प्रकार की पूजा विधियां हैं जिनमें से एक है पार्थिव शिवलिंग पूजन विधि (parthiv shivling puja vidhi) जिसमें मुख्य रूप से मिट्टी आदि अनेकों द्रव्यों से कामना के अनुसार शिवलिंग का निर्माण करके उनकी पूजा की जाती है। बहुत सारे लोग प्रतिदिन भी पार्थिव पूजन करते हैं। पार्थिव शिव पूजन; जिसमें शिवलिंग का निर्माण किया जाता है; की एक विशेष विधि भी होती है जो अन्य शिवपूजन विधि से भिन्न है। यहां पार्थिव शिव पूजन की विधि और मंत्र दिया गया है।

मिट्टी, गोबर, गुड़ आदि अनेकानेक द्रव्यों से शिवलिंग का निर्माण करके उनकी पूजा करना ही पार्थिव शिव पूजन कहलाता है। बहुत लोग मात्र मिट्टी से बने शिवलिंग को ही पार्थिव समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है शिवलिंग बनाकर पूजा करने में मिट्टी से लिंग निर्माण करना मुख्य रूप से होता है किन्तु अन्य द्रव्यों से भी शिवलिंग का निर्माण करके पूजन करना पार्थिव पूजन ही कहलाता है। विभिन्न द्रव्यों से शिवलिंग निर्माण करने की विशेष विधि होती है जिसका विधान कामनाओं के अनुसार मिलता है।

यहां हम पार्थिव पूजन की जिस विधि का अवलोकन करेंगे वह मुख्य रूप से मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करने की है। पार्थिव पूजन प्रतिदिन भी किया जा सकता है और इसलिये इसकी विधि सरल होती है। विशेष पूजा में उनका अभिषेक भी किया जाता है। रुद्राभिषेक जब पार्थिव लिंग (मिट्टी के शिवलिंग) पर किया जाता है तो उसमें रुद्रसूक्त के 16 ऋचाओं का ही पाठ किया जाता है और इसे महाभिषेक भी कहा जाता है।

यदि यह सुनिश्चित हो जाये कि सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी पाठ पूर्वक रुद्राभिषेक करने पर भी पार्थिव लिंग का क्षरण नहीं होगा तो किया जा सकता है। तथापि यह सुनिश्चित करना बहुत ही कठिन है और जो लोग कर लेते हैं वो रुद्राभिषेक के उपरांत एक बार सही से पार्थिव लिंग का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें ज्ञात होगा कि क्षरण होता है अथवा नहीं।

पार्थिव पूजन में सबका अधिकार होता है इसलिये अनुपनीतों के लिये वेदमंत्र व प्रणव रहित विधि की आवश्यकता होती है। अतः पार्थिव पूजन की विधि अधिक जटिल नहीं होती है और इसमें वेदमंत्रों के प्रयोग की भी आवश्यकता नहीं होती है। प्रणव प्रयोग मात्र में ही अंतर करने की आवश्यकता होती है।

यहां प्रणव प्रयोग करते हुये पूजन मंत्र दिये जा रहे हैं किन्तु शास्त्रों में जिनके लिये प्रणव प्रयोग का निषेध किया गया है वो प्रणव का प्रयोग न करके नमः, ओम् आदि का उच्चारण करें। जिनकी धर्म में आस्था है और कल्याण की कामना रखते हों उन्हें अधिकार की लड़ाई नहीं अपितु शास्त्रों नियमों का पालन करना चाहिये। अनुपनीतों को यदि रुद्राभिषेक करना हो तो उनके लिये आगमोक्त नमक चमक प्रयोग भी प्राप्त होता है।

पूजा राजनीति करने का विषय नहीं आत्मकल्याण का मार्ग है अतः आत्मकल्याण के इच्छुक प्रणव में अधिकार की राजनीति करके शास्त्र का उल्लंघन नहीं करते हैं। शास्त्र का उल्लंघन वो नारकीय प्राणी करते हैं जिन्हें धर्म-आत्मकल्याण आदि से कुछ लेना-देना नहीं होता मात्र राजनीति और विवाद करना होता है।

स्नान संध्योपासन आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर पार्थिव पूजन के लिये शुभासन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। पार्थिव पूजन मुख्य रूप से दिन में ही किया जाता है विशेष पूजा में प्रदोषकाल, रात्रि होती है। दिन में पूजा करने के लिये पूर्वाभिमुख और उत्तराभिमुख दोनों प्रकार से बैठा जा सकता है किन्तु प्रदोषकाल की पूजा करनी हो तो उत्तराभिमुख ही बैठे।

पूजा की सभी सामग्री को व्यवस्थित कर ले। पार्थिव पूजन हेतु शुद्ध मिट्टी को भी पूर्व में ही ग्रहण करके उसे महीन चूर्ण बनाकर, कंकर आदि ध्यानपूर्वक छान कर हटा दे। इस प्रकार से संचित मिट्टी से ही शिवलिंग का निर्माण करे; न कि शीघ्रता पूर्वक कहीं से भी किसी प्रकार की मिट्टी लेकर बिना कंकर आदि निकाले। शुद्ध कंकर आदि रहित जितनी मिट्टी उपलब्ध हो सके उतने से ही पार्थिव बनाये। वर्त्तमान में एक व्यवहार देखा जा रहा है मिट्टी की शुद्धता का विचार किये बिना लाखों शिवलिंग बनाकर पूजा करना जो शास्त्रोचित नहीं है। मिट्टी में एक विशेषता और होती है वो है यदि उपलब्ध हो तो गंगा जी की मिट्टी मिश्रित करना।

शिवलिंग की संख्या का निर्धारण भी कामना के अनुसार निर्धारित किया जाता है। ये आवश्यक नहीं है कि सभी कामनाओं के लिये विधि का पालन किये बिना सवालाख शिवलिंग का निर्माण करें ही करें। यहां सवा लाख शिवलिंग निर्माण का विरोध किया जा रहा है ये नकारात्मक भाव है, वास्तविक तात्पर्य यह है कि यदि उचित विधि से ग्रहण की गयी मिट्टी पर्याप्त मात्रा में हो तो सवालाख शिवलिंग का निर्माण-पूजन करे, किन्तु यदि शुद्ध मिट्टी कुछ सौ/सहस्र लिंग निर्माण करने के लिये ही उपलब्ध हो तो कामना के अनुसार उतनी मिट्टी में बनने योग्य संख्या का ही ग्रहण करे। विभिन्न कामनाओं के लिये शिवलिंग की संख्या के विषय में यह प्रमाण प्राप्त होता है :

दैशिकात्सकलं ज्ञात्वा कुर्य्यालिङ्गफलप्रदम् । विद्यार्थी लिंगसाहस्रं धनार्थी च तदर्द्धकम् ॥१॥
पुत्रार्थी सप्तसाहस्रं कन्यार्थी तु शतत्रयम् । वन्ध्या लिगायुतं कुर्यात्सर्वपापहरं शुभम् ॥२॥
राज्यार्थी शतसाहस्रं कांतार्थी शतपञ्चकम् । मोक्षार्थी कोटिगुणितं भूकामश्च सहस्रकम् ॥३॥
रूपार्थी तु त्रिसाहस्रं तीर्थार्थी द्विसहस्रकम् । सुहृत्कामः सहस्रं स्याद्वस्त्रार्थी शतमष्टकम् ॥४॥

मारणार्थी सप्तशतं मोहनार्थी शताष्टकम् । उच्चाटनपरश्चैव सहस्रं तु यथोक्तवत् ॥५॥
स्तम्भनं तु सहस्रेण जारणं च तदर्द्धवत् । निगडान्मुक्तिकामस्तु सहस्रं सार्द्धमीरितम् ॥६॥
महाराजभये पञ्चशतं चौरादि संकटे । शतद्वयं च डाकिन्या भये पञ्चशतं परम् ॥
दरिद्रः पञ्चसाहस्रमयुतं सर्वकामदं ॥७॥

पार्थिव पूजन विधि और मंत्र

भस्म त्रिपुण्ड्र, रुद्राक्ष माला आदि धारण करके निर्धारित पूजा स्थान पर सभी सामग्री व्यवस्थित करके बैठे। पवित्रीकरण आदि विधि के अनुसार करके रक्षादीपक जला ले । स्वस्तिवाचन, गणपतिस्मरण आदि करके विधिपूर्वक निर्धारित संख्या में शिवलिंग निर्माण करके ताम्रादि जिस पात्र की व्यवस्था की गयी हो उसमें स्थापित करे :

मृदाहरण विधि

यद्यपि मृदाहरण के मंत्र का प्रयोग मृदाहरण काल में ही होना चाहिये तथापि जिन्हें मंत्र न आता हो वो पूजा काल में ही मृदाहरण मंत्र का प्रयोग करते हुये मृदाहरण की विधि पूर्ण करें।

  • सर्वप्रथम भूमि की प्रार्थना करे – ॐ सर्वाधारे देवि त्वद्रूपां म्रुत्तिकामिमाम,ग्रहीष्यामि प्रसन्ना त्वं लिंगार्थं भव सुप्रभे॥
  • तत्पश्चात इस मंत्र से भूमि (मिट्टी) को अभिमंत्रित करे : ॐ ह्रां पृथिव्यै नम:॥
  • पूजन : “ॐ हराय नमः” मंत्र से गन्धपुष्पादि अर्पित करते हुये पूजा करके अगले मंत्र मिट्टी ग्रहण करे।
  • मिट्टी ग्रहण करने का मंत्र : ॐ उद्धृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना। मृत्तिके त्वां च गृह्णामि प्रजया च धनेन च॥
  • इस प्रकार से मिट्टी ग्रहण करके पवित्रता रखते हुये घर लाये। मिट्टी को कंकरादि से रहित, चूर्ण करके संग्रह कर ले।
  • मृदाहरण की यह विधि पूजा से पूर्व करने की है किन्तु संभव न होने पर पूर्व में ग्रहण किये हुये मृदा में भी उपरोक्त विधि का पालन करे।

सुनिश्चित कामना-लिंगसंख्या आदि का उच्चारण करते हुये संकल्प करे। संकल्प हेतु प्रतिदिन के पञ्चाङ्गानुसार तिथि को जानना आवश्यक होता है यदि आप प्रतिदिन का पंचांग देखना चाहें तो यहां क्लिक करके देख सकते हैं : आज का पंचांग और शुभ मुहूर्त

यहां सरल संकल्प मंत्र दिया जा रहा विशेष संकल्प मंत्र हेतु अन्य आलेखों का अवलोकन कर सकते हैं। प्रतिदिन का संकल्प भी यहां क्लिक करके जान सकते हैं ~ आज का संकल्प मंत्र

त्रिकुशा, तिल, जल, गंधपुष्पाक्षत, द्रव्यादि लेकर पार्थिव पूजा का संकल्प करे :

पार्थिव पूजन संकल्प मंत्र : ॐ अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे महां मागल्यप्रद मासोतमे मासे ……… मासे ……… पक्षे …..… तिथौ ……… वासरे ……….  गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं (वर्मादि यथा योग्य) सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपापक्षयार्थं दीर्घायुरारोग्य धनधान्य पुत्रपौत्रादि समस्त सम्पत्प्रवृद्ध्यर्थं (अमुक) कामना सिद्ध्यर्थं श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं श्रीसाम्बसदाशिव प्रीत्यर्थं (अमुक) संख्यया पार्थिवलिंगपूजनमहं करिष्ये ॥

शिवलिंग निर्माण विधि

संकल्प के पश्चात् ब्राह्मण वरण करे, यदि प्रतिदिन पार्थिव पूजा करते हों तो अनिवार्य नहीं। ब्राह्मण वरण करने के पश्चात् दिग्बंधन करे ।

यदि मृदाहरण पूर्व में विधि के बिना किया गया हो तो वो विधि जो ऊपर बताई गयी है उसके अनुसार मृदाहरण की प्रक्रिया को पूर्ण करे तत्पश्चात शिवलिंग का आगे बताई विधि के अनुसार निर्माण करे। यहां एक बात पर विशेष बल दिया जा रहा है कि एक लिंग की ही पूजा करे किन्तु विधिपूर्वक निर्माण करके करे। विधि से रहित करोड़ों लिंग की पूजा करने की अपेक्षा विधिपूर्वक एक लिंग की पूजा भी अधिक श्रेयस्कर है। शास्त्रों में ही बताया गया है कि विधि से रहित बड़ा कर्म भी अल्पफल कारक नहीं होता है और विधिपूर्वक किया गया अल्प कर्म भी अधिक फलकारक होता है :

यथोक्तं सुकृतं यस्तु विधिवत् कुरुते नरः । स्वल्पं मुनिवरश्रेष्ठ मेरुतुल्यं भवेच्च तत् ॥
विधिहीनं तु यः कुर्यात्सुकृतं मेरुमात्रकम् । अणुमात्रं न चाप्नोति फलं धर्मस्य नारद ॥

ऊपर जो विधि की महत्ता कही गयी है वो सप्रमाण है न कि प्रमाण रहित कल्पना मात्र। प्रमाण भी दिया गया है जो स्कंदपुराण का है और देवोत्थान एकदशी व्रत कथा में भी देखा जा सकता है। विधि संबंधी चर्चा में एक और विषय पर विचार करना अत्यावश्यक है।

वर्त्तमान काल में पार्थिव शिवपूजा का प्रचलन बहुत बढ़ा है किन्तु उसमें मृदाहरण और लिंग निर्माण विधि का तनिक भी पालन नहीं किया जाता है। पार्थिवपूजा भी प्रदर्शन मात्र रह गया है ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। संख्या के नाम पर तो सहस्रों नहीं सवालाख भी कहा जाता है किन्तु विधि के अनुसार एक लिंग निर्माण भी हुआ ऐसा कहना कठिन होता है। लिंग के आकार का भी विधान है और वो है अंगुष्ठ मात्र, यदि अधिकतम बड़ा हो तो वितस्तिप्रमाण (वित्ता/द्वादशांगुल) हो।

किन्तु सवालाख में अंगुष्ठ प्रमाण का भी निर्माण नहीं होता उससे भी लघु होता है एवं जिस एक लिंग का विशेष पूजा के लिये निर्माण किया जाता है वो बहुत बड़ा बना दिया जाता है, बस फोटो खींचकर सोशलमीडिया पर दिया जाय यही उद्देश्य रहता है। यह आचरण सर्वथा निंदनीय है और जो कर्मकांड में आस्था रखने वाले यजमान और कर्मकांडी है वो इस विषय का पालन सुनिश्चित करके ही पूजा करें।

वेदी निर्माण की विडंबना

वर्त्तमान काल में एक और विडंबना बढती ही जा रही है वो है अनेकानेक वेदी निर्माण करना। यदि कोई कर्मकांडी किसी नये यजमान के यहां पूजा करने जाते हैं तो वो वेदियों की संख्या में वृद्धि करने का प्रयास करते हैं और यह विचार नहीं करते कि कब किस वेदी की आवश्यकता होती है कब नहीं। पार्थिव लिंग पूजन करना हो तो अनेकानेक वेदी निर्माण करने में समय व्यतीत करने की अपेक्षा विधिपूर्वक लिंग निर्माण कर पूजा करना श्रेयस्कर सिद्ध होगा। वेदी निर्माण की विडंबना को इस विडियो से स्पष्टः समझा जा सकता है।

उपरोक्त विधि से सावधानी पूर्वक लिंग निर्माण किया जाय तो एक व्यक्ति अधिकतम २१०० – २५०० ही निर्माण कर सकते हैं किन्तु ५०००/७०००/८००० तक निर्माण करते देखा जाता है। लिंग निर्माण “ॐ महेश्वराय नमः” मंत्र से किया जाता है यह मंत्र प्रत्येक लिंग निर्माण में पढ़ें न कि लिंग निर्माण करते समय वार्तालाप-हंसी-मजाक आदि करे।

  • “ॐ वं” इस मंत्र को पढकर मिट्टी को सिक्त करे, जल मिलाकर भलीभांति अवलोकन पूर्वक कंकड आदि निकाले और मिट्टी को गूंथ ले। गूंथे हुये मिट्टी को शुद्ध पात्रादि (व्यवस्थानुसार) में रखे ।
  • थोड़ी मृदा ग्रहण करके “ॐ ह्रीं ग्लौं गं गणपतये नमः ग्लौं गं ह्रीं इस एकादशाक्षर मंत्र से बालगणपति का निर्माण करके आसन पर स्थापित करे ।
  • मृदा ग्रहण : “ॐ हराय नमः” इस मंत्र से लिंग निर्माण हेतु मिट्टी ले ।
  • लिंग गठन : “ॐ महेश्वराय नमः” कहकर लिंग निर्माण करे, यह अंगूठे से न छोटा हो और न वित्ते (१२ अंगुल) से बडा हो। मिट्टी की नन्ही सी गोली बनाकर लिंग के ऊपर रखें, यह वज्र कहलाता है ।
  • लिंग स्थापन : “ॐ शूलपाणये नमः” मंत्र से कांसा आदि के पात्र/वस्त्र/पीठ आदि जो व्यवस्था हो उसपर स्थापित करें ।
  • तत्पश्चात शेष मृदा से गणपति, कीर्तिमुख आदि का भी निर्माण करे। “ॐ ऐं हुँ क्षुं क्लीं कुमाराय नमः” मंत्र से षण्मुख (कार्तिक) की प्रतिमा का निर्माण करके स्थापित करे।

पूजनारम्भ

पुनः अन्य सभी व्यवस्थाएं व्यवस्थित करके तत्पश्चात् पूजनारम्भ करे । सर्वप्रथम आचमन-प्राणायाम करके न्यास करे :

विनियोग : ॐ अस्य श्रीसदाशिवमन्त्रस्य वामदेवऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, श्रीसदाशिवो देवता, ॐ बीजं, नमः शक्तिः, शिवाय कीलकं, मम साम्बसदाशिवप्रीत्यर्थे पार्थिवलिङ्गपूजने विनियोगः ॥

॥ ऋष्यादि न्यास ॥

  • ॐ वामदेवऋषये नमः शिरसि ॥
  • ॐ पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे ॥
  • ॐ श्रीसदाशिवदेवतायै नमः हृदये ॥
  • ॐ बीजाय नमः गुह्ये ॥
  • ॐ शक्तये नमः पादयोः ॥
  • ॐ शिवाय कीलकाय नमः सर्वाङ्गे ॥

॥ इति ऋष्यादिन्यासः ॥

॥ करन्यास ॥

  • ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः ॥
  • ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः ॥
  • ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः ॥
  • ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः ॥
  • ॐ वां कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥
  • ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

॥ इति करन्यासः ॥

॥ हृदयन्यास ॥

  • ॐ ॐ हृदयाय नमः ॥
  • ॐ नं शिरसे स्वाहा ॥
  • ॐ मं शिखायै वषट् ॥
  • ॐ शि कवचाय हुं ॥
  • ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् ॥
  • ॐ यं अस्त्राय फट् ॥

तत्पश्चात् कलश स्थापन-पूजनादि करके भगवान शिव का ध्यान करे :

ध्यान

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृतिं वसानं
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

॥ ध्यानोपरांत मानस पूजन करे ॥

॥ प्राणप्रतिष्ठा ॥

विनियोग : ॐ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषयः, ऋग्यजुःसामानि च्छन्दांसि, क्रियामयवपुः प्राणाख्या देवता, आं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्रौं कीलकं देवे प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः ॥

न्यास

  • ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि ॥
  • ॐ ऋग्यजुःसामच्छन्दोभ्यो नमो मुखे ॥
  • ॐ प्राणाख्यदेवतायै नमः हृदि ॥
  • ॐ आं बीजाय नमः गुह्ये ॥
  • ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ॥
  • ॐ क्रौं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे ॥

इस प्रकार पुष्पादि स्पर्शपूर्वक न्यास करके प्राण-प्रतिष्ठा करे :

॥ शिव प्राण प्रतिष्ठा मंत्र ॥
  • ॐ आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षं सँ हँ सः सोहँ शिवस्य प्राणा इह प्राणाः ॥
  • ॐ आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षं सँ हँ सः सोहँ शिवस्य जीव इह स्थितः ॥
  • ॐ आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षं सँ हँ सः सोहँ शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वक्चक्षुश्श्रोत्र घ्राण जिह्वा पाणि पादपायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥ 

इन मंत्रों से पुष्पाक्षत अर्पित करते हुये प्राणप्रतिष्ठां करके पुनः अञ्जलिबद्ध हो ध्यान करे –

ॐ दक्षोत्सङ्ग निषण्णकुञ्जरमुखं प्रेम्णा करेण स्पृशन्
वामोरुस्थितवल्लभाङ्कनिलयं स्कन्दं परेणामृशन् ।
इष्टाभीतिमनोहरं करयुगं बिभ्रत् प्रसन्नाननो
भूयान्नः शरदिन्दुसुन्दरतनुः श्रेयस्करः शङ्करः ॥

ध्यान करके नमस्कार करे –

नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गामृतात्मने । चतुर्मूर्तेश्च पुंशक्त्या भासितांगाय शम्भवे ॥
सर्वज्ञ ज्ञान विज्ञान प्रदानैक महात्मने । नमस्ते देवदेवेश सर्वभूतहितेरत ॥

आवाहन

नमस्कार करके लिंग का स्पर्श करते हुये आवाहन करे :

  • भूः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥
  • भुवः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥
  • स्वः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥

ॐ स्वामिन् सर्व जगन्नाथ यावत्पूजावसानकं । तावत्त्वं प्रीतिभावेन लिङ्गेऽस्मिन् सन्निधौ भव ॥

॥ शिव पूजनम् ॥

तत्पश्चात “ॐ ह्रीं ग्लौं गं गणपतये नमः ग्लौं गं ह्रीं” मंत्र से गणपति की पूजा करके “ॐ ऐं हुँ क्षुं क्लीं कुमाराय नमः” मंत्र से कार्तिक की पूजा करे। इसी प्रकार यदि कीर्तिमुख, सर्पादि बनाया गया हो तो उनकी भी पूजा कर ले। गण पूजा करके तदुपरांत भगवान शिव का पुनः ध्यान करके पूजन करे। यहां वेदोक्त मंत्रों से पूजा विधि दी जा रही है। जिन्हें पौराणिक मंत्रों से पूजा करनी हो उनके लिये पूर्व में ही आलेख प्रकाशित किया जा चुका है और यहां क्लिक करके अवलोकन कर सकते हैं।

ध्यान मंत्र

ॐ दक्षांकस्थं गजपतिमुखं प्रामृशन् दक्षदोष्णा
वामोरुस्थां नगपतनयां के ग्रहं चापरेण ।
इष्टाभीती परकरयुगे धारयन्निन्दुकान्ति-
मव्यादस्मांस्त्रिभुवननतो नीलकण्ठस्त्रिनेत्रः ॥

पाद्य

ॐ नमोऽतु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे अथो येऽअस्य सत्वानो ऽहन्तेभ्यो करन्नमः ॥
॥ पादयोः पाद्यं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अर्घ्य

ॐ गायत्रीत्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभि: शम्यन्तु त्वा ॥
॥ हस्तयोः अर्घ्यं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

आचमन

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
॥ मुखे आचमनीयं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

मधुपर्क

ॐ मधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः माध्वीर्न: सन्त्वोषधिः मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ᳪ रजः मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां २ अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तुनः
॥ इदं मधुपर्कम् ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
मधुपर्कान्ते आचमनीयं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः

स्नान

ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्त्थो
वरुण्स्य ऽऋतसदन्न्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋत सदनमासीद्
॥ इदं स्नानीयं जलं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दुग्ध स्नान

ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओपधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः पयस्वतीः । प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
॥ इदं पयःस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

शुद्धोदक –
पयः स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दधि स्नान

ॐ दधि क्राव्णोऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य व्वाजिनः ।
सुरभि नो मुखा करत्प्रण आयू
षि तारिषत्॥
॥ इदं दधिस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक –
दधि स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

घृत स्नान

ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतमवस्य धाम
अनुष्वधमावह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्
॥ इदं घृतस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक –
घृत स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

मधु स्नान

ॐ मधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः माध्वीर्न: सन्त्वोषधिः मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ᳪ रजः मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां २ अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तुनः
॥ इदं मधुस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक –
मधु स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

शर्करा स्नान

ॐ अपा ᳪ रसमुद्वयस सूर्ये सन्त ᳪ समाहितम्। अपा ᳪ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्
॥ इदं शर्करास्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक –
शर्करा स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पञ्चामृत स्नान

पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतसः ।
सरस्वती तु पञ्चधा सो देशे भवत्सरित् ॥
॥ इदं पञ्चामृतस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक –
गंधोदक स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

शुद्धोदक स्नान

शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः श्येतः श्येताक्षो रुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ॥
॥ इदं शुद्धोदकस्नानं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पार्थिव शिवलिंग रुद्राभिषेक

ॐ नमस्ते रुद्द्र मन्न्यव ऽउतो त ऽइषवे नमः ।
बाहुब्भ्यामुत ते नमः ॥१॥

या ते रुद्द्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ।
तयानस्तन्न्वाशन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि ॥२॥

यामिषुङ्गिरिशन्तहस्ते बिभर्ष्ष्यस्तवे ।
शिवाङ्गिरित्रताङ्कुरुमा हि ᳪ सीः पुरुषञ्जगत् ॥३॥

शिवेनव्वचसात्त्वागिरिशाच्छाव्वदामसि ।
यथा नः सर्व्वमिज्जगदयक्ष्म ᳪ सुमनाऽअसत् ॥४॥

अद्धयवोचदधिवक्क्ताप्प्रथमोदैव्व्योभिषक्।
अहीँश्च्चसर्व्वाञ्जभयन्त्सर्व्वाश्च्चयातुधान्न्योऽधराचीः परासुव॥५॥

असौयस्ताम्म्रोऽअरुणऽउतबब्भ्रुः सुमङ्गलः ।
ये चैन ᳪ रुद्द्राऽअभितोदिक्षुश्रिताः सहस्रशोऽवैषा ᳪ हेडऽईमहे ॥६॥

असौ योऽवसर्प्पति नीलग्ग्रीवो व्विलोहितः।
उतैङ्गोपाऽअदृश्श्रन्नदृश्श्रन्नुदहार्य्यः सदृष्टो मृडयातिनः ॥७॥

नमोऽस्तु नीलग्ग्रीवाय सहस्राक्षायमीढुषे।
अथोये ऽअस्य सत्त्वानोऽहन्तेब्भ्योऽकरन्नमः ॥८॥

प्प्रमुञ्चधन्न्वनस्त्वमुभयोरार्त्क्ज्याम्।
याश्च्च तेहस्तऽइषवः पराता भगवोव्वप ॥९॥

व्विज्ज्यन्धनुः कपर्द्दिनो व्विशल्ल्यो बाणवाँ२ ऽउत ।
अनेशन्नस्ययाऽइषव ऽआभुरस्यनिषङ्गधिः ॥१०॥

याते हेतिर्म्मीढुष्ट्टमहस्ते बभूव ते धनुः।
तयास्म्मान्निवश्श्वतस्त्वमयक्ष्म्मया परिभुज ॥११॥

परि ते धन्न्वनोहेतिरस्म्मान्न्व्वृणक्तु व्विश्श्वतः।
अथोयऽइषुधिस्तवारेऽअस्म्मन्निधेहितम् ॥१२॥

अवतत्त्य धनुष्ट्व ᳪ सहस्राक्षशतेषुधे।
निशीर्य्यशल्ल्यानाम्मुखा शिवोनः सुमना भव ॥१३॥

नमस्त ऽआयुधायानातताय धृष्ष्णवे।
उभाब्भ्यामुतते नमो बाहुब्भ्यान्तव धन्न्वने ॥१४

मानोमहान्तमुतमानोऽअर्ब्भकम्मानऽउक्षन्तमुतमानऽउक्षितम् ।
मानोव्वधीः पितरम्मोतमातरम्मानः प्प्रियास्तन्न्वो रुद्द्ररीरिषः ॥१५॥

मानस्तोकेतनये मानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिषः।
मानोव्वीरान्न्रुद्द्रभामिनोव्वधीर्हविष्म्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥१६॥

वस्त्र

प्प्रमुञ्चधन्न्वनस्त्वमुभयोरार्त्क्ज्याम्।
याश्च्च तेहस्तऽइषवः पराता भगवोव्वप

॥ इमे वस्त्रोपवस्त्रे साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
आचमनीयं ………

आभरणं

व्विज्ज्यन्धनुः कपर्द्दिनो व्विशल्ल्यो बाणवाँ२ ऽउत ।
अनेशन्नस्ययाऽइषव ऽआभुरस्यनिषङ्गधिः

इदं आभरणं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
आचमनीयं ………

यज्ञोपवीत

ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विषीमतः सुरुचोव्वेन आवः
स बुध्न्या उपमाऽअस्यविष्ठाः शतश्चयोनिमशतश्चव्विवः

॥ इमे यज्ञोपवीते साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
आचमनीयं ………

गन्ध-चन्दन

नमः श्वब्भ्यः श्वपतिब्भ्यश्च वो नमोनमो भवाय च रुद्राय च
नमः शर्व्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्ग्रीवाय च शितिकण्ठाय च नमः कपर्द्दिने
॥ इदं गन्धं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अक्षत

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्क्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च
॥ इदं अक्षतं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पुष्प

नमः पार्य्याय चावार्य्याय च नमः प्प्रत्तरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्त्थ्याय च कूल्ल्याय च नमः शष्प्याय च फ़ेन्न्याय च नमः
॥ इदं पुष्पं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
इदं पुष्पमाल्यं …….

बिल्वपत्रं

नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो व्वर्मिणे च व्वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चाहनन्न्याय च
॥ इदं बिल्वपत्रं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दूर्वा

ॐ काण्डात्काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवानो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च
दूर्वांकुरान् ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

इसी प्रकार जितना अधिक द्रव्य अर्पित करना हो करे, किन्तु द्रव्य शुद्धि विचार करके ही करे। अन्य पुष्प, शमीपत्र, परिमल द्रव्य, कुंकुमादि जो उपलब्ध किया गया हो अर्पित करे किन्तु विशेष द्रव्यों के विषय में विशेष विचार करने की अपेक्षा है। स्प्रे/सेंट नाम से जो बाजार में प्राप्त होता है वह पूजा के योग्य नहीं होता और भगवान की पूजा में उसका प्रयोग करना अनुचित है, अशुद्ध द्रव्य अर्पित करे ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है।

जहां विधिवत पूजा में मृदानयन तक में पवित्रता का विधान है वहां अज्ञात विधि व निर्माता द्वारा निर्मित वस्तु का पूजा में प्रयोग करना अनुचित है। भस्म भी स्वयं निर्माण करे तो ही अर्पित करे क्रीत भस्म-कुंकुमादि की शुद्धता संदिग्ध है और शुद्धता के संदिग्ध होने पर प्रयोग न करना ही उचित है। क्रीत पुष्प-माला-पत्र-समिधा आदि भी पूजा-हवन के योग्य नहीं होता है। माली से लिया गया पुष्पादि क्रीत की श्रेणी में नहीं आता है। कलयुग का दुष्प्रभाव ऐसा है कि गंगाजल भी क्रय-विक्रय किया जा रहा है।

आवरण पूजा

एकादश रुद्र पूजन मंत्र : ॐ अघोराय नमः ॥१॥ ॐ पशुपतये नमः ॥२॥ ॐ शिवाय नमः ॥३॥ ॐ विरूपाय नमः ॥४॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥५॥ ॐ भैरवाय नमः ॥६॥ ॐ त्र्यम्बकाय नमः ॥७॥ ॐ शूलपाणये ममः ॥८॥ ॐ कपर्दिने नमः ॥९॥ ॐ ईशानाय नमः ॥१०॥ ॐ महेशाय नमः ॥११॥

शक्ति पूजन : ॐ भगवत्यै नमः ॥१॥ ॐ उमादेव्यै नमः ॥२॥ ॐ शंकर प्रियायै नमः ॥३॥ ॐ पार्वत्यै नमः ॥४॥ ॐ गौर्यै नमः ॥५॥ ॐ कालिन्द्ये नमः ॥६॥ ॐ काटिव्यै नमः ॥७॥ ॐ विश्वधारिण्यै नमः ॥८॥ ॐ विश्वेश्वर्यै नमः ॥९॥ ॐ विश्वमात्रे नमः ॥१०॥ ॐ शिवायै नमः ॥११॥

अष्टमूर्ति पूजन मंत्र : पूर्व ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः ॥१॥ ईशान : ॐ भवाय जलमूर्तये नमः ॥२॥ उत्तर : ॐ रुद्रायाग्निमूर्तये नमः ॥३॥ वायव्य : ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः ॥४॥ पश्चिम : ॐ भीमायाकाशमूर्तये नमः ॥५॥ नैर्ऋत्य : ॐ पशुपतये यजमानमूर्तये नमः ॥६॥ दक्षिण :  ॐ महादेवाय सोममूर्तये नमः ॥ ७ ॥ अग्निकोण : ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः ॥८॥

तदनंतर दशों दिशाओं में इन्द्रादि दशदिक्पाल की पूजा करे और फिर प्रणालिका/अर्घा में “ह्रीं उमायै नमः” मंत्र से गौरी की पूजा करे।

धूप

नमः कपर्द्दिने च व्व्युप्तकेशाय च नमः सहस्राक्षाय च शतधन्न्वने च
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्ट्टाय च नमो मीढुष्ट्टमाय चेषुमते च
॥ एष धूपः ॐ साङ्गाय
साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दीप

नमऽआशवे चाजिराजाय च नमः शीग्घ्र्याय च शीब्भ्याय च
नमऽऊर्म्म्याय चावस्वन्न्याय च नमो नादेयाय च द्द्वीप्प्याय च
॥ एष दीपः ॐ साङ्गाय
साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

नैवेद्य

नैवेद्य में भी फल-मेवा के अतिरिक्त अन्य क्रीत मिष्टान्नादि अर्पित न करे। पायस-पक्वान्न-मिष्टान्नों के लिये घर में स्वयं पवित्रता पूर्वक निर्माण की व्यवस्था करे। क्रीत मिष्टान्नों में बतासा मात्र को ही शुद्ध माना जाता है एवं अन्य मिष्टान्नों के निर्माण में भी यह ध्यान रखे के छेना से निर्मित मिष्टान्न शुद्ध नहीं होते, खोया से बनाया गया मिष्टान्न ही अर्पित करना चाहिये।

ॐ नमो जयेष्ठ्ठाय च कनिष्ठ्ठाय च नमः पूर्व्वजाय चापरजाय च
नमो मद्ध्यमाय चापगल्ब्भाय च नमो जघन्न्याय च बुध्न्याय च ॥
॥ एतानि नानाविध नैवेद्यानि ॐ साङ्गाय साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

आचमन

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
॥ इदं आचमनीयं ॐ साङ्गाय साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

ताम्बूल

ॐ इमारुद्द्रायतवसे कपर्द्दिने क्षयद्वीराय प्प्रभरामहेमतीः ।
यथाषमसद्द्विपदे चतुष्ष्पदे व्विश्व्म्पुष्टङ्ग्रामेऽअस्म्मिन्ननातुरम् ॥
॥ मुखवासार्थे ताम्बूलं सपूगीफलं ॐ साङ्गाय साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

फल

ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकम्मऽइषाण ॥
॥ एतानि ऋतुफलानि ॐ साङ्गाय सदाशिवाय नमः ॥

दक्षिणा

ॐ हिरण्यगर्ब्भ: समवर्त्तताग्ग्रे भूतस्य जात: पतिरेकऽआसीत ।
स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
॥ पूजासाफल्यार्वथे दक्षिणाद्रव्यं ॐ साङ्गाय सदाशिवाय नमः ॥

तर्पण

तत्पश्चात् किसी पात्र में अक्षतयुक्त जल लेकर तर्पण करे । देवतर्पण में जीवितपितृ भी अधिकृत होता है।

ॐ भवं देवं तर्पयामि ॥१॥ ॐ शर्वं देवं तर्पयामि ॥२॥ ॐ ईशानं देवं तर्पयामि ॥३॥ ॐ पशुपति देवं तर्पयामि ॥४॥ ॐ उग्रं देवं तर्पयामि ॥५॥ ॐ रुद्रं देवं तर्पयामि ॥६॥ ॐ भीमं देवं तर्पयामि ॥७॥ ॐ महान्तं देवं तर्पयामि ॥८॥

ॐ भवस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥१॥ ॐ शर्वस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥२॥ ॐ ईशानस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥३॥ ॐ पशुपतेर्देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥४॥ ॐ उग्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥५॥ ॐ रुद्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥६॥ ॐ भीमस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥७॥ ॐ महतो देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥८॥

नीराजन

तदनंतर आरती की थाली सजाकर कर्पूर, दीप आदि से आरती करे –

 अग्निर्देवता वातौ देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवताऽऽदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता ॥

ॐ कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥१॥

वन्दे देवमुमापति सुरगुरु वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम् ॥२॥

शान्तं पद्मासनस्थं शशधरमुकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
शूलं वज्रं च खङ्ग परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तम् ।
नागं पाशं च घंटां डमरुकसहितं सांकुशं वामभागे
नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥३॥

यहां जानें द्वात्रिंशोपचार शिव पूजा विधि मंत्र ~ shiva puja vidhi mantra

प्रदक्षिणा

ॐ ये तीर्त्थानि प्प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः ।
तेषा ᳪ सहस्रयोजनेऽवधन्न्वानि तन्न्मसि ॥

पुष्पाञ्जलि मंत्र

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः
॥ एष मंत्र पुष्पाञ्जलिं ॐ साङ्गाय सदाशिवाय नमः ॥

साष्टाङ्ग प्रणाम

ॐ शिरो मत्पादयोः कृत्वा बाहुभ्यां च परस्परम् ।
प्रपन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात् ॥

ॐ स्तुतिं करोमि कां प्रभो मतिस्तु कुण्ठिता मम ।
भवद्गुणानुवादपारमेति किं चतुर्मुखः ॥
ततः प्रणाममेव ते करोमि दण्डवद्विभो ।
क्षमस्व मेऽपराधरूप दोषजालमीश्वर ॥

तत्पश्चात क्षमापनादि स्तोत्र पाठ करे।

क्षमापण

ॐ अंगहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं महेश्वर । पूजितोऽसि महादेव तत् क्षमस्व भ्रमात्कृतम् ॥१॥
यद्यप्युदाहृतैः पुष्पैरपास्तैर्भावदूषितैः । केशकीटापविद्धैश्च पूजितोऽसि मया प्रभो ॥२॥
अन्यत्रासक्तचित्तेन क्रियाहीनेन वा प्रभो । मनोवाक्कायदुष्टेन पूजितोऽसि त्रिलोचन ॥३॥
यच्चोपहतपात्रेण कृतमर्घ्यादिकं मया । तामसेन च भावेन तत्क्षमस्व मम प्रभो ॥४॥
मन्त्रेणाक्षरहीनेन पुष्पेण विफलेन च । पूजितोऽसि महादेव तत्सर्वं क्षम्यतां मम ॥५॥
व्रतं सम्पूर्णतां यातु फलं चाक्षयमश्नुते ।

अज्ञानयोगादुपचारकर्मं यत्पूर्वमस्माभिरनुष्ठितं ते ।
तदैव सोद्वासनकं दयालो पितेव पुत्रान्प्रतनो जुषस्व ॥६॥
अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं भवानेव दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमन्तः स्थिरां देहि मह्यं कृपाशील शम्भो कृतार्थोऽस्मि यस्मात् ॥७॥
ॐ नमोंकाररूपाय नमोऽक्षरवपुर्धृते । नमो नादात्मने तुभ्यं नमो बिन्दुकलात्मने ॥८॥

अलिंगलिंगरूपाय रूपातीताय ते नमः । त्वं माता सर्वलोकानां त्वमेव जगतः पिता ॥९॥
त्वं भ्राता त्वं सुहृन्मित्रं त्वं प्रियः प्रियरूपधृक् । त्वं गुरुस्त्वं गतिः साक्षात्त्वं पिता त्वं पितामहः ॥१०॥

नमस्ते भगवन् रुद्र भास्करामिततेजसे । नमो भवाय रुद्राय रसायाम्बुमयाय च ॥ ११॥
शर्वाय क्षितिरूपाय सदा सुरभिणे नमः । पशूनांपतये तुभ्यं पावकामिततेजसे ॥१२॥
भीमाय व्योमरूपाय शब्दमात्राय ते नमः । महादेवाय सोमाय अमृताय नमोऽस्तु ते ॥१३॥
उग्राय यजमानाय नमस्ते कर्मयोगिने । पार्थिवस्य च लिङ्गस्य यन्मया पूजनं कृतम् ॥१४॥
तेन मे भगवान् रुद्रो वांछितार्थं प्रयच्छतु ॥

करचरणकृतं वा कायजं कर्मजं वा । श्रवण नयनजं वा मानसं वापराधम् ॥
विहितमवहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व । जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

अर्पण

ॐ इतः पूर्वं प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यवस्थासु मनसा वाचा कर्मणा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना यत्कृतं यदुक्तं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु ॥ भगवान के चरणों में अर्पण करे।

विशेषार्घ्य

ॐ साधु वाऽसाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया । तत्सर्वं कृपया देव गृहाणाराधनं मम ॥१॥

पुष्पांजलि

ॐ रश्मिरूपा महादेवा अत्र पूजितदेवताः । सदा शिवांगलीनास्ताः सन्ति सर्वाः सुखावहाः ॥१॥

पार्थिव शिवलिंग विसर्जन मंत्र

ॐ गच्छ गच्छ परं स्थानं स्वस्थानं परमेश्वर । यत्र ब्रह्मादयो देवा न विदुः परमं पदम् ॥१॥ ॐ नमो महादेवदेवाय ॥

उपरोक्त मंत्र पढ़कर संहारमुद्रा प्रदर्शित करे। तदनंतर गणपति, स्कन्द आदि का भी विसर्जन करके ईशान कोण में जल से मंडल करके “ॐ व्यापक मण्डलाय नमः” में से पूजा करे ।

फिर निर्माल्य लेकर चण्डेश्वर को अर्पित करे “ॐ चण्डेश्वराय नमः” तत्पश्चात् चंडेश्वर का ध्यान करे :

ॐ चंडेश्वरं रक्ततनुं त्रिनेत्रं रक्तांशुकाढ्यं हृदि भावयामि ।
ढंकं त्रिशूलं स्फटिकाक्षमालां कमंडलुं बिभ्रतमिन्दुचूडम् ॥

  • “ॐ चण्डेश्वराय” कहकर अर्पित निर्माल्य की पूजा करे।
  • फिर तत्वमुद्रा से चरणोदक अर्पित करे “ॐ ध्ब्रूँ फट् चण्डेश्वर इमं बलिं गृह्ण स्वाहा”
  • चण्डेश्वर पुष्पांजलि : ॐ बलिदानेन सन्तुष्टश्चण्डेशः सर्वसिद्धिदः । शान्तिं करोतु मे नित्यं शिवभक्तिं ददातु च ॥१॥ लेह्यचोष्यान्नपानादि ताम्बूलं स्रग्विलेपनम् ॥ निर्माल्यं भोजनं तुभ्यं ददामि श्रीशिवाज्ञया ॥२॥
  • पुष्पांजलि अर्पित करके नाराचमुद्रा प्रदर्शित करते हुये विसर्जन करे : गच्छ गच्छ

निर्माल्य ग्रहण

ॐ बाणरावणचण्डीश नंदिभृंगिरिटादयः । शंकरस्य प्रसादोऽयं सर्वे गृह्णन्तु शांभवाः ॥१॥
निर्माल्यसलिलं पीत्वा देवदेवस्य शूलिनः । क्षयापस्मारकुष्ठाद्यैस्सद्यो मुच्येत पातकैः ॥२॥
अकालमृत्युहरणं ब्रह्महत्याविनाशनम् । व्याधिघ्नं भक्तकायस्य शिवनिर्णेजनोदकम् ॥३॥

तदनंतर पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन करे।

पार्थिव पूजन विधि pdf

यदि आप उपरोक्त पार्थिव शिवलिंग पूजा विधि का PDF डाउनलोड करना चाहते हैं तो उसके लिये नीचे PDF फाइल दिया गया है जिसे डाउनलोड कर सकते हैं।

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पार्थिव शिवलिंग पूजन सामग्री – parthiv shivling puja samagri

ऊपर दी गयी पूजा विधि हेतु भगवान पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने के लिये उपचारों के अनुसार ही सामग्रियों की भी आवश्यकता होती है। यहां उपरोक्त पूजा में विभिन्न उपचारों हेतु तदनुसार सामग्री सूची दी जा रही है :

  • शुद्ध मिट्टी पार्थिव शिवलिंग निर्माण करने हेतु निर्धारित संख्या के अनुसार।
  • गंगा जल, दूध, दही, घृत, मधु, शक्कर ।
  • वस्त्र, यज्ञोपवीत।
  • पुष्प, बिल्वपत्र, माला, दूर्वा, शमीपत्र इत्यादि।
  • श्रीखंड चंदन, सिंदूर, कुंकुम।
  • भस्म, गुलाबजल स्वनिर्मित हो सके तो।
  • अक्षत, तिल, यव।
  • धूप-धूना-गुग्गुल, दीप, बत्ती, कर्पूर।
  • नाना प्रकार के नैवेद्य : फल और मेवा के अतिरिक्त विविध प्रकार के पक्वान्न, मिष्टान्न आदि स्वयं शुद्धता पूर्वक बनाये ।
  • फल – यथोपलब्ध ऋतुफल, मेवा ।
  • ताम्बूल, लौंग, इलायची, सुपारी ।

विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in

मंत्र प्रयोग (कर्मकांड कैसे सीखें) में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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