पञ्चगव्य विधान : निर्माण, प्राशन, प्रोक्षण
किसी भी पूजा-अनुष्ठान-व्रत-यज्ञादि में पञ्चगव्य विधान भी आवश्यक है। पञ्चगव्य विधान में ४ कर्म है
१ – निर्माण , २ – पान (प्राशन), ३ – स्नान, ४ – प्रोक्षण
पंचगव्य क्या है ?
गाय से हमें तीन वस्तु प्राप्त होती है : दूध, गोबर और गोमूत्र। पुनः दूध से दो वस्तु की प्राप्ति होती है दधि और घृत। ये पांचों वस्तुयें परम पवित्र होती हैं। इन पांचों वस्तुओं का निश्चित मात्रा में सविधि मंत्र के साथ जो मिश्रण निर्माण किया जाता है उसे पंचगव्य कहते हैं। किसी भी कर्मकांड में पाप नाश और शुद्धि हेतु पंचगव्य का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।
पंचगव्य बनाने की विधि
पञ्चगव्य वस्तु – गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधिः सर्पि कुशोदकं । निर्दिष्टं पंचगव्यातु पवित्रं मुनि पुंगवैः ॥
गोमूत्र-गोबर-घृत-दूध-दही-कुशोदक (कुशा का पानी या कुशा से अभी मन्त्रित किया हुआ जल) यह पंचगव्य वशिष्ठमुनि के मतानुसार श्रेष्ठ माना गया है।
मात्रा – कपिलायाः पलं मूत्रमर्द्धंगुष्ठश्च गोमयं । क्षीरं सप्तपलं दद्यात दध्नश्चैव पलद्वयं।
घृतमेक पलं दद्यात पलमेकं कुशोदकं ॥
पंचगव्य में कपिला गाय का मूत्र एकपल-अंगूठे के आधे हिस्से बराबर गोबर गोबर सातपल दूध, दो पल दही, एक पल घी, कुशा का जल एकपल, इनका मिश्रण करे। मिश्रण करते समय गायत्री मंत्र पढ़े। वैसे ही द्रव्य मिलाते समय भिन्न भिन्न मंत्र पढ़े। या सभी द्रव्यों को मिश्रित करते समय गायत्री मंत्र पढ़े।
मात्रा के विषय में एक अन्य पक्ष भी है जो अधिक सरल है – गोबर का दुगुना गोमूत्र , गोमूत्र का दुगुना जो घृत , गोघृत का दुगुना गोदधि , गोदधि का दुगुना जो दुग्ध।
पंचगव्य श्लोक
पयः काञ्चनवर्णाया नीलायाश्च तथा दधि ॥ घृतं च कृष्ण वर्णायाः सर्व कापिलमेव च ।
अलाभे सर्ववर्णानां पञ्चगव्येष्वयं विधिः । गोमूत्रं माषकास्त्वष्टौ गोमयस्य तु षोडश।
क्षीरस्य द्वादश प्रोक्ता दश्नस्तु दृश कीर्तिताः ॥ गोमूत्रवद्वतस्येष्टस्तदर्ध तु कुशोदकल ।
गायत्र्यादाय गोमूत्रं गन्धद्वारेति गोम यम् । आप्यायखेति च क्षीरं दधिक्राव्णेति वै दधि ॥
तेजोऽसेिशुक्रमित्याज्यं देव स्यत्वा कुशोदकम् ।
कांस्यपात्र में पञ्चगव्य का समन्त्र निर्माण करना चाहिए। प्रत्येक द्रव्य को निर्दिष्ट मन्त्रों के का पाठ करते हुए निर्धारित मात्रा में सम्मिश्रण करना चाहिए ।
पंचगव्य मंत्र (निर्माण), पंचगव्य बनाने का मंत्र – Panchgavya mantra
गोमूत्र- ॐ गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्पङ्क्त्यासह । बृहत्त्युष्णिहा ककुप्सूचीभिः शम्यन्तुत्त्वा ॥ या गायत्री मंत्र से दें ।
गोमय– ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षा नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
दूध- ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोमवृष्ण्यम् । भवा व्वाजस्य सङ्गथे ॥
दधि- ॐ दधिक्राब्णोऽअकारिषञ्जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि नो मुखाकरत्प्रण आयूꣳषितारिषत् ॥
धृत- ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि ॥
कुशोदक- ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनो र्बाहुभ्यां पूष्णोहस्ताभ्याम् ॥
ॐ आलोडयामि, प्रणव से यज्ञीयकाष्ठ के द्वारा प्रदक्षिणक्रम से मिलाये।
पञ्चगव्य प्राशनम्
पंचगव्य पीने का मंत्र : ॐ यत्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके । प्राशनात्पञ्चगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम् ॥ ह्रीं इति प्राशयेत् ।
इस मंत्र से पञ्चगव्य प्राशन अर्थात पान करना चाहिए।
पञ्चगव्य स्नानम्
ॐ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधिसर्पिः कुशोदकम् । सर्वपापविशुद्ध्यर्थं पञ्चगव्यं पुनातु माम् ॥ इति ॥
इस मंत्र से पञ्चगव्य स्नान अर्थात शरीर पर थोड़ा छिड़कना चाहिए।
पञ्चगव्य प्रोक्षणं
ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन । महे रणाय चक्षसे ॥१॥
ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥२॥
ॐ तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥३॥
इन मन्त्रों से मंडप – वेदी – भूमि आदि का पञ्चगव्यप्रोक्षण करें।