शास्त्रों में सरल पूजा विधि के अतिरिक्त अनेकों उपचारों से पूजा विधान का वर्णन मिलता है। सामान्यतः सरल पूजा विधि का तात्पर्य पंचोपचार पूजा है और उससे आगे दशोपचार-षोडशोपचार पूजा विधि का वर्णन है जिसमें से षोडशोपचार पूजा विधि विशेष प्रचलित है। विशेष पूजा क्रम में और भी विधान है जिसमें से एक है त्रिंशोपचार पूजा विधि। यहां भगवान विष्णु की त्रिंशोपचार पूजा विधि और मंत्र (विष्णु पूजा विधि – vishnu puja vidhi) दिया गया है यदि आप भगवान विष्णु की विशेष अर्चना करते हैं तो यह विधि आपके लिये विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
आगमोक्त त्रिंशोपचार विष्णु पूजा विधि और मंत्र – vishnu puja vidhi
त्रिंशोपचार विष्णु पूजा का तात्पर्य है विशेष पूजा और जब विशेष पूजा-अनुष्ठान की जाती है तो उसमें और भी विधान आवश्यक होते हैं; यथा स्वस्तिवाचन, कलशस्थापन आदि।
यहां हम पौराणिक मंत्रों द्वारा भगवान विष्णु की त्रिंशोपचार पूजा विधि का अवलोकन करेंगे। विष्णुपूजन में सबका अधिकार होता है किन्तु वेद मंत्रों में सबका अधिकार नहीं होता है।
जिनका वेदमंत्रों में अधिकार न हो यथा : स्त्री-शूद्र-अनुपनीत उन्हें पौराणिक मंत्रों अथवा नाम मंत्रों से ही पूजा करनी चाहिये ।
- भगवान विष्णु की पूजा में अक्षत का प्रयोग नहीं करना चाहिये। अक्षत के स्थान पर तिल-जौ अर्पित करें।
- भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्र की विशेष महत्ता है एवं धात्री पत्र-फल का भी विशेष महत्व है।
- इसके साथ ही भगवान विष्णु को शमी पत्र, दूर्वा आदि भी अर्पित करना चाहिये इसका भी विशेष महत्व होता है।
विष्णु पूजा विधि और मंत्र
सभी प्रकार की पूजा सामग्रियां व्यवस्थित कर लें। पवित्रीकरणादि करने के पश्चात् संकल्प की आवश्यकता होती है। संकल्प हेतु प्रतिदिन के पञ्चाङ्गानुसार तिथि को जानना आवश्यक होता है यदि आप प्रतिदिन का पंचांग देखना चाहें तो यहां क्लिक करके देख सकते हैं : आज का पंचांग और शुभ मुहूर्त
यहां सरल संकल्प मंत्र दिया जा रहा विशेष संकल्प मंत्र हेतु अन्य आलेखों का अवलोकन कर सकते हैं। प्रतिदिन का संकल्प भी यहां क्लिक करके जान सकते हैं ~ आज का संकल्प मंत्र
सरल संकल्प मंत्र : ओं अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. मासे ……… पक्षे ……… तिथौ ……… वासरे ……… गोत्रोत्पन्नः ……… मम आत्मन श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्राप्यर्थं मम सकुटुम्बस्य दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं, श्री शिवप्रीत्यर्थं यथा शक्त्या यथा मिलितोपचार द्रव्यैः पुराणोक्त मन्त्रैः ध्यानावाहनादि त्रिंशोपचा श्रीविष्णुपूजनमहं करिष्ये ॥
भगवान विष्णु की पूजा के लिये दो मंत्र विशेष हैं द्वादशाक्षर मंत्र और अष्टाक्षर मंत्र। इन दोनों में से किसी एक मंत्र द्वारा भी पूजा की जा सकती है। वैदिक-पौराणिक आदि मंत्रों से पूजा करते समय में दोनों में से किसी एक मंत्र को संयुक्त किया जा सकता है। जो द्वादशाक्षर अथवा अष्टाक्षर मंत्र से पूजा करना चाहें वो “ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः” के स्थान पर उपरोक्त मंत्रों का प्रयोग करें।
ध्यान
सुरकदम्बकैः प्रश्रयेण वै नियतसेवितं गोकुलोत्सवम् ।
किरीटकुण्डलं पीतजाम्बरं खलनिषूदनं चिन्तये विभुम्॥
॥ ध्यान पुष्पं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
आवाहन
खगपवाहनं क्षीरजाप्रियं भवभयापहं भुक्तिमुक्तिदम् ।
सुरपतिं जगन्नाथमीश्वरं कमलभासमा वाहयाम्यहम् ॥
॥ ओं भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

आसन
विधिमुखामरैर्नम्रमूर्तिभिः प्रणतसंश्रितं दुर्धरादिमत् ।
वरमणिप्रभा भासुरन्नवं जनपगृह्यतां स्वर्णमासनम् ॥
॥ इदमासनं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
पाद्य
कुसुमवासितं गन्धविस्तृतं मुनिनिषेवितं सादरेण वै ।
ध्रुवपराशराभीष्टद प्रभो जनपगृह्यतां पाद्यमुत्तमम् ॥
॥ पादयोः पाद्यं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
अर्घ्य
कनकसम्पुटे स्थापितं वरं जलसुवर्णमुक्ताफलैर्युतम् ।
करसरोरुहाभ्यां घृतम्मया जनपगृह्यतामर्घ्यमुत्तमम् ॥
॥ हस्तयोः अर्घ्यं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
आचमन
तव रमायुजः सेवनाज्जना नृपतिसन्निभाः सम्भवन्ति हि ।
सुरतरङ्गिणी शुद्धवारिभिर्जनपगृह्यतामाचमं शुभम् ॥
॥ मुखे आचमनीयं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
स्नान
हरिपदाम्बुजा नर्मदामही सरयूचन्द्रभागाभ्य आहृतम् ।
जलजवासितं स्नानहेतवे जनपगृह्यतामर्पितञ्जलम् ॥
॥ इदं स्नानीयं जलं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
पञ्चामृत स्नान
- दुग्ध स्नान : सुरगवुद्भभवं वीर्यवर्धकं निखिलदेहिनां जीवनप्रदम् शशधरप्रभं फेनसंयुतम् जनपगृह्यतामर्पितं पयः ॥ इदं पयःस्नानं …….., शुद्धोदक – पयः स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
- दधि स्नान : शुचिपयः समुद्भूतमुतप्रदं व्रजनिवासिभिः स्वादितं शुभम् । रजतसंनिभं शीततामयं जनपगृह्यतामर्पितन्दधिम् ॥ इदं दधिस्नानं …….., शुद्धोदक – दधि स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
- घृत स्नान : हुतवहप्रियं क्षीरजोद्भवं सकलदेहिनां सत्त्ववर्धकम् । कुमुदसदृशं विष्णु दैवतं जनपगृह्यतामर्पितङ्घृतम् ॥ इदं घृतस्नानं …….., शुद्धोदक – घृत स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
- मधु स्नान : मधुलतोद्भवं स्वादुमञ्जुलं मधुपमक्षिकाद्यैर्विनिर्मितम् । मधुरतामयं गन्धसम्प्रदं मधुहतेऽर्पितं गृह्यताम्मधु ॥ इदं मधुस्नानं …….., शुद्धोदक – मधु स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
- शर्करा स्नान : मदनकार्मुकाद्या विनिर्मिता मधुरतान्विता सर्वपापहा । सरसताङ्गता तारकोपमा जनपगृह्यतां शुद्धशर्करा ॥ इदं शर्करास्नानं …….., शुद्धोदक – शर्करा स्नानानंतर शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
उद्वर्तन स्नान
कदम्बकेतकी पुष्पसम्भवं मृगमदान्वितं यन्त्रनिर्मितम् ।
जनुपकारिणा भक्तितो मया जनपगृह्यतां तैलमर्पितम् ॥
॥ इदं अंगोद्वर्तनकं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥ शुद्धोदक – अंगोद्वर्तनकं स्नानानंतर
शुद्धोदक स्नान
हरिपदाम्बुजा नर्मदामही सरयूचन्द्रभागाभ्य आहृतम् ।
जलजवासितं स्नानहेतवे जनपगृह्यतामर्पितञ्जलम् ॥
॥ इदं शुद्धोदक स्नानं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
वस्त्र
विविधतन्तुभिर्गुम्फितं नवसूतपनीयभं सोत्तरीयकम् ।
मधुरिपो जगन्नाथ माधव जनपगृह्यतां वस्त्रमर्पितम् ॥
॥ इमे वस्त्रोपवस्त्रे ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥ आचमनीयं ………
यज्ञोपवीत
त्रिगुणितं सितैरर्कतन्तुभिः कृतमिदम्मया शुद्धचेतसा ।
निगमसम्मतं बन्धमोचकः जनपगृह्यतामुपवीतकम् ॥
॥ इमे यज्ञोपवीते ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥ आचमनीयं ………
गन्ध
मलयसम्भवं पीतवर्णकं मृगमदाधिभिर्वासितं वरम् ।
मुक्तिषट्पदं कुङ्कुमान्वितं जनपगृह्यतां गन्धमर्पितम् ॥
॥ इदं गन्धं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
तिल-यव
कमलसम्भवा मौक्तिकोपमा स्त्रिपथगोदकैः शालिताः शिवाः ।
अगरुकुङ्कुमैर्मिश्रितावरा जनपगृह्यतामर्पिताक्षताः ॥
॥ एते यव तिलाः ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
पुष्प, माला, तुलसी आदि
तरुणमल्लिका कुन्दमालती बकुलपङ्कजानां समुच्चयैः ।
सततसुत्रितं भक्तितो मया जनपगृह्यतां हारमर्पितम् ॥
॥ इदं पुष्पमाल्यं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
श्वेत चूर्ण
कदम्बकेतकी वृक्षसम्भवं विविधसौख्यदं कान्तिवर्धनम् ।
सितकरोपमं स्नेहसत्कृतं जनपगृह्यतां श्वेतचूर्णकम् ॥
॥ इदं श्वेतचूर्णं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
रक्त चूर्ण
अमरजादिभिर्देववृन्दकैः शिरसिवैधृतं प्रश्रयेण वा ।
तपनसदृशं दृष्टिमुत्कलं जनपगृह्यतां रक्तचूर्णकम्॥
॥ इदं रक्तचूर्णं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
सिन्दूर
गणपतिप्रियं बालसूर्यभं पवनसूनुना स्वीकृतं सदा ।
सुरभिवासितं सूक्ष्मचूर्णकं जनपगृह्यतां नागसम्भवम् ॥
॥ इदं सिन्दूरं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
धूप
अगरगुग्गुला ज्यादिमिश्रितं तपनयोगजोद् भूतसौरभम् ।
अमरवृन्दकैः स्नेह सत्कृतं जनपगृह्यतां धूपमुत्तमम् ॥
॥ एष धूपः ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
दीप
अनलतैलिनी गोघृतान्वितं तिमिरनाशकं दीप्ततन्तुभिः ।
कनकभाजने स्थापितम्मया जनपगृह्यतां दीपमुत्तमम् ॥
॥ एष दीपः ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
नैवेद्य
पनसदाडिमाम्रादिसत्फलं सुघृतमोदका पूपपायसम् ।
रजतभाजने स्थापितम्मया जनपगृह्यतां खाद्यमुत्तमम् ॥
॥ एतानि नानाविध नैवेद्यानि ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
आचमन
जलधिगोद्भवं शीततामयं सकलप्राणिनां प्राणदायकम् ।
विधिसमर्पितं शुद्धचेतसा जनपगृह्यतामाचममं शुभम् ॥
॥ मुखे आचमनीयं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
ताम्बूल
खपुरसम्भवं पूगचूर्णयुग् मृगमदेलुका वासितं वरम् ।
फणिलतादलैः क्लृप्तबीडकं जनपगृह्यतामास्यभूषणम् ॥
॥ मुखवासार्थे सपूगीफल ताम्बूलं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
दक्षिणा
निखिलयाचिनां श्रेष्ठभोगदा निगमसम्मता कर्मपूर्णदा ॥
सकलभूजनैर्वाञ्छिता सदा जनपगृह्यतां हेमदक्षिणा ॥
॥ पूजासाफल्यार्वथे दक्षिणाद्रव्यं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
नीराजन
हुतवहप्रियैर्मिश्रितं वरं जलधिजैर्युतं सर्वपापहम् ।
मुखविलोकनार्थाय संस्कृतं जनपगृह्यतामार्तिकं शुभम् ॥
॥ इदं नीराजनं ओं भूर्भुवःस्वः भगवते श्री विष्णवे नमः ॥
प्रदक्षिणा
वरदसञ्चितं पूर्वजन्मभिर्दहति किल्विषं त्वत्प्रदक्षिणा ।
नरहरिमुदा शुद्धचेतसा सततमीश्वरं त्वां नमाम्यहम् ॥
इस प्रकार से त्रिंशोपचार पूजा करने के पश्चात् क्षमापन, साष्टांग प्रणाम, पुष्पांजलि, प्रार्थना आदि करे।
कर्पूर आरती मंत्र – मुक्तकमङ्गलं
श्रियः कान्ताय कल्याण निधये निधयेऽर्थिनां। श्रीवेङ्कटनिवासाय श्रीनिवासाय मङ्गलम् ॥१॥
लक्ष्मीचरणलाक्षाङ्कसाक्षिश्रीवत्सवक्षसे । क्षेमङ्कराय सर्वेषां श्रीरङ्गेशाय मङ्गलम् ॥२॥
समस्तजीवमोक्षाय श्रीरङ्गपुरवासिने । कन्द्वादमुनिपूज्याय श्रीनिवासाय मङ्गलम् ॥३॥
अस्तु श्रीस्तनकस्तूरीवासनावासितोरसे । श्रीहस्तिगिरिनाथाय देवराजाय मङ्गलम् ॥४॥
कमलाकुच कस्तूरी कर्दमाङ्गित वक्षसे । यादवाद्रिनिवासाय सम्पत्पुत्राय मङ्गलम् ॥५॥
मङ्गलं कोसलेन्द्राय महनीयगुणाब्धये । चक्रवर्तितनूजाय सार्वभौमाय मङ्गलम् ॥६॥
श्रीमद्गोपालबालाय गोदाभीष्टप्रदायिने । श्रीसत्यासहिताथास्तु कृष्णदेवाय मङ्गलम् ॥७॥
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने । सुभद्राप्राणनाथाय जगन्नाथाय मङ्गलम् ॥८॥
आजन्मनः षोडशाब्दं स्तन्याद्यनभिलाषिणे । श्रीशानुभवपुष्टाय शठकोपाय मङ्गलम् ॥९॥
श्रीमत्यै विष्णुचित्तार्यमनोनन्दनहेतवे । नन्दनन्दनसुन्दर्यै गोदायै नित्य मङ्गलम् ॥१०॥
श्रीमन्महाभूतपुरे श्रीमत्केशवयज्वनः । कान्तिमत्यां प्रसूताय यतिराजाय मङ्गलम् ॥११॥
मङ्गलाशासन परैर्मदाचार्य पुरोगमैः। सर्वैश्च पूर्वैराचार्यैः सत्कृतायास्तु मङ्गलम् ॥१२॥
श्रीमते रम्यजामात्रे मुनीन्द्राय महात्मने। श्रीरङ्गवासिने भूयात् नित्यश्रीर्नित्यमङ्गलम् ॥१३॥
विनम्र आग्रह : त्रुटियों को कदापि नहीं नकारा जा सकता है अतः किसी भी प्रकार की त्रुटि यदि दृष्टिगत हो तो कृपया सूचित करने की कृपा करें : info@karmkandvidhi.in
मंत्र प्रयोग (कर्मकांड कैसे सीखें) में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।