जानिये शिव षोडशोपचार पूजन विधि मंत्र – shiv shodashopachara pooja mantra

जानिये शिव षोडशोपचार पूजन विधि मंत्र - shiv shodashopachara pooja mantra जानिये शिव षोडशोपचार पूजन विधि मंत्र - shiv shodashopachara pooja mantra

भगवान शिव की पूजा करने की अनेकानेक विधियां हैं इसके साथ ही उपचार भेद से भी अनेक प्रकार की विधियां प्राप्त होती है। उपचार भेद से अनेकानेक प्रकार की पूजा विधियों में षोडशोपचार पूजा विधि का विशेष महत्व होता है। शिवार्चन को कलयुग में विशेष फलदायक कहा गया है, भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है जिसका तात्पर्य होता है शीघ्र तुष्ट (संतुष्ट/प्रसन्न) होने वाले। इस कारण से भी लोग अपनी मनोकामनाओं की शीघ्र पूर्ति हेतु शिव की अधिक पूजा करते हैं। यहां शिव षोडशोपचार पूजन विधि मंत्र सहित (shiv shodashopachara pooja) दिया गया है।

उपचार भेद से षोडशोपचार पूजा विधि में भी मंत्र प्रयोग के अनुसार अनेक विधियां होती है : वैदिक पूजन, पौराणिक पूजन, तांत्रिक पूजन, नाममंत्र से पूजन आदि। नाममंत्र का स्वतंत्र प्रयोग भी होता है और अन्य तीन विधियों में भी नाममंत्र का प्रयोग होता है। वेद मंत्रों द्वारा पूजन करें तो उसे वैदिक पूजन कहते हैं, पौराणिक मंत्रों द्वारा पूजन करने की विधि को पौराणिक पूजन कहते हैं, तांत्रिक मंत्र और विधि से पूजा करने तांत्रिक पूजन कहते हैं।

  • पुनः वैदिक पूजन में भी एक सामान्य विधान पुरुष सूक्त से सभी देवताओं के पूजन का है जिसके अनुसार पुरुषसूक्त के 16 मंत्रों से भी भगवान शिव की षोडशोपचार पूजा की जा सकती है।
  • इसके साथ ही भगवान शिव के लिये वेद में रुद्रसूक्त प्राप्त होता है और भगवान शिव की वैदिक पूजा के लिये रुद्रसूक्त के मंत्रों का विधान है।
गणेशाम्बिका पूजन विधि
गणेशाम्बिका पूजन विधि

यहां हम पौराणिक मंत्रों द्वारा भगवान शिव की षोडशोपचार पूजा विधि का अवलोकन करेंगे। शिवपूजन में सबका अधिकार होता है किन्तु वेद मंत्रों में सबका अधिकार नहीं होता है।

जिनका वेदमंत्रों में अधिकार न हो यथा : स्त्री-शूद्र-अनुपनीत उन्हें पौराणिक मंत्रों अथवा नाम मंत्रों से ही पूजन करना चाहिये।

पुराण-व्रत-पर्वादि भेद से पौराणिक मंत्रों में भी अंतर होता है यहां हम विशेष व्रत-पर्वादि के अतिरिक्त नित्य पूजन में जिन पौराणिक मंत्रों का प्रयोग करते हुये भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये उसे जानेंगे।

षोडशोपचार पूजन को लेकर एक भ्रम भी उत्पन्न होता है कि जब हम दुग्ध, दधि आदि से स्नान कराते हैं, कुंकुमादि चढ़ाते हैं तो उपचारों की संख्या बढ़ जाती है तो षोडशोपचार कैसे होता है। यहां एक अन्य नियम भी है वो यह है कि दुग्ध, दधि आदि से स्नान भी स्नान में ही गण्य होता है, उसी प्रकार कुंकुमादि चन्दन में, फलादि नैवेद्य में।

शिव पूजन मंत्र

सभी प्रकार की पूजा सामग्रियां व्यवस्थित कर लें। पवित्रीकरणादि करने के पश्चात् संकल्प की आवश्यकता होती है। संकल्प हेतु प्रतिदिन के पञ्चाङ्गानुसार तिथि को जानना आवश्यक होता है यदि आप प्रतिदिन का पंचांग देखना चाहें तो यहां क्लिक करके देख सकते हैं : आज का पंचांग और शुभ मुहूर्त

यहां सरल संकल्प मंत्र दिया जा रहा विशेष संकल्प मंत्र हेतु अन्य आलेखों का अवलोकन कर सकते हैं। प्रतिदिन का संकल्प भी यहां क्लिक करके जान सकते हैं ~ आज का संकल्प मंत्र

सरल संकल्प मंत्र : ओं अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. मासे ……… पक्षे ……… तिथौ ……… वासरे ………  गोत्रोत्पन्नः ……… मम आत्मन श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्राप्यर्थं मम सकुटुम्बस्य दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं, श्री शिवप्रीत्यर्थं यथा शक्त्या यथा मिलितोपचार द्रव्यैः पुराणोक्त मन्त्रैः ध्यानावाहनादि षोडशोपचार श्रीशिवपूजनमहं करिष्ये ॥

ध्यान

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारु चन्द्रावतंसम् ।
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम् ॥
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानम् ।
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिल भयहरं पंच वक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

॥ श्री साम्बसदाशिवाय नमः । श्री सदाशिवं ध्यायामि ॥

आवाहन

स्वामिन् सर्व जगन्नाथ यावत् पूजावसानकम् । तावत्त्वं प्रीति भावेन लिंगेस्मिन् सन्निधो भव ॥
आगच्छ देवदेवेश तेजोराशे जगत्पते । क्रियमाणमिमां पूजां गृहाण सुरसत्तम ॥

  • ॐ भूः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥
  • ॐ भुवः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥
  • ॐ स्वः पुरुषं साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥
  • ॐ भूर्भुवः स्वः साम्बसदाशिवं आवाहयामि ॥

आवाहितो भव स्थापितो भव सन्निहितो भव सन्निरुद्धो भव अवकुण्ठिथो भव सुप्रीतो भव सुप्रसन्नो भव सुमुखो भव वरदो भव प्रसीद प्रसीद ॥

आसन

दिव्य सिंहास नासीनं त्रिनेत्रं वृषवाहनम् ।
इन्द्रादि देवनमितं ददाम्यासन मुत्तमम् ॥
॥ इदमासनं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पाद्य

गङ्गादि सर्व तीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम् ।
तोयमेतत् सुख स्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
॥ पादयोः पाद्यं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अर्घ्य

गन्धोदकेन पुष्पेण चन्दनेन सुगन्धिना ।
अर्घ्यं गृहाण देवेश भक्ति मे ह्यचलं कुरु ॥
॥ हस्तयोः अर्घ्यं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

आचमन

कर्पूरोक्षीर सुरभि शीतलं विमलं जलम् ।
गङ्गायास्तु समानीतं गृहाणाचमनीयकम् ॥
॥ मुखे आचमनीयं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

मधुपर्क

नमोऽस्तु सर्वलोकेश उमादेहार्ध धारिणे ।
मधुपर्को मया दत्तो गृहाण जगदीश्वर ॥
॥ इदं मधुपर्कं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

स्नान

गंगा च यमुने चैव नर्मदाश्च सरस्वति ।
तापि पयोष्णि रेवा च ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम् ॥
॥ इदं स्नानीयं जलं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पञ्चामृत स्नान

  • दुग्ध स्नान : कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम् । पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानाय गृह्यताम् ॥ इदं पयःस्नानं …….., शुद्धोदक – पयः स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
  • दधि स्नान : पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् । दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं दधिस्नानं …….., शुद्धोदक – दधि स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
  • घृत स्नान : नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् । घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं घृतस्नानं …….., शुद्धोदक – घृत स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
  • मधु स्नान : पुष्परेणुसमुत्पन्नं तेजः पुष्टिकरं  मधु। सुस्वादु मधुरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं मधुस्नानं …….., शुद्धोदक – मधु स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
  • शर्करा स्नान : इक्षुसारसमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् । मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं शर्करास्नानं …….., शुद्धोदक – शर्करा स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
  • पंचामृत स्नान : पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितं । पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पंचामृतस्नानं …….., शुद्धोदक – पंचामृत स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

गंधोदक स्नान

मलयाचलसम्भूतं चन्दनेन विमिश्रितं । इदं गन्धोदकस्नानं कुंकुमाक्तं नु गृह्यताम् ॥
॥ इदं गंधोदकस्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक – गंधोदक स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अभ्यंग स्नान

अभ्यंगार्थं महीपाल तैलं पुष्पादि सम्भवम् । सुगंध द्रव्य सम्मिश्रं संगृहाण जगत्पते ॥
॥ इदं अभ्यंगस्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

उद्वर्तन स्नान

अंगोद्वर्तनकं देव कस्तूर्यादि विमिश्रितम् । लेपनार्थं गृहाणेदं हरिद्रा कुङ्कुमैर्युतम् ॥
॥ इदं अंगोद्वर्तनकं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
शुद्धोदक – अंगोद्वर्तनकं स्नानानंतर

उष्णोदक स्नान

नाना तीर्थादाहृतं च तोयमुष्णं मयाकृतम् । स्नानार्थं च प्रयच्छामि स्वीकुरुश्व दयानिधे॥
॥ इदं उष्णोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

शुद्धोदक स्नान

मन्दाकिन्याः समानीतं हेमाम्बोरुहवासितम् । स्नानार्थं मया भक्त्या नीरं स्वीकुर्यतां विभो ॥
॥ इदं शुद्धोदक स्नानं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

वस्त्र

वस्त्रं सूक्ष्मं दुकूलं च देवानामपि दुर्लभम् । गृहाणेदं उमाकान्त प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
॥ इमे वस्त्रोपवस्त्रे ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
आचमनीयं ………

यज्ञोपवीत

यज्ञोपवीतं सहजं ब्रह्मणं निर्मितं पुर । आयुष्यं भव वर्चस्वम् उपवीतं गृहाण मे ॥
॥ इमे यज्ञोपवीते ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥
आचमनीयं ………

गन्ध

गन्धं गृहाण देवेश कस्तूरि कुङ्कुमान्वितम् । विलेपनार्थं कर्पूररोचन लोहितं मया ॥
॥ इदं गन्धं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

कुङ्कुम

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनी काम सम्भवम् । कुङ्कुमार्चितं देव प्रसीद शिव शंकर॥
॥ इदं कुङ्कुमं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अक्षत

अक्षतान् धवलान् शुभ्रान् कर्पूरागुरु मिश्रितान् । गृहाण परया भक्त्या मया तुभ्यं समर्पितान् ॥
॥ इदं अक्षतं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

पुष्प

बिल्वापामार्ग धत्तूर करवीरार्क सम्भवैः । बकोत्फलद्रोण मुख्यैः पुष्पैः पूजित शंकर ॥
॥ इदं पुष्पं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

धूप

वनस्पत्युद्भवो दिव्यो गन्धाढ्यो गन्धोत्तमः । आघ्रेयः महिपालो धूपोयं प्रतिगृह्यताम् ॥
॥ एष धूपः ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दीप

दीपं हि परमं शम्भो घृत प्रज्वलितं मया । दत्तं गृहाण देवेश मम ज्ञानप्रद भव ॥
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने । त्राहि मां नरकाद्घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
॥ एष दीपः ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

नैवेद्य

नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्ति मे ह्यचलां कुरुः । ईप्सितं मे वरं देहि इहत्र च परां गतिम् ॥
श्री सदाशिवं नमस्तुभ्यं महानैवेद्यमुत्तमम् । संगृहाण सुरश्रेष्ठ भक्ति मुक्ति प्रदायकम् ॥
॥ एतानि नानाविध नैवेद्यानि ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

फल

इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव । तेन मे सफलावाप्तिर्भवेत् जन्मनि जन्मनि ॥
कूष्माण्डं मातुलिङ्गं च नारिकेलफलानि च । गृहाण पार्वतीकान्त सोमेश प्रतिगृह्यताम् ॥
॥ एतानि ऋतुफलानि ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

करोद्वर्तन

करोद्वर्तन्कं देवमया दत्तं हि भक्तितः । चारु चंद्रप्रभां दिव्यां गृहाण जगदीश्वर ॥
॥ करोद्वर्तनार्थे गन्धं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

अर्घ्य

पूगीफलं सताम्बूलं नागवल्लि दलैर्युतम् । ताम्बूलं गृह्यतां देव एललवङ्ग संयुक्तम् ॥
॥ मुखवासार्थे सपूगीफल ताम्बूलं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

दक्षिणा

हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनंतपुण्य फलद अथः शांतिं प्रयच्छ मे ॥
॥ पूजासाफल्यार्वथे दक्षिणाद्रव्यं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

नीराजन

चक्षुर्दां सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् । अर्थिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
॥ इदं नीराजनं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च । तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणे पदे पदे ॥
प्रदक्षिण त्रियं देव प्रयत्नेन मया कृतम् । तेन पापाणि सर्वाणि विनाशाय नमोऽस्तुते ॥

नमस्कार

नमस्ते सर्वलोकेश नमस्ते जगदीश्वर । नमस्तेऽस्तु परब्रह्म नमस्ते परमेश्वर ॥
हेतवे जगतामेव संसारार्णव सेतवे । प्रभवे सर्वविद्यानां शम्भवे गुरुवे नमः ॥
नमो नमो शम्भो नमो नमो जगत्पते । नमो नमो जगत्साक्षिण् नमो नमो निरञ्जन ॥
नमोऽस्तुते शूलपाणे नमोऽस्तु वृषभध्वज । जीमूतवाहन करे सर्व त्र्यम्बक शंकर ॥
महेश्वर हरेशान सुवनाक्ष वृषाकपे । दक्षयज्ञक्षयकर काल रुद्र नमोऽस्तुते ॥
त्वमादिरस्यजगत् त्वं मध्यं परमेश्वर । भवानंतश्च भगवन् सर्वगस्त्वयं नमोऽस्तुते ॥

पुष्पाञ्जलि

विद्या बुद्धि धनैश्वर्य पुत्र पौत्रादि सम्पदः । पुष्पांजलि प्रदानेन देहि मे ईप्सितं वरम् ॥
॥ एष मंत्र पुष्पाञ्जलिं ओं साम्ब सदाशिवाय नमः ॥

क्षमापण

यत्किंचित् कुर्महे देव सद सुकृत्दुष्कृतम् । तन्मे शिवपादस्य भुंक्षवक्षपय शंकर ॥
करचरणकृतं वा कायजं कर्मजं वा । श्रवण नयनजं वा मानसं वापराधम् ॥
विहितमवहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व । जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

प्रार्थना

नमोव्यक्ताय सूक्ष्माय नमस्ते त्रिपुरान्तक ।
पूजां गृहाण देवेश यथाशक्त्युपपादिताम् ॥

किं न जानासि देवेश त्वयी भक्तिं प्रयच्छ मे ।
स्वपादाग्रतले देव दास्यं देहि जगत्पते ॥

बद्धोहं विविधैः पाशैः संसारुभयबंधनैः ।
पतितं मोहजालेमं त्वं समुद्धर शंकर ॥

प्रसन्नो भव मे श्रीमन् सद्गतिः प्रतिपाद्यताम् ।
त्वदालोकन मात्रेण पवित्रोऽस्मिन्न संशयः ॥

त्वदन्य शरण्यः प्रपन्न्स्य नेति प्रसीद स्मरन्नेव हन्न्यास्तु दैन्यम् ॥
नचेत्ते भवेद्भक्ति वात्सल्य हानि स्ततो मे दयालो दयां सन्निदेहि ॥

सकारणमशेषस्य जगतः सर्वदा शिवः ।
गो ब्राह्मण नृपाणां च शिवं भवतु मे सदा ॥

भगवान शिव की आरती – जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥
हर हर हर महादेव ॥१॥

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने । गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने गहने ॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता । रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥
हर हर हर महादेव ॥२॥

तस्मिल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता । तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥
क्रीडा रचयति भूषारञ्जित निजमीशम् । इन्द्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥
हर हर हर महादेव ॥३॥

बिबुधबधू बहु नृत्यत हृदये मुदसहिता । किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदङ् वादयते । क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
हर हर हर महादेव ॥४॥

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्चलिता । चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक ताम् ॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते । अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥
हर हर हर महादेव ॥५॥

कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम् । त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम् ॥
सुन्दरजटाकलापं पावकयुतभालम् । डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥
हर हर हर महादेव ॥६॥

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम् । वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम् ॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम् । इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम् ॥
हर हर हर महादेव ॥७॥

शङ्खनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते । नीराजयते ब्रह्मा वेदकऋचां पठते ॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा । अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥
हर हर हर महादेव ॥८॥

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा । रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते । शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श‍ृणुते ॥
हर हर हर महादेव ॥९॥

भगवान शिव की आरती – शीश गंग अर्धंग पार्वती

शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी ।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी ॥

शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह, बैठे हैं शिव अविनाशी ।
करत गान गन्धर्व सप्त स्वर, राग रागिनी मधुरा-सी ॥

यक्ष-रक्ष भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वन के वासी ।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी ॥

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु, लाग रहे हैं लक्षासी ।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत, करत दुग्धकी वर्षा-सी ॥

सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी ।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित, सेवत सदा प्रकृति-दासी ॥

ऋषि-मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी ।
ब्रह्मा-विष्णु निहारत निसिदिन, कछु शिव हमकूँ फरमासी ॥

ऋद्धि सिद्धिके दाता शंकर, नित सत् चित् आनँदराशी ।
जिनके सुमिरत ही कट जाती, कठिन काल-यमकी फाँसी ॥

त्रिशूलधरजीका नाम निरंतर, प्रेम सहित जो नर गासी ।
दूर होय विपदा उस नरकी, जन्म-जन्म शिवपद पासी ॥

कैलासी काशीके वासी, अविनाशी मेरी सुध लीजो ।
सेवक जान सदा चरननको, अपनो जान कृपा कीजो ॥

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय, अवगुण मेरे सब ढकियो ।
सब अपराध क्षमाकर शंकर, किंकरको विनती सुनियो ॥

भगवान शिव की आरती – सत्य, सनातन, सुन्दर शिव सबके स्वामी

सत्य, सनातन, सुन्दर शिव सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी ॥
हर हर हर महादेव ॥१॥

आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी ।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी ॥
हर हर हर महादेव ॥२॥

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी ।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥
हर हर हर महादेव ॥३॥

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी ।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी ॥
हर हर हर महादेव ॥४॥

मणिमय-भवन-निवासी, अति भोगी, रागी ।
सदा शमशान विहारी, योगी वैरागी ॥
हर हर हर महादेव ॥५॥

छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल, व्याली ।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली ॥
हर हर हर महादेव ॥६॥

प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीतजटाधारी ।
विवसन विकट रूपधर, रूद्र प्रलयकारी ॥
हर हर हर महादेव ॥७॥

शुश्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी ।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मन-हारी ॥
हर हर हर महादेव ॥८॥

निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय, नित्य-प्रभो ।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो ॥
हर हर हर महादेव ॥९॥

सत्, चित्, आनँद, रसमय, करुणामय धाता ।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥
हर हर हर महादेव ॥१०॥

हम अति दीन, दयामय! चरण-शरण दीजै ।
सब बिधि निर्मल मति कर, अपनो कर लीजै ॥
हर हर हर महादेव ॥११॥

विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in

मंत्र प्रयोग (कर्मकांड कैसे सीखें) में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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