पितृपक्ष 2024 : महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
देवकर्म से अधिक महत्वपूर्ण पितृकर्म होता है। पितरों के निमित्त किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है। आश्विन माह का कृष्णपक्ष पितृपक्ष कहलाता है। पितृपक्ष में प्रतिदिन श्राद्ध करना चाहिये। जो प्रतिदिन श्राद्ध नहीं कर सकते वो कम-से-कम 10 दिन करे, जो 10 दिन भी नहीं कर सकते वो 5 दिन करें। जो 5 दिन भी न कर सके उनके लिये न्यूनतम एक दिन करने की आज्ञा है। आज्ञा का तात्पर्य एक दिन करना तो अनिवार्य है। यदि एक दिन भी नहीं करते हैं तो दोषी हो जाते है।
वर्तमान में अधिकांशतः एक दिन ही श्राद्ध करते देखे जाते हैं, शेष दिनों में तर्पण मात्र ही करते हैं। पितृपक्ष के संबंध में अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनका सही उत्तर मिलना कठिन है किन्तु गलत उत्तर हर जगह बताये जाते हैं। इस आलेख में पितृपक्ष और श्राद्ध से संबंधित अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्नों के शास्त्रोक्त उत्तर दिये गये हैं। पितृपक्ष से संबंधित और अधिक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करें के लिये पढ़ें : पितृपक्ष श्राद्ध तर्पण की सम्पूर्ण जानकारी – पितृपक्ष 2024
प्रश्न : पितृ पक्ष क्या है ?
उत्तर : पृथ्वीचंद्रोदय में वृद्धमनु का वचन है कि आषाढ़ पूर्णिमा से पांचवें पक्ष में पितरगण अन्न-जल की आकांक्षा करते हैं :
आषाढीमवधिं कृत्वा पंचमपक्षमाश्रिताः। कांक्षंति पितरः क्लिष्टाः अन्नमप्यन्वहंजलं ॥
जब पितरगण अन्न-जलादि की आकांक्षा करते हैं तो उसके लिये कुछ प्रयास भी अवश्य करते होंगे। जब कभी भी कोई आकांक्षा/इच्छा होती है तो पूर्ति की दिशा में कुछ प्रयास भी अवश्य ही किया जाता है। पितरगण क्या प्रयास करते हैं ? पितरगणों के प्रयास हेतु यहां दो प्रमाण दिये जा रहे हैं इससे महालय को समझना भी सरल हो जायेगा :
- कन्यागते सवितरि पितरो यान्ति सत्सुतान्। शून्या प्रेतपुरी एव यावद्वृश्चिक दर्शनं ॥ – अत्रि संहिता
- यावच्च कन्यातुलयोः क्रमादास्ते दिवाकरः। शून्यं प्रेतपुरं तावद् वृश्चिके यावदागतः॥ – महाभारत
कन्या की संक्रांति होने पर पितरगण सत्पुत्रों के पास आ जाते हैं अर्थात घर आ जाते हैं और वृश्चिक संक्रांति तक वास करते हैं। तब तक प्रेतपुरी/पितृलोक शून्य या रिक्त हो जाती है। अत्रि संहिता और महाभारत में इस प्रकार का वर्णन मिलता है।
प्रश्न : पितृ पक्ष कब है ?
उत्तर : 2024 में पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्ध का आरंभ 18 सितंबर 2024 बुधवार से होगा। पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्धादि आश्विन कृष्ण अमावास्या 2 अक्टूबर बुधवार तक होगा। भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को भी तर्पण आदि करके अगस्त्य को अर्घ्य देने का विधान है। अगस्त्य अर्घ्य दान विधि
प्रश्न : पितृ पक्ष में किसकी पूजा करनी चाहिए?
उत्तर : पितरों की पूजा-अर्चना, उनके लिये अन्न-जल उत्सर्ग करना, ब्राह्मण भोजन कराना, दान-दक्षिणा देना श्राद्ध कहलाता है। जैसा कि पितृपक्ष से ही स्पष्ट होता है कि यह पक्ष पितृकार्य से सम्बंधित है अतः पितृ पक्ष में पितरों की ही पूजा करनी चाहिये। किन्तु पितरों की पूजा का अर्थ यह नहीं लेना चाहिये कि जैसे देवताओं की प्रतिमा-फोटो आदि की पूजा की जाती है पितरों की भी उसी तरह होगी। पितरों की पूजा का तात्पर्य तर्पण-श्राद्ध आदि करना ही होता है।
प्रश्न : कितनी पीढ़ी तक श्राद्ध करना चाहिए?
उत्तर : तीन पीढ़ियों तक के पितर पिंडभाजी कहे गये हैं, अर्थात पिंड तीन पीढ़ियों के निमित्त दिया जाता है। इसका तात्पर्य है कि श्राद्ध तीन पीढ़ी तक का ही करना चाहिये। उससे ऊपर के तीन पीढ़ी लेपभाजी कहे गये हैं, उनके लिये पिंडदान के पश्चात् हाथों में जो शेष अन्न लगा रहता है वह पिंड के नीचे बिछाये गए कुशाओं में पोंछना चाहिये।
प्रश्न : अगर मां जिंदा है तो क्या पिंड दान किया जा सकता है?
उत्तर : जो व्यक्ति जीवित होता है उसका श्राद्ध नहीं किया जाता है। पिता जब तक जीवित रहे तब तक श्राद्ध करने का अधिक पिता को ही होता है, पुत्र को नहीं। किन्तु पिता के मृत्यु होने पर श्राद्ध करने का अधिकार पुत्र को ही होता है। जिसकी मां जीवित हो वह मां को छोड़कर मात्र पिता/पितामह/प्रपितामह का श्राद्ध करे। अर्थात मां के जिंदा रहने पर भी पिता आदि यदि मृत हों तो उनका पिंडदान करना चाहिये।
प्रश्न : अगर मेरे माता-पिता जीवित हैं तो क्या मैं तर्पण कर सकता हूं?
उत्तर : तर्पण-श्राद्ध आदि में पिता को पितृद्वार कहा गया है, यदि पिता जीवित हो तो पितृद्वार बंद रहता है। जब पितृद्वार बंद हो तो तर्पण-श्राद्ध आदि नहीं करने चाहिये। किन्तु यदि पिता सन्यासी हो जाये तो किया जा सकता है। यह सामान्य श्राद्ध का नियम है, मृताह श्राद्ध में माता/भाई आदि के मरने पर पिता के जीवित रहते हुये भी श्राद्ध किया जा सकता है। यदि पिता अशक्त/असमर्थ हो तो पिता की आज्ञा से किया जा सकता है।
प्रश्न : क्या हम पितृ पक्ष के दौरान मंदिर जा सकते हैं?
उत्तर : जहां तक मंदिर जाने का प्रश्न है तो जाने संबंधी किसी प्रकार का कोई निषेध प्राप्त नहीं होता, हां श्राद्ध जिस दिन करे उस दिन निषेध होता है। तर्पण करने को श्राद्ध नहीं समझना चाहिये, श्राद्ध का तात्पर्य पार्वण श्राद्ध समझना चाहिये, अथवा मृत्युतिथि पर एकोद्दिष्ट भी। श्राद्ध के दिन नित्यकर्म करके श्राद्ध करे, श्राद्ध के उपरांत भोजन करके यात्रा, संध्या, अध्ययन, पुनर्भोजन, मैथुन आदि सभी कर्म निषिद्ध हैं।
प्रश्न : पितरों को पानी कौन दे सकता है?
उत्तर : जिसके पिता जीवित हों वह जीवितपितृक कहलाता है एवं उसके लिये पितृद्वार बंद होता है, अर्थात जिसके पिता मृत होते हैं उसका पितृद्वार खुल जाता है और तब तर्पण-श्राद्ध करना चाहिये।
प्रश्न : क्या हम मासिक धर्म के दौरान श्राद्ध कर सकते हैं?
उत्तर : नहीं, रजस्वला स्त्री के लिये ही नहीं, रजस्वला स्त्री के पति हेतु भी श्राद्ध करने का निषेध है।
प्रश्न : क्या स्त्री तर्पण कर सकती है?
उत्तर : तर्पण पुरुषों का नित्यकर्म है, स्त्रियों का नहीं, किन्तु श्राद्ध करने का अधिकार स्त्रियों को भी है और श्राद्धांग तर्पण अर्थात यदि स्त्री श्राद्ध कर रही हो तो कर सकती है।
प्रश्न : मृत्यु के कितने वर्ष बाद गया जाना चाहिए?
उत्तर : माता-पिता की मृत्यु होने पर एक वर्ष तक तीर्थयात्रा निषिद्ध होता है। इसके साथ ही प्रथम वर्ष गयाश्राद्ध भी निषिद्ध है। अतः पिता की मृत्यु होने के एक वर्ष पश्चात् ही गया जाना चाहिये।
प्रश्न : पितृ को जल कैसे चढ़ाते हैं?
उत्तर : पितरों को अपसव्य होकर द्विगुणित कुशा लेकर, तिल मिश्रित जल पितृतीर्थ से देना चाहिये। अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग को पितृतीर्थ कहा जाता है।
प्रश्न : क्या पितरों को रोज जल देना चाहिए?
उत्तर : देवता-ऋषि-पितर इन सबको प्रतिदिन जल देना चाहिये। इसी का नाम देवर्षि-पितृ तर्पण है जो नित्यकर्म है।
प्रश्न : पितरों को पानी कितने दिन देना चाहिए?
उत्तर : देवता-ऋषि-पितर इन सबको प्रतिदिन जल देना चाहिये। इसी का नाम देवर्षि-पितृ तर्पण है जो नित्यकर्म है। ऐसा नहीं समझना चाहिये कि मात्र पितृपक्ष में दिया जाता है, पितृपक्ष में तो श्राद्ध करना चाहिये।
प्रश्न : घर में पितरों का स्थान कहाँ होना चाहिए?
उत्तर : श्राद्ध के अतिरिक्त पितृपूजा का अन्य विधान नहीं है, अतः घर में देवताओं की तरह पितरों का भी चित्र लगाकर पूजा करना पितरों की अधोगति करना होता है। पितरों के लिये प्रतिदिन तर्पण करने का विधान है जो प्रतिमा/चित्र आदि रखकर नहीं, मंत्र द्वारा कुशा पर आवाहन करके दिया जाता है।
प्रश्न : पितृ विसर्जन अमावस्या 2024 कब है?
उत्तर : पितरों का विसर्जन कार्तिक कृष्ण अमावास्या की रात में उल्काभ्रमण करके किया जाता है। 2024 में 1 नवंबर शुक्रवार को कार्तिक कृष्ण अमावास्या है जिसे पितृ विसर्जन अमावास्या कहा जा सकता है।
प्रश्न : बिना पंडित के श्राद्ध कैसे करें?
उत्तर : बिना पंडित के श्राद्ध करने की बात सोचना भी गलत है। पितरों के लिये यदि श्राद्ध न कर सकें तो विकल्प में भी ब्राह्मण भोजन ही बताया गया है। फिर श्राद्ध बिना ब्राह्मण के कैसे किया जा सकता है ?
प्रश्न : श्राद्ध का भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर : ऐसा नियम सबके लिये नहीं है। जिसका उपनयन-विवाह आदि हुआ हो और एक वर्ष पूरा न हुआ हो, अथवा किसी व्रत आदि को कर रहा हो मात्र उसके लिये ही श्राद्ध के भोजन का निषेध है। यदि ब्राह्मण भी श्राद्ध का भोजन करना बंद कर दें तो श्राद्ध होगा कैसे ? श्राद्ध का भोजन करने के बाद उस दिन के लिये अशुद्धि हो जाती है और कई कार्य निषिद्ध होते हैं जैसे : दुबारा भोजन करना, अध्ययन करना, भार उठाना, यात्रा करना, मैथुन करना, संध्या करना इत्यादि। जिनको ये सभी निषिद्ध कार्य करना हो उन्हें श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिये। :- श्राद्ध का भोजन करना चाहिए या नहीं शास्त्र क्या कहता है
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