प्रदक्षिणा अनुष्ठान – pradakshina

प्रदक्षिणा अनुष्ठान - pradakshina

प्रदक्षिणा तो सभी पूजा का अंग है और कोई भी पूजा हो अंत में प्रदक्षिणा (pradakshina) भी की ही जाती है। इसके अतिरिक्त प्रदक्षिणा का अनुष्ठान भी होता है और यह सोमवती अमावास्या को अश्वत्थ वृक्ष की प्रदक्षिणा होते देखती है। प्रदक्षिणा अनुष्ठान का तात्पर्य है लक्ष प्रदक्षिणा अथवा सहस्र प्रदक्षिणा करना। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि जब प्रदक्षिणा ही प्रधान हो और विशेष निर्धारित संख्या में करनी हो तो उसे देवता संबंधी प्रदक्षिणा अनुष्ठान कहते हैं। यहां प्रदक्षिणा अनुष्ठान की विधि और मंत्र दिये गये हैं।

प्रदक्षिणा को बहुत विशेष महत्व प्राप्त है

“यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ॥”

अर्थात प्रदक्षिणा में असीम पापनाशक प्रभाव है और प्रदक्षिणा से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है चाहे वो ज्ञात हो अज्ञात हो, इस जन्म का हो अथवा अन्य जन्मों का हो, ब्रह्महत्या हो, सभी प्रकार के पापों का प्रदक्षिणा शमन करता है। दुःखों के कारण पाप ही होते हैं और पापों का शमन होने का तात्पर्य दुःखों का भी शमन होना है। तीन प्रकार के ताप कहे गये हैं “दैहिक दैविक भौतिक तापा” और प्रदक्षिणा का अनुष्ठान पापों का नाश करता है जिससे सभी दुःखों (अभुक्त) का भी नाश हो जाता है।

अनेकों प्रदक्षिणा ऐसी भी होती है जो मात्र एक बार की जाती है और पर्वत, क्षेत्रों के रूप में की जाने वाली प्रदक्षिणा के रूप में इसे देखा जा सकता है, जैसे चौरासी कोसीय परिक्रमा, अरुणाचल गिरी प्रदक्षिणा आदि। विभिन्न पूजा में देवताओं के अनुसार शास्त्रोक्त संख्या में परिक्रमा की जाती है जैसे चण्डी के लिये एक, सूर्य के लिये सात, गणपति के लिये तीन, विष्णु के लिये चार, शिव के लिये अर्द्ध अथवा तीन।

एकाचण्ड्या रवौसप्त त्रिस्रः कुर्याद् विनायके। हरौ चतस्रः कार्या शिवस्यार्द्ध प्रदक्षिणा॥

इसके अतिरिक्त हम सोमवती अमावास्या को अश्वत्थ वृक्ष की 108 प्रदक्षिणा को देखते हैं।

किन्तु जब दुःखों की अधिकता हो, पापों का प्रभाव परिलक्षित हो रहा हो, नारकीय यातनाओं का भय हो और पापों का शमन करना हो तो प्रदक्षिणा का अनुष्ठान भी किया जा सकता है। ये अनुष्ठान लक्ष संख्यक हो सकते हैं अथवा सहस्र संख्यक भी हो सकते हैं। प्रदक्षिणा अनुष्ठान अपने इष्टदेवता अथवा अन्य किसी भी देवता की की सकती है, तुलसी-अश्वत्थ आदि के भी कर सकते हैं, गो की भी कर सकते हैं।

अब बात आती है प्रदक्षिणा विधि की तो सभी प्रकार अर्थात सभी देवताओं के लिये एक ही विधि होगी अंतर मात्र इतना होगा कि संकल्प में देवता के नाम का परिवर्तन होगा, पूजा भी उनकी ही की जायेगी जिनकी प्रदक्षिणा करनी हो। आगे गणेश प्रदक्षिणा विधि दी जा रही है।

गणेश लक्ष/सहस्र प्रदक्षिणा विधि

पवित्रीकरणादि, शान्ति पाठ अर्थात स्वस्तिवाचन करके संकल्प करे।

संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य, विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………… १ संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. २ मासे ………… ३ पक्षे ………… ४ तिथौ …………५ वासरे ………… ६ गोत्रोत्पन्नः ………… ७ शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे च अखण्डितसौभाग्यपुत्रपौत्रआयुरोग्यऐश्वर्याद्यभिवृध्यर्थं मनोरथसङ्कल्पपरिपूरणार्थं अमुकदेवता प्रीत्यर्थं लक्षसङ्ख्या सहस्रसङ्ख्यया वा प्रदक्षिणाऽनुष्ठानमहं करिष्ये ॥

तदङ्ग निर्विघ्नतासिध्यर्थं महागणपतिपूजनं तत्साक्षिभूतं ब्राह्मणवर्णनं करिष्ये ॥

(१ संवत्सर का नाम, २ महीने का नाम, ३ पक्ष का नाम, ४ तिथि का नाम, ५ दिन का नाम, ६ अपने गोत्र का नाम, ७ ब्राह्मण शर्माऽहं, क्षत्रिय वर्माऽहं, वैश्य गुप्तोऽहं कहें, स्त्री हो तो “गोत्रायाः ………. देव्यहं” पयोग करे)

गणेशपूजां कृत्वा वक्रतुण्डेति प्रार्थयेत् । अनया पूजया विघ्नहर्ता महागणपति: प्रीयताम् ।

ॐ अद्य संकल्पित ….. देवता लक्ष/सहस्रसंख्यक प्रदक्षिणे ………. गोत्रस्य ……….. शर्माणं ब्राह्मणं अद्यप्रभृति अनुष्ठानपर्यन्तं प्रतिदिनं सदस्यं त्वामहं वृणे ॥ वृतोऽस्मि इति विप्र: ॥ गन्धा: पातु इत्यादिना ब्राह्मणं सम्पूज्य ॥

प्रतिदिन का संकल्प : ॐ …………….. पूर्वसङ्कल्पितसङ्ख्यापरिपूरणार्थं अद्य ……… सङ्ख्याप्रदक्षिणाऽनुष्ठानमहं करिष्ये ॥

प्रतिदिन की प्रदक्षिणा का संकल्प करके गणेशाम्बिका पूजन अथवा गणेश पूजन करे।

यदि गणपति की ही प्रदक्षिणा करनी हो तो प्रदक्षिणा करे अथवा किसी अन्य देवता की पूजा करनी हो तो उनकी भी षोडशोपचार अथवा व्यवस्थानुसार पूजा करके प्रदक्षिणा करे।

प्रदक्षिणा करके पुनः देवता की पंचोपचार पूजा, नमस्कार, क्षमा प्रार्थना आदि करे। फिर प्रतिदिन की प्रदक्षिणा की दक्षिणा भी प्रतिदिन करे।

दक्षिणा : ॐ अद्य कृतस्य ……. कर्मण: साङ्गतासिध्यर्थं तत्सम्पूर्णफलप्रार्प्त्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय सदस्याय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *