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कर्मकांड विधि

कर्मकांड सीखना अर्थात कर्मकांड कैसे सीखें

पितृ कर्म प्रकरण – Pitri Karm

पितृ कर्म प्रकरण – Pitri Karm : पितृकर्मों से पूर्व प्रेतकर्म होता है और प्रेतत्व की निवृत्ति न होने पर पितृपद प्राप्ति ही संभव नहीं है, अर्थात किसी की मृत्यु होने पर जो श्राद्ध किया जाता है वह प्रेत के निमित्त ही किया जाता है और प्रेतकर्म ही होता है। षोडशश्राद्ध होने के एक वर्ष पश्चात् अर्थात वार्षिक श्राद्ध से पितृकर्म का आरंभ होता है। प्रथमतया प्रेतकर्म को ही देखते हैं :

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संक्षिप्त तर्पण विधि

तर्पण विधिः (मिथिलादेशीय संक्षिप्त तर्पण विधि) – Tarpan vidhi

तर्पण विधिः (मिथिलादेशीय संक्षिप्त तर्पण विधि) – Tarpan vidhi – तर्पण करने की एक विस्तृत विधि भी होती है जिसमें वेदमंत्रों का भी प्रयोग होता है और सभी देवों आदि को पृथक-पृथक जलांजलि दिया जाता है। किन्तु मिथिला में जो विशेष रूप से प्रचलित तर्पण विधि है उसे संक्षिप्त तर्पण विधि भी कहा जाता है। इसमें वेद मंत्रों का प्रयोग नहीं किया जाता है। नीचे मिथिलादेशीय संक्षिप्त तर्पण विधि दी गयी है जो विशेष उपयोगी है। 

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पूजन सामग्री

पूजन सामग्री – puja smagri

पूजन सामग्री – puja smagri : यहां पर कर्मकांड के विभिन्न पूजा, पाठ, जप, श्राद्ध आदि में लगने वाली सामग्रियों की सूची संबंधी अनुसरण पथ दिये गये हैं जिस पर अनुगमन करके उस कर्म की सामग्रियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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शिववास विचार

शिववास विचार – Shivwas Vichar

शिववास विचार – Shivwas Vichar  भगवान शिव की पूजा के अनेक प्रकार और विधियां हैं। शिवपूजा में लिंग पूजा ही प्रमुख है। लिंग पूजा में भी अनेकों प्रकार होते हैं जैसे नर्मदेश्वर शिव लिंग, पार्थिव लिंग, पारद लिंग आदि। शिवलिंग की पूजा करने में अभिषेक का भी विशेष महत्व होता है जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता…

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अग्निवास विचार - हवन करने के लिए अग्निवास कैसे निकालते हैं

वह्निवास अर्थात अग्निवास विचार – हवन करने के लिए अग्निवास कैसे निकालते हैं ?

अग्निवास विचार – हवन करने के लिए अग्निवास कैसे निकालते हैं : सैका तिथिर्वारयुता कृताप्ता शेषे गुणेऽभ्रे भुवि वह्निवासः ।
सौख्याय होमे शशियुग्मशेषे प्राणार्थनाशो दिवि भूतले च ॥

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पंचगव्य मंत्र : निर्माण, प्राशन, प्रोक्षण

पंचगव्य मंत्र : निर्माण, प्राशन, प्रोक्षण

पंचगव्य मंत्र : निर्माण, प्राशन, प्रोक्षण – किसी भी पूजा-अनुष्ठान-व्रत-यज्ञादि में पञ्चगव्य विधान भी आवश्यक है। पञ्चगव्य विधान में ४  कर्म है :

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सोलह संस्कार क्या है ? संस्कार का महत्व

सोलह संस्कार क्या है ? संस्कार का महत्व

गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन वा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार से तात्पर्य है कि शिशु के पूर्व जन्मों…

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Jitiya 2024 : जितिया की सम्पूर्ण जानकारी एवं महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर

Jitiya 2024 : जितिया की सम्पूर्ण जानकारी एवं महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर  जितिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत सर्वाधिक कठिन व्रतों में गिना जाता है। संतान और सौभाग्य की कामना से सभी स्त्रियां यह व्रत करती हैं। जितिया व्रत के दिन यदि सूर्योदय से पहले सप्तमी रहे तो रात्र्यंत में विशिष्ट भोजन भी किया जाता है और…

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