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सप्त घृत मातृका फोटो |
सप्तघृत मातृका मंडल सिंदूर में घी मिलाकर बनायी जाती है।
सप्त घृत मातृका नाम –
१. श्री, २. लक्ष्मी, ३. धृति, ४. मेधा, ५. स्वाहा, ६. प्रज्ञा और ७. सरस्वती।
सप्त घृत मातृका वेदी में इन सातों मातृकाओं का पूजन किया जाता है। मातृका पूजन वामावर्त करने की विधि है। नीचे के सातों बिंदुओं पर दक्षिण से आरम्भ करके उत्तर में समापन करना चाहिये।
सप्त घृत मातृका पूजन मंत्र
ध्यातव्य – मिथिला में षोडश मातृका पूजनोपरांत श्री पूजन करके ही वसोर्धारा की परिपाटी है। अलग से सप्तघृतमातृका पूजन की अनिवार्यता नहीं देखी जाती है । परन्तु अनुष्ठान-यज्ञों में अब देखे जाते हैं, फिर भी कर्मकांड संबधी मुख्य पुस्तकों में वृद्धिश्राद्ध प्रसङ्ग पर सप्तघृत मातृका पूजन प्राप्त नहीं होता ।
१. श्री – ॐ मनसः काममाकूतिं वाचं सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रिये इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः नमः श्रियै नमः।
प्राण-प्रतिष्ठा निम्नलिखित मंत्र द्वारा :-
सप्तघृत मातृका मंत्र (पूजन मंत्र) – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ।
प्रार्थना – ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः। कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम्॥
वसोर्धारा – ॐ व्वसोः पवित्रमसि शतधारं व्वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु व्वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा ॥ विभक्त धाराओं के मध्य में गुड़ द्वारा (फलादि से ग्रहण करके) एकीकरण – ॐ कामधुक्षः ।।
छन्दोगी वसोर्धारा मंत्र – ॐ एतमुत्यं मदच्युतं शतधारं वृषभं दिवो दुहं विश्वावसूनी बिभ्रतं। सहस्रधारं वृषभं पयोदुहं प्रियं देवाय जन्मने। ऋतेन य ऋत जातो विवावृधे राजा जातो देवऋतं बृहत्।
आयुष्य मन्त्र पाठ – ॐ यदायुष्यं चिरं देवाः सप्तकल्पान्तजीविषु । ददुस्तेनायुषा युक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥ दीर्घा नागा नगा नद्योऽनन्ताः सप्तार्णवा दिशः । अनन्तेनायुषा तेन जीवेम शरदः शतम् ॥ सत्यानि पश्चभूतानि विनाशरहितानि च । अविनाश्यायुषा तद्वज्जीवेम शरदः शतम् ॥ ॐ आयुष्यं व्वर्चस्य ᳪ रायस्पोषमौद्भिदम् । इद ᳪ हिरण्य व्वर्च्चस्व ज्जैत्रायाविशता द्रुमाम् ॥ ॐ न तद्द्रक्षा ᳪ सि न पिशाचास्तरन्न्ति देवानामोजः प्रथमज ᳪ ह्येतत् । यो विभर्त्ति दाक्षायणः हिरण्ण्य स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः ॥
सप्त घृत मातृका पूजन विधि अनुसार संपन्न करने के बाद नान्दीमुख श्राद्ध करना चाहिये। नान्दीमुख श्राद्ध को ही आभ्युदयिक श्राद्ध या वृद्धि श्राद्ध भी कहा जाता है। मातृका पूजन (षोडश और सप्तघृत मातृका) वास्तव में वृद्धिश्राद्ध का ही पूर्वाङ्ग होने के कारण ही कर्तव्य होता है। वैसे दुर्गा-काली आदि शक्ति पूजन करते समय यदि विशेष विधि ग्रहण किया गया हो तो मातृका पूजन शक्ति पूजांग के रूप में भी किया जाता है।