ध्यातव्य – मिथिला में षोडश मातृका पूजनोपरांत श्री पूजन करके ही वसोर्धारा की परिपाटी है। अलग से सप्तघृतमातृका पूजन की अनिवार्यता नहीं देखी जाती है । परन्तु अनुष्ठान-यज्ञों में अब देखे जाते हैं, फिर भी कर्मकांड संबधी मुख्य पुस्तकों में वृद्धिश्राद्ध प्रसङ्ग पर सप्तघृत मातृका पूजन प्राप्त नहीं होता ।
सप्त घृत मातृका पूजन विधि । सम्पूर्ण वसोर्धारा पूजन ।
१. श्री – ॐ मनसः काममाकूतिं वाचं सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रिये इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः नमः श्रियै नमः।
२. लक्ष्मी – ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुं मऽइषाण सर्व्वलोकं मऽइषाण। ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्म्यै नमः।
३.धृति – ॐ भद्रं कर्ण्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्ष भिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ᳪ सस्तनूभिर्व्य शेमहि देवहितं यदायुः। ॐ भूर्भुवः स्वः धृति इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः धृत्यै नमः।
४. मेधा – ॐ मेधां मे व्वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः। मेधामिन्द्रश्च्च व्वायुश्च मेधा धाता दधातु मे स्वाहा। ॐ भूर्भुवः स्वः मेधे इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ मेधायै नमः।
५. स्वाहा – ॐ प्राणाय स्वाहा ऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहे इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहायै नमः।
६. प्रज्ञा – ॐ आयङ्गौः पृश्निरक्रमीदसदन्न्मातरं पुरः पितरञ्च प्रयन्त्स्वः। ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञे इहागच्छ इह तिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञायै नमः ।
७. सरस्वती – ॐ पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवति। यज्ञं व्यष्टुधियावसुः । ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वति इहागच्छ इह तिष्ठ। ॐ सरस्वत्यै नमः ।
प्राण प्रतिष्ठा मंत्र :-
ऊँ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञ ᳪ समिमं दधातु।। विश्वेदेवा स इह मादयंतामों३ प्रतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातरः इहागच्छत इह तिष्ठत।
सप्तघृत मातृका मंत्र (पूजन मंत्र) – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ।
प्रार्थना – ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः। कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम्॥
वसोर्धारा – ॐ व्वसोः पवित्रमसि शतधारं व्वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु व्वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा ॥ विभक्त धाराओं के मध्य में गुड़ द्वारा (फलादि से ग्रहण करके) एकीकरण – ॐ कामधुक्षः ॥
छन्दोगी वसोर्धारा मंत्र – ॐ एतमुत्यं मदच्युतं शतधारं वृषभं दिवो दुहं विश्वावसूनी बिभ्रतं। सहस्रधारं वृषभं पयोदुहं प्रियं देवाय जन्मने। ऋतेन य ऋत जातो विवावृधे राजा जातो देवऋतं बृहत्।
आयुष्य मन्त्र पाठ – ॐ यदायुष्यं चिरं देवाः सप्तकल्पान्तजीविषु । ददुस्तेनायुषा युक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥ दीर्घा नागा नगा नद्योऽनन्ताः सप्तार्णवा दिशः । अनन्तेनायुषा तेन जीवेम शरदः शतम् ॥ सत्यानि पश्चभूतानि विनाशरहितानि च । अविनाश्यायुषा तद्वज्जीवेम शरदः शतम् ॥ ॐ आयुष्यं व्वर्चस्य ᳪ रायस्पोषमौद्भिदम् । इद ᳪ हिरण्य व्वर्च्चस्व ज्जैत्रायाविशता द्रुमाम् ॥ ॐ न तद्द्रक्षा ᳪ सि न पिशाचास्तरन्न्ति देवानामोजः प्रथमज ᳪ ह्येतत् । यो विभर्त्ति दाक्षायणः हिरण्ण्य स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः ॥
सप्त घृत मातृका पूजन विधि अनुसार संपन्न करने के बाद नान्दीमुख श्राद्ध करना चाहिये। नान्दीमुख श्राद्ध को ही आभ्युदयिक श्राद्ध या वृद्धि श्राद्ध भी कहा जाता है। मातृका पूजन (षोडश और सप्तघृत मातृका) वास्तव में वृद्धिश्राद्ध का ही पूर्वाङ्ग होने के कारण ही कर्तव्य होता है। वैसे दुर्गा-काली आदि शक्ति पूजन करते समय यदि विशेष विधि ग्रहण किया गया हो तो मातृका पूजन शक्ति पूजांग के रूप में भी किया जाता है।
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कर्मकांड सीखें में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।