पितृ कर्म प्रकरण – Pitri Karm

कर्मकांड सीखना अर्थात कर्मकांड कैसे सीखें

पितृकर्म का तात्पर्य ही तर्पण-श्राद्ध ही होता है किन्तु पितृकर्म और प्रेतकर्म को पृथक-पृथक समझना आवश्यक होता है। बहुधा प्रेत कर्म को ही पितृकर्म समझा जाता है जो कि एक भ्रम है। प्रेत कर्म में मृतक की जो क्रियायें की जाती है वो आती है; यथा : दशगात्र, महैकोद्दिष्ट, मासिक श्राद्ध, सपिंडीकरण आदि। अर्थात किसी भी मृतक के लिये 12 – 13 दिन तक जो श्राद्ध आदि किये जाते हैं वो पितृकर्म नहीं कहलाता है वह प्रेतकर्म संज्ञक होता है क्योंकि सभी प्रेत के प्रेतत्वनिवृत्ति हेतु ही किये जाते हैं। प्रेतत्व निवृत्ति के उपरांत (प्रथम क्षयाह/वार्षिक श्राद्ध से) जो भी कर्म किये जाते हैं वो पितरों के निमित्त होते हैं व उन्हें ही पितृकर्म कहा जा सकता है। 

पितृ कर्म प्रकरण

 प्रेतकर्म

पितृ कर्म

इस प्रकार संपूर्ण प्रेतकर्म संपन्न होने के उपरांत प्रथम वार्षिक श्राद्ध से जो कर्म आरंभ होता है वह पितृकर्म होता है। यही कारण है कि प्रेतकर्म मात्र को पितृकर्म समझने के कारण लोग पितृकर्म का त्याग करते चले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है पितृकर्म कर लिया अब आजीवन करना न करना वैकल्पिक है व अधिकतम गयाश्राद्ध जाकर कर लेते हैं व पितरों को जो भार समझा जाता है उससे निवृत्त हो जाते हैं, पितरों से जो प्राप्त हुआ है उसे भार नहीं समझते उसका ऋण भी नहीं चुकाते। 

पितृकर्म का त्याग तब भी नहीं किया जा सकता है जब पितृ-संपत्ति का परित्याग कर दिया जाय। पितृसंपत्ति का त्याग करने के उपरांत भी शरीर में पितरों के पिण्ड (कलायें) तो रहती ही है जिसका परित्याग संभव नहीं और सन्यास ग्रहण किये बिना पितृकर्म से निवृत्त नहीं होती अर्थात गृहस्थों को सदैव पितृकर्म करते रहना चाहिये। वार्षिक श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, महालय श्राद्ध, अष्टका-अन्वष्टका, तीर्थ श्राद्ध आदि पितृकर्म में आते हैं। सामान्य जन तो पितृकर्म का यहां तक परित्याग कर देता है कि वार्षिक (क्षयाह) श्राद्ध तक का भी परित्याग कर देता है। 

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

2 thoughts on “पितृ कर्म प्रकरण – Pitri Karm

  1. मृतक का पिता एवं मृतका का पति जीवित होने पर मृतक एवं मृतका के पिण्ड मेलन हेतु पिता एवं पति के वजाय अब किस किस पितृ पिण्ड से मेलन मान्य होगा ?

    1. मृतक (जीवितपितृक) – पितामहादित्रय (पितामह, प्रपितामह, वृद्धप्रपितामह
      मृतका (जीवितभर्ता) – पितामह्यादित्रय (पितामही, प्रपितामही, वृद्धप्रपितामही)

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