वेद के सभी प्रमुख सूक्तों को एक जगह संगृहीत किया गया है और उसे अष्टाध्यायी कहा जाता है, रुद्र के निमित्त अत्यधिक मंत्र हैं और सबसे बड़ा सूक्त भी रुद्रसूक्त ही है इसलिये रुद्राष्टाध्यायी कहा जाता है। 8 की संख्या का कर्मकांड में विशेष महत्व है, कमल में 8 दल होते हैं और कमल पुष्प अर्पित करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। उसी प्रकार सभी देवताओं के लिये एक विशेष स्तुति होती है जिसमें 8 मंत्र होते हैं और उसे देवता का अष्टक कहा जाता है जैसे रुद्राष्टक, भवान्यष्टक, कृष्णाष्टक इत्यादि। इसी प्रकार वेद से 8 अध्याय लेकर अष्टक का निर्माण किया गया जिसे रुद्राष्टाध्यायी कहा जाता है।
यद्यपि रुद्राष्टाध्यायी में अन्य दो अतिरिक्त अध्याय जोड़ा गया है तथापि मुख्य 8 अध्याय ही है। चूंकि रुद्राष्टाध्यायी वेदों से लिये गये प्रमुख 8 सूक्तों का संग्रह है इसलिये विशेष महत्वपूर्ण है। यहां प्रथमतया रुद्राष्टाध्यायी का महत्व बताया गया है तत्पश्चात अगले पृष्ठों पर जाकर रुद्राष्टाध्यायी का अध्ययन किया जा सकता है।
रुद्राष्टाध्यायी के पाठक्रम और महत्व – Rudrashtadhyayi
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी का एक आवृत्ति पाठ और अभिषेक करना रुद्राभिषेक या रुद्री कहलाता है। शिव पुराण में शतरुद्री से पूजन अभिषेक आदि का अत्युत्तम व अद्भुत माहात्म्य बताया गया है। इसमें भी मंत्रो का प्रयोग रुद्राष्टाध्यायी से ही किया गया है। कुछ मन्त्र बाहर से लिये गये हैं। शतरुद्री सम्बन्धी वाक्य इस प्रकार मिलते हैं :-
षष्ठषष्ठि नीलसूक्तं च पुनर्षोडशमेव च।
एषते द्वे नमस्ते द्वे नतं विद्द्द्वयमेव च॥
मीढुष्टमेति चत्वारि वय गुंग चाष्टमेव च।
शतरुद्री समाख्याता सर्वपातकनाशिनी॥
यों शतरुद्री का प्रयोग श्रेष्ठ होने पर भी रुद्राभिषेक में रुद्री का नमकचमकात्मक प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है। इसमें रुद्राष्टाध्यायी का पहले सात अध्याय तक पाठ करके अष्टम अध्याय में क्रमशः ४,४, ४, ३, ३, ३, २, १, १, २ मंत्रों पर विराम करते हुए पञ्चम अध्याय अर्थात नीलसूक्त के ११ पाठ होते है। इस प्रकार
- १ नमकचमकात्मक रुद्राभिषेक को एक “रुद्र” कहते हैं।
- ११ रुद्रों का एक लघुरुद्र होता है।
- ११ लघुरुद्रों का एक महारुद्र होता है।
- ११ महारुद्रों का एक अतिरुद्र होता है।
रुद्राष्टाध्यायी के पाठ और उनसे होने वाले रुद्रादि प्रयोंगों के लाभ
- रूद्र प्रयोग
- लघुरुद्र प्रयोग
- महरुद्र प्रयोग
- अतिरुद्र प्रयोग
- १ रुद्र से बालग्रहों की शान्ति होती है।
- ३ रुद्रों से उपद्रव की शान्ति होती है।
- ५ रुद्रों से ग्रह शान्ति होती है।
- ७ रुद्रों से भय का निवारण होता है।
- ९ रुद्रों से शान्ति एवं वाजपेय फल की प्राप्ति होती है।
- ११ रुद्रों से राजा का वशीकरण होता है।
- १ लघुरुद्र से कामना की पूर्ति होती है।
- ३ लघुरुद्रों से शत्रु भय का नाश होता है।
- ५ लघुरुद्रों से शत्रु और स्त्री का वशीकरण होता है।
- ७ लघुरुद्रों से सुख की प्राप्ति होती है।
- ९ लघुरुद्रों से कुल की वृद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- १ महरुद्र से राजभय का निराकरण, शत्रु का उच्चाटन,दीर्घायु, यश-कीर्ति-चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है।
- ३ महरुद्रों से दुष्कर कार्य भी सुख साध्य हो जाता है।
- ५ महरुद्रों से राज्य प्राप्ति के साधन होते हैं।
- ७ महरुद्रों से सप्तलोक साधन होता है।
- ९ महरुद्रों से मोक्ष पद के मार्ग प्राप्त होते हैं।
- १ अतिरुद्र से देवत्व की प्राप्ति होती है।डाकिनी-शाकिनी-अभिचारादि भय का निवारण होता है।
- ३ अतिरुद्रों से संस्कार भूतादि बाधायें दूर होती हैं।
- ५ अतिरुद्रों से ग्रहजन्य फल एवं व्याधि शांत होती है।
- ७ अतिरुद्रों से कर्मज व्याधियां शांत होती हैं।
- ९ अतिरुद्रों से सर्वार्थसिद्धि होती है।
- ११ अतिरुद्रों से असाध्य का भी साधन होता है।
वायुपुराण में लिखा है –

यश्च सागरपर्यन्तां सशैलवनकाननाम्।
सर्वान्नात्मगुणोपेतां सुवृक्षजलशोभिताम्॥
दद्यात् कांचनसंयुक्तां भूमिं चौषधिसंयुताम्।
तस्मादप्यधिकं तस्य सकृद्रुद्रजपाद्भवेत्॥
यश्च रुद्रांजपेन्नित्यं ध्यायमानो महेश्वरम्।
स तेनैव च देहेन रुद्र: संजायते ध्रुवम्॥
अर्थ : जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त, वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धनधान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के रुद्री जप एवं रुद्राभिषेक का है। इसलिये जो भगवान शिव का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है, वह उसी देह से निश्चित ही रुद्ररूप हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।
-: भाविहुँ मेट सकहिं त्रिपुरारी :- इन रुद्राष्टाध्यायी के पाठ, अभिषेक आदि के द्वारा शिवकृपा से हम अपने लिए मनचाही स्थितियां निर्मित कर सकते हैं,इन प्रयोगों में प्रारब्ध को मिटाने की क्षमता है।
रुद्राभिषेक के द्रव्य
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशान्त्यै कुशोदकैः ॥
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन च। मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा ॥
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात्। वन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतवत्सा च याङ्गना ॥
सद्यः पुत्रमवाप्नोति पयसा चाभिषेचनात्।
जलसे रुद्राभिषेक करनेपर वृष्टि होती है, व्याधिकी शान्तिके लिये कुशोदकसे अभिषेक करना चाहिये। पशुप्राप्तिके लिये दही, लक्ष्मीकी प्राप्तिके लिये इक्षुरस (गन्नेका रस), धनप्राप्तिके लिये मधु तथा घृत एवं मोक्षप्राप्तिके लिये तीर्थके जलसे अभिषेक करना चाहिये। पुत्रकी इच्छा करनेवाला दूधद्वारा अभिषेक करनेपर पुत्र प्राप्त करता है। वन्ध्या, काकवन्ध्या (मात्र एक संतान उत्पन्न करनेवाली) अथवा मृतवत्सा स्त्री (जिसकी संतान उत्पन्न होते ही मर जाय या जो मृत संतान उत्पन्न करे) गोदुग्धके द्वारा अभिषेक करनेपर शीघ्र ही पुत्र प्राप्त करती है।
ज्वरप्रकोपशान्त्यर्थं जलधारा शिवप्रिया ॥
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्रकम् । तदा वंशस्य विस्तारो जायते नात्र संशयः ॥
प्रमेहरोगशान्त्यर्थं प्राप्नुयान्मानसेप्सितम् । केवलं दुग्धधारा च तदा कार्या विशेषतः ॥
शर्करामिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्। श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च ॥
सार्षपेणैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह। मधुना यक्ष्मराजोऽपि गच्छेद्वै शिवपूजनात् ॥
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा। जीवनार्थी तु पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै ॥
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेच्छिवं तथा। महालिङ्गाभिषेकेण सुप्रीतः शङ्करो मुदा ॥
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेदविनिर्मितम् ।
जलकी धारा भगवान् शिवको अति प्रिय है। अतः ज्वरके कोपको शान्त करनेके लिये जलधारासे अभिषेक करना चाहिये। एक हजार मन्त्रोंसहित घृतकी धारासे रुद्राभिषेक करनेपर वंशका विस्तार होता है, इसमें संशय नहीं है। प्रमेहरोग के विनाशके लिये विशेषरूपसे केवल दूधकी धारासे अभिषेक करना चाहिये, इससे मनोभिलषित कामनाकी पूर्ति भी होती है। बुद्धिकी जड़ताको दूर करनेके लिये शक्कर मिले दूधसे अभिषेक करना चाहिये, ऐसा करनेपर भगवान् शंकरकी कृपासे उसकी बुद्धि श्रेष्ठ हो जाती है।
सरसोंके तेलसे अभिषेक करनेपर शत्रुका विनाश हो जाता है तथा मधुके द्वारा अभिषेक करनेपर यक्ष्मारोग (तपेदिक) दूर हो जाता है। पापक्षयकी इच्छावालेको मधु (शहद) से, आरोग्यकी इच्छावालेको घृतसे, दीर्घ आयुकी इच्छावालेको गोदुग्धसे, लक्ष्मीकी कामनावालेको ईख (गन्ने) के रससे और पुत्रार्थीको शर्करा (चीनी)- मिश्रित जलसे भगवान् सदाशिवका अभिषेक करना चाहिये। उपर्युक्त द्रव्योंसे महालिङ्गका अभिषेक करनेपर भगवान् शिव अत्यन्त प्रसन्न होकर भक्तोंकी तत्तत् कामनाओंको पूर्ण करते हैं। अतः भक्तोंको यजुर्वेदविहित विधानसे रुद्रोंका अभिषेक करना चाहिये।
भट्टभास्कराचार्यकृत रुद्रनमकके भाष्यके अन्तमें रुद्रमन्त्रोंके अनेक प्रयोग निर्दिष्ट हैं। सब प्रकारकी सिद्धिके लिये वहाँ बताया गया है कि रुद्राध्यायके केवल पाठ अथवा जपसे ही समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाती है- ‘अस्य रुद्राध्यायस्य जपमात्रेणैव सर्वसिद्धिः ।’ सूतसंहिताका कहना है कि रुद्रजापी महापातकरूपी पञ्जरसे मुक्त होकर सम्यक्-ज्ञान प्राप्त करता है और अन्तमें विशुद्ध मुक्ति प्राप्त करता है। रुद्राध्यायके समान जपनेयोग्य, स्वाध्याय करनेयोग्य वेदों और स्मृतियों आदिमें अन्य कोई मन्त्र नहीं है- रुद्रजापी विमुच्येत महापातकपञ्जरात् । सम्यग्ज्ञानं च लभते तेन मुच्येत बन्धनात् ॥ अनेन सदृशं जप्यं नास्ति सत्यं श्रुतौ स्मृतौ ।
भगवान् रुद्रकी प्रसन्नताके लिये निष्कामभावसे रुद्रपाठका अनन्त फल है। वायुपुराणके अनुसार वह जीव उसी देहसे निश्चितरूपसे रुद्रस्वरूप हो जाता है अर्थात् सायुज्यमुक्तिको प्राप्त होता है – मम भावं समुत्सृज्य यस्तु रुद्राञ्जपेत् सदा। स तेनैव च देहेन रुद्रः सञ्जायते ध्रुवम् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।