पवित्रीकरण कर्मकांड का प्रथम कृत्य है। पवित्रीकरण का तात्पर्य है शरीर, आसन, स्थल, सामग्री आदि को शुद्ध करना। शरीर शुद्धि का मुख्य विधान भगवान विष्णु का स्मरण करना है। पवित्रीकरण हेतु मुख्य रूप से “ॐ अपवित्रः …….. पुनातु” का प्रयोग किया जाता है किन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेकों मंत्र हैं जिनका प्रयोग व्यावहारिक रूप से पाया जाता है। इस आलेख में पवित्रीकरण के अनेकानेक मंत्रों का संग्रह किया गया है।
पवित्रीकरण मंत्र – Pavitrikaran
पवित्रीकरण का मुख्य विधान विष्णु भगवान का स्मरण करना तो है ही, इसके साथ ही गंगा का स्मरण, गंगाजल का प्रोक्षण, पवित्री धारण आदि भी पवित्रीकरण में प्रयुक्त होता है। पवित्रीकरण हेतु वेद के मंत्र का भी प्रयोग किया जाता है एवं विशेष रूप से सामग्रियों की शुद्धि हेतु वेद में एक सूक्त भी है जिसे पवमानसूक्त कहा जाता है। आगे हम इन सभी प्रकार के मंत्रों का अवलोकन करेंगे :
पवित्री धारण मंत्र
शास्त्रों में कुशा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के लोम (रोम) से बताई गयी है और इस कारण इसका बहुत ही महत्व होता है। कर्मकांड में कुशा के बिना कोई कर्म नहीं होता है। कुशा को पवित्री भी कहा जाता है। पवित्री का एक विशेष प्रकार से गांठ देकर बनायी गयी अंगूठी आकार की कुशा को भी कहा जाता है जिसे अनामिका उंगली में धारण किया जाता है।
अनामिका उंगली में धारण करने हेतु स्वर्ण की पवित्री (अंगूठी) का सर्वाधिक महत्व बताया गया है। ताम्र की पवित्री भी धारण की जाती है। पवित्री धारण का एक मंत्र भी है जिसे पढ़ते हुये पवित्रीधारण किया जाता है अथवा पूर्वधारित हो तो अंगूठे से स्पर्श कर पढ़ा जाता है :
पवित्रीधारण मंत्र : ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥
विष्णु स्मरण मंत्र
मुख्य शुद्धि भगवान विष्णु का स्मरण करना ही बताया गया है। इसके लिये सर्वप्रथम जो स्मरण मंत्र है उसे देख लेते हैं तत्पश्चात उसके अर्थ से विष्णुस्मरण का महत्व समझने का प्रयास करेंगे।
पवित्रीकरण मंत्र – ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥
इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु का ही स्मरण किया जाता है। पुण्डरीकाक्ष भगवान विष्णु का ही नाम है, पुण्डरीकाक्ष अर्थात कमलनयन। वैसे पुण्डरीकाक्ष नाम को एक भक्त जिसका नाम पुण्डरीक था; से भी जोड़कर देखा जाता है। इस मंत्र में भगवान विष्णु के नाम की महिमा का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि जिस पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करने से अपवित्र हो अथवा पवित्र, सभी प्रकार की अवस्था में अथवा किसी भी प्रकार की अवस्था में होने पर बाह्य और आतंरिक शुद्धि की प्राप्ति होती है वही भगवान पुण्डरीकाक्ष (विष्णु) हमें पवित्र करें, भगवान पुण्डरीकाक्ष (विष्णु) हमें पवित्र करें।
मुख्यरूप से इस मंत्र को पवित्रीकरण मंत्र कहा जाता है। इसका विनियोग इस रूप में प्राप्त होता है – पवित्रीकरण विनियोग : ॐ अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋषिः, विष्णुर्देवता, गायत्रीच्छन्दः, हृदि पवित्रकरणे विनियोगः॥
गङ्गा स्मरण
गङ्गा माहात्म्य का अवलोकन करने पर गंगा की भी विशेष महत्ता ज्ञात होती है और जो गंगा के निकटवर्ती हैं उनके लिये तो गंगाजल की कमी नहीं होती किन्तु जिनके लिये गंगाजल अनुपलब्ध हो उनके लिये गंगा-गंगा स्मरण करने का भी उतना ही महत्व बताया गया है। गंगा-गंगा उच्चारण करने से भी पापों का नाश होता है, पवित्रता/शुद्धता की प्राप्ति होती है।
गंगा स्मरण मंत्र : गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोकं स गच्छति॥
जल प्रोक्षण मंत्र
यद्यपि जल प्रोक्षण भी ऊपर के मंत्रों से किया जाता है किन्तु गंगाजल प्रोक्षण हेतु अगला मंत्र अधिक उपर्युक्त लगता है :
गंगा जल प्रोक्षण मंत्र : गाङ्गं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतं। त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्॥
इसके अतिरिक्त जल प्रोक्षण हेतु वेद के मंत्र का भी प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है :
जल प्रोक्षण वेदमंत्र : ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥
पवित्रीकरण के लिये वेद सूक्त
उपरोक्त मंत्रों के पश्चात् पवित्रीकरण से संबंधित वेदसूक्त का विचार आता है कि क्या वेद में कोई सूक्त भी है जो पवित्रीकरण के लिये प्रयुक्त होता है। वेद में पवित्रीकरण के लिये ८ ऋचाओं का सूक्त है जिसे पवमान सूक्त कहा जाता है :
ॐ पुनन्तु मा पितरः सोम्यासः पुनन्तु मा पितामहाः । पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा ।
पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः । पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर्व्यश्नवै ॥१॥
अग्न ऽ आयू ᳪ षि पवस ऽआ सुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥२॥
पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥३॥
पवित्रेण पुनीहि मा शुक्रेण देव दीद्यत् । अग्ने क्रत्वा क्रतूँ२ ऽरनु ॥४॥
यत्ते पवित्रमर्चिष्यग्ने विततमन्तरा । ब्रह्मतेन पुनातु मा ॥५॥
पवमानः सो ऽअद्य नः पवित्रेण विचर्षणिः । यः पोता स पुनातु मा ॥६॥
उभाभ्यान्देव सवितः पवित्रेण सवेन च । माम्पुनीहि विश्वतः ॥७॥
वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद्यस्यामिमा बव्ह्यस्तन्वो वीतपृष्ठाः ।
तया मदन्तः सधमादेषु वय ᳪ स्याम पतयो रयीणाम् ॥८॥
विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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