यहां गणेशाम्बिका पूजन विधि (मैथिलेत्तर) दी गयी है अर्थात इस आलेख में गौरी गणेश की जो पूजा विधि बताई गयी है वह मिथिलादेशीय परंपरा से भिन्न है। यदि आप मिथिलादेशीय परंपरानुसार गणेशाम्बिका पूजा विधि देखना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं। 

पञ्चदेवता व विष्णु पूजा विधि

पञ्चदेवता व विष्णु पूजा विधि : नित्यकर्म में पंचदेवता पूजन भी आता है और यदि मिथिला की बात करें तो यहां पंचदेवता नहीं षड्देवता पूजन का विधान है और यही कारण है कि मिथिला में तंत्र से पंचदेवता पूजन करके विष्णु की पूजा भी की जाती है। विष्णु की पूजा को मिलाकर देखें तो षड्देवता पूजन सिद्ध हो जाता है। कुछ लोगों को यह भ्रम रहता है कि पंचदेवता पूजन में भी विष्णु की पूजा की गयी और पुनरावृत्ति भी की गयी। किन्तु वास्तविकता यह नहीं है, वास्तव में मिथिला षड्देवता पूजन की परम्परा का पालन करता है।

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रक्षा विधान - दिग्बंधन मंत्र

दिग्बंधन विधि या दिग्-रक्षण

दिग्बंधन विधि या दिग्रक्षण : बांये हाथ में पिली सरसों, तिल, दूर्वा आदि लेकर दांये हाथ से ढंककर रक्षोघ्नसूक्त का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात दशों दिशाओं में छिड़काव करना चाहिए। कर्म भंग न हो और असुरादिकों को भाग न मिले इसलिए रक्षाविधान एक विशेष प्रक्रिया है और सजगतापूर्वक इस क्रिया को वैदिक विधि से सम्पादित करने की आवश्यकता होती है।

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पूजा क्या है

पूजा क्या है पूजा क्या है ?       पूजा का शाब्दिक अर्थ ‘सम्मान देना/आदर-सत्कार करना’ बताया गया है। कर्मकाण्ड में पूजा एक प्रक्रिया है जो जीव और ईश्वर के मध्य घटित होता है। इसमें मनुष्य पत्र-पुष्प-फलादि ईश्वर को प्रतिमा या आवाहित स्थान पर समर्पित करता है और जब ये प्रक्रिया मन ही मन होती है…

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पूजा प्रकरण

पूजा विधि पूजा अथवा पूजन (Worshipping) किसी भगवान को प्रसन्न करने हेतु हमारे द्वारा उनका अभिवादन होता है। पूजा दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यहाँ भगवान को पुष्प आदि समर्पित किये जाते हैं जिनके लिये वेद मंत्र एवं पौराणिक श्लोकों का उपयोग किया जाता है। वैदिक मंत्रों का उपयोग किसी बड़े कार्य…

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शुद्धिकरण : पवित्रीकरण मंत्र और विधि का विश्लेषण - Pavitrikaran

पवित्रीकरण

 पवित्रीकरण मंत्र इन संस्कृत पवित्रीकरण से भी पहले ग्रंथिबंधन करना चाहिए। ब्राह्मण या सधवा स्त्री ग्रंथिबंधन करें : ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य उमा लक्ष्मी सरस्वतीम्‌। दंपत्योर्रक्षणार्थाय पटग्रंथि करोम्यहम्‌ ॥ श्रीदेव देव कुरुमंगलानि संतानवृद्धिकुरु संततञ्ञ। धनायुवृद्धिकुरुइष्टदेव मदग्रथिबंधे शुभदाभवन्‍न्तु॥ सपत्नीक यजमान ग्रंथिबंधन : यजमान और यजमानपत्नी स्नानादि करके नया/अहत/शुद्ध वस्त्र (एकबार पहनकर उतारा गया वस्त्र भी धोने  के बाद ही शुद्ध…

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