दिग्बंधन मंत्र अर्थात दिग्रक्षण मंत्र – digbandhan mantra

रक्षा विधान - दिग्बंधन मंत्र

प्रत्येक कर्मकांड (पूजा-पाठ-जप-हवन आदि) में शुद्धिकरणादि के पश्चात् दिग्बंधन अर्थात दिग्रक्षण का विधान भी मिलता है। पूजा क्रम अनुक्रमणिका के अनुसार विशेष अनुष्ठानों में दिग्बंधन का क्रम आचार्यादि वरण के पश्चात् होता है किन्तु विशेष अनुष्ठानों के अतिरिक्त शुद्धिकरण के पश्चात् ही करने का व्यवहार है। यहां दिग्रक्षण के कई मंत्र जो समयानुसार अथवा कर्म के अनुसार एक मंत्र से लेकर बहुमंत्रात्मक होती है दी गई है अर्थात दिग्बंधन मंत्र – digbandhan mantra दिया गया है।

बांये हाथ में पिली सरसों, तिल, दूर्वा आदि लेकर दांये हाथ से ढंककर दिग्बंधन मंत्र का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात दशों दिशाओं में छिड़काव करना चाहिए। कर्म भंग न हो और असुरादिकों को भाग न मिले इसलिए रक्षाविधान एक विशेष प्रक्रिया है और सजगतापूर्वक इस क्रिया को सम्पादित करने की आवश्यकता होती है। 

दिग्बंधन मंत्र – 1

दिग्बंधन के लिये जब एक मंत्र का प्रयोग करना हो तब इसी मंत्र का उपयोग किया जाता है :

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ॥

दिग्बंधन मंत्र – 2

दिग्बंधन हेतु जब दो मंत्रों का प्रयोग करना हो तब इन दोनों मंत्रों का प्रयोग किया जाता है :

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ॥ 
ॐ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः प्रेत गुह्यकाः । ये चात्र निवसन्त्यन्ये देवता भुवि संस्थिताः ॥

दिग्बंधन मंत्र – 3

दिग्बंधन हेतु जब दो तीन का प्रयोग करना हो तब इन तीनों मंत्रों का प्रयोग किया जाता है :

ॐ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः प्रेत गुह्यकाः । ये चात्र निवसन्त्यन्ये देवता भुवि संस्थिताः ॥
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ॥
ते सर्वे विलयं यान्तु ये मां हिंसन्ति हिंसकाः । मृत्युरोगभयक्रोधाः पतन्तु रिपुमस्तके ॥

दिग्बंधन मंत्र – 4

दिग्बंधन हेतु जब दो पांच का प्रयोग करना हो तब इन पांचों मंत्रों का प्रयोग किया जाता है :

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया । 
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतोदिशं । सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥ 
यदत्र संस्थितं भूतं स्थान माश्रित्य सर्वत: । स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गच्छतु ॥ 
भूत प्रेत पिशाचाधा अपक्रामन्तु राक्षसा: । स्थानादस्माद् व्रजन्त्वन्यत्स्वीकरोमि भुवंत्विमाम् ॥ 
भूतानि राक्षसा वापि येऽत्र तिष्ठन्ति केचन । ते सर्वेऽप्यप गच्छन्तु पूजा कर्म कोम्यहम् ॥

वैदिक दिग्बंधन मंत्र – 5

इसके पश्चात् दिग्बंधन के लिये विशेष प्रयोग में वैदिक मंत्रों का क्रम आता है। आगे वैदिक मंत्र दिये गये हैं, पुराणोक्त मंत्रों के साथ ही आगे दिये गये वैदिक मंत्रों को पढ़कर दिग्बंधन किया जाता है :

ॐ रक्षोहणं वलगहनं वैष्णवीमिदमहन्तं वलगमुत्किरामि । यम्मेनिष्टयो यममात्यो निचखानेदं महन्तं वलगमुत्किरामि। यम्मे समानो यम समानो निचखानेदं महन्तं वलगमुत्किरामि। यस्मे सबंधुर्यम सबंधुर्निचखानेद महन्तं वलगमुत्किरामि। यम्मेसजातो यमसजातो निचखानोम्कृत्याङ्किरामि ॥१॥ रक्षोहणो वो वलगहनः प्रोक्षामिवैष्णवान, रक्षोहणोवो वलगहनो व नयामिवैष्णवान्, रक्षोहणोवो वलगहनो वस्तृणामि वैष्णवान्, रक्षोहणौवां वलगहना उपदधामि वैष्णवी, रक्षोहणौ वां वलगहनौ पर्यूहामि वैष्णवी वैष्णव मसि वैष्णवास्त्थ ॥२॥ रक्षेसां भागोसि निरस्त ᳪ रक्ष इदमह ᳪ रक्षो भितिष्ठा मीदमह ᳪ रक्षो व बाध इदमह ᳪ रक्षो धमन्तमो नयामि घृतेनद् द्यावा पृथ्वी प्रोर्णु वाथां वायो वेस्तोकानामग्नि राज्यस्य वेतु स्वाहा । स्वाहाकृते ऊर्ध्वनभ समारूतङ्गच्छतम ॥३॥ रक्षोहा विश्वचर्षणि रभि योनि मयोहते। द्रोणे सधस्त्थ मासदत् ॥४॥

दिक्पूजन सहित दिग्बंधन मंत्र – 1

दिग्बंधन हेतु जब दिक्पूजन भी करना होता है तब दिग्बंधन मंत्र को पढ़कर पीली सरसों आदि को देशों दिशाओं में छिड़का भी जाता है जिसे दिक्पूजन कहते हैं। इसके लिये ऊपर दिये गये दिग्बंधन मंत्र के विभिन्न प्रकारों में से किसी एक को करके आगे दिये गये दिशाओं के नामानुसार दशों दिशाओं में क्रमशः पीली सरसों, दूर्वा आदि छिड़के :

  1. ॥ पूर्व – ॐ प्राच्यै नमः ॥
  2. अग्निकोण – ॐ आग्नेयै नमः ॥
  3. दक्षिण – ॐ दक्षिणायै नमः ॥
  4. नैर्ऋत्य कोण – ॐ नैर्ऋत्यै नमः ॥
  5. पश्चिम – ॐ प्रतीच्यै नमः ॥
  6. वायव्य कोण – ॐ वायव्यै नमः ॥
  7. उत्तर – ॐ उदीच्यै नमः ॥
  8. ईशान कोण – ॐ ऐशान्यै नमः ॥
  9. ऊपर – ॐ उर्ध्वायै नमः ॥
  10. नीचे – ॐ भूम्यै नमः ॥
रक्षा विधान - दिग्बंधन मंत्र
रक्षा विधान – दिग्बंधन मंत्र

पौराणिक अभिमन्त्रण सहित दिग्बंधन मंत्र – 2

आगे दिग्बंधन के विशेष प्रयोग में अन्य प्रकार जो आता है वो है आगे दिये गये पौराणिक मंत्रों द्वारा पीली सरसों आदि को अभिमंत्रित करके अगले पौराणिक मंत्रों जिसमें भगवान विष्णु के नामों का उच्चारण करके रक्षा की भावना की जाती है; द्वारा दशों दिशाओं में छिड़कना अर्थात बंधन करना, उपरोक्त मंत्रों की पुनरावृत्ति किये बिना आगे भगवान विष्णु के नामों से रक्षाविधान के पौराणिक मंत्र दिये गये हैं, इसमें अभिमंत्रण हेतु उपरोक्त पौराणिक और वैदिक मंत्रों का प्रयोग करना चाहे तो उसका भी प्रयोग किया जा सकता है :

अभिमन्त्रण

ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य नमस्कृत्य पितामहम् । विष्णुं रुद्रं श्रियं देवीं वन्दे भक्त्या सरस्वतीम् ॥
स्थानाधिपं नमस्कृत्य ग्रहनाथं निशाकरम् । धरणीगर्भ सम्भूतं शशिपुत्रं बृहस्पतिम् ॥
दैत्याचार्य नमस्कृत्य सूर्यपुत्रं महाग्रहम् । राहुं केतुं नमस्कृत्य यज्ञारम्भे विशेषत : ॥
शक्राधा देवता : सर्वा : मुनीश्चैव तपोधनान् । गर्ग मुनि नमस्कृत्य नारदं मुनिसत्तमम् ॥

दिग्रक्षण

पूर्वे रक्षतु वाराह आग्नेय्यां गरुडध्वजः । दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे पातु गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः । उत्तरे श्रीपति रक्षेदैशान्यां तु महेश्वरः ॥
ऊर्ध्वं गोवर्धनो रक्षेद् ह्यघोऽनन्तस्तस्थैव च । एवं दशदिशोरक्षेद् वासुदेवो जनार्दनः ॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं रक्षत्वीशो महाद्रिधृक् । यदत्र संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वदा ॥
स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्वं यत्रस्थं तत्र गच्छतु । अपक्रामन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः ॥
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया । अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशः ॥

निष्कर्ष : इस प्रकार से हमने ऊपर देखा कि दिग्बंधन हेतु एक मंत्र ही नहीं अनेकों मंत्र हैं और आवश्यकता व समयानुसार उसका प्रयोग किया जाता है। उपरोक्त अनेकों प्रकार के मंत्रों की जानकारी कर्मकांडी के लिये आवश्यक है इसके अनुसार जब एक मन्त्र की आवश्यकता हो तो एक मंत्र से ही दिग्बंधन करे और जब अधिक मंत्रों की आवश्यकता हो तो अधिक मंत्रों का भी प्रयोग किया जा सके।

विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in

मंत्र प्रयोग (कर्मकांड कैसे सीखें) में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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